1975 Emergency: आमजनों के लिए दोहरी मार थी 'इंदिरा' की इमरजेंसी, खौफजदा थे लोग और चल रही थी नसबंदी!
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को एक पत्र भी लिखा था। उन्होंने पत्र में लिखा कि वे कैबिनेट से बात करने की इच्छुक थीं लेकिन दुर्भाग्यवश उस रात यह संभव नहीं हो पाया था। आपातकाल लागू होते ही सेना ने मोर्चा संभाल लिया था। गिरफ्तारियां का दौर शुरू हो चुका था। लगभग एक लाख लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया था।
By Anurag GuptaEdited By: Anurag GuptaUpdated: Sun, 25 Jun 2023 06:14 AM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। 25 जून, 1975... यह तारीख भूल से भी नहीं भुलाई जा सकती है। यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास की सबसे खौफजदा तारीख थी, क्योंकि इस दिन लोकतंत्र की हत्या की गई थी। यह तारीख इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों से दर्ज है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 की रात को देश में आपातकाल लागू कर दिया था।
इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आर्टिकल 352 का इस्तेमाल करते हुए आपातकाल के कागजात पर दस्तखत करवाया था। उस वक्त इंदिरा गांधी ने कैबिनेट को भी इसकी जानकारी नहीं दी थी, केवल कुछ विश्वस्त लोगों के पास ही यह जानकारी थी कि देश में आपातकाल लागू होने वाला है।
पहले ही बन चुकी थी आपातकाल की योजना
वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय कुलदीप नैयर ने अपनी किताब 'एक जिंदगी काफी नहीं' में तत्कालीन इंदिरा गांधी द्वारा रेडियो के माध्यम से आपातकाल की घोषणा करने की विस्तृत जानकारी दी। हालांकि, उन्होंने आपातकाल पर एक अलग से किताब भी लिखी है। खैर, वापस स्टोरी पर आते हैं।बकौल कुलदीप नैयर,
इस बीच, इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को एक पत्र भी लिखा था। उन्होंने पत्र में लिखा कि वे कैबिनेट से बात करने की इच्छुक थीं, लेकिन दुर्भाग्यवश उस रात यह संभव नहीं हो पाया था। साथ ही उन्होंने लिखा कि आंतरिक अशांति के कारण भारत की सुरक्षा खतरे में थी।इंदिरा गांधी 22 जून, 1975 को ही आपातकाल को लागू करने की योजना बना ली थीं। 25 जून की सुबह भी उन्होंने अपने विश्वस्त साथियों के साथ इस विषय पर चर्चा भी की।
अफरातफरी का दौर
एक झटके में देशवासियों से सारे अधिकार छीन लिए गए। एक व्यक्ति का शासन देश में लागू हो गया था, वो जिसे चाहे उसे गिरफ्तार कर रहे थे।26 जून की सुबह इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो के स्टूडियो से देशवासियों को आपातकाल की जानकारी दी। जिसके बाद देश में अफरातफरी मच गई, लोग खौफजदा थे कि आखिर आगे क्या होगा?साथ ही ज्यादातर लोग तो इस बात से अनभिज्ञ थे कि आपातकाल का मतलब क्या है। उनकी समझ में धीरे-धीरे यह बात आई कि उन्होंने 25 वर्षों में जिस प्रजातांत्रिक प्रणाली को सहेज कर रखा था उसे एक झटके में धाराशाही कर दिया गया है।
सेना ने संभाला मोर्चा
आपातकाल लागू होते ही सेना ने मोर्चा संभाल लिया था। गिरफ्तारियां का दौर शुरू हो चुका था। लगभग एक लाख लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया था।जयप्रकाश नारायण जैसे वरिष्ठ नेताओं तक को नहीं बख्शा गया था और प्रेस के मुंह पर ताला लगा दिया गया था। उस वक्त कई विदेशी अखबारों के पत्रकारों का स्वदेश लौट जाने की हिदायत दी गई थी।जबरन कराई गई नसबंदी
आपातकाल के समय जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर नसबंदी अभियान का उग्र रूप देखने को मिला। उस वक्त ऐसी भी खबरें सामने आईं थीं कि पुलिस ने पूरे-पूरे गांव को घेर लिया और लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कराई। डॉक्टरों ने नसबंदी के आंकड़ों को पूरा करने के लिए युवकों को भी निशाने पर लिया। पकड़-पकड़ कर उनकी जबरदस्ती नसबंदी कराई गई और तो और सरकार के समक्ष गलत आंकड़ें भी पेश किए।- 70 से लेकर 90 के दशक के लोगों के ज़हन से आपातकाल के क्रूर यादें आज भी तरोताजा हैं।
- 50 लाख से ज्यादा लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कराई गई थी।
- जबरन नसबंदी की वजह से 2,000 लोगों की मौत हो गई थी।
- नसबंदी कराने वालों को 75 रुपये, एक दिन की छुट्टी और एक डिब्बा देशी घी का दिया जाता था।
- संजय गांधी ने मुख्यमंत्रियों को नसबंदी अभियान को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया था।
- हरियाणा में तो 3 सप्ताह के अंदर ही 60,000 से ज्यादा लोगों की नसबंदी की गई थी।
- दिल्ली के संवेदनशील मुस्लिम इलाकों में एक साल के भीतर 13,000 से ज्यादा नसबंदी की गई थी।