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जानें कैसे 27 वर्षीय शांतनु बनेे 81 वर्षीय रतन टाटा के सबसे चहेते सहयोगी और सलाहकार

शांतनु ने उद्योग जगत की दिग्गज शख्सियत और टाटा समूह के मानद चेयरमैन 81 वर्षीय रतन टाटा के साथ अपनी फ्रेंडशिप बयां करती दो तस्वीरें भी साझा की।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 05 Nov 2019 01:30 PM (IST)
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जानें कैसे 27 वर्षीय शांतनु बनेे 81 वर्षीय रतन टाटा के सबसे चहेते सहयोगी और सलाहकार

[संजय कुमार सिंह, नई दिल्ली]। जल्द ही वह दिन आएगा, जब मैं इस दोस्ती और इस रिश्ते के मायने समझने के योग्य बन जाऊंगा। और शायद इसके निहितार्थ बेहतर तरीके से दुनिया संग साझा कर सकूंगा। इस पूरे अनुभव को व्यक्त करना एक महान परिचय देने के समान होगा...। 27 वर्षीय शांतनु नायडु ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में यह बात लिखी है।

शांतनु ने उद्योग जगत की दिग्गज शख्सियत और टाटा समूह के मानद चेयरमैन 81 वर्षीय रतन टाटा के साथ अपनी फ्रेंडशिप बयां करती दो तस्वीरें भी साझा की। एक तस्वीर में तो वह रतन टाटा के कंधे पर इस तरह हाथ रखे हुए हैं, मानो जिगरी दोस्त हों। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।

कैसे बनेे रतन टाटा के सबसे चहेते सलाहकार

शांतनु दरअसल रतन टाटा के मुंबई स्थित मुख्यालय (ऑफिस ऑफ रतन नवल टाटा) में बतौर उप महाप्रबंधक नियुक्त हैं, लेकिन बात बस इतनी ही नहीं है। शांतनु रतन टाटा के सबसे चहेते सहयोगी बन गए हैं। टाटा समूह के चेयरमैन पद से सेवानिवृत्ति के बाद रतन अब समूह के चेयरमैन एमिरिट्स (मानद अध्यक्ष) तो हैं ही, लेकिन अपनी दूसरी पारी उन्होंने भारत में नए आविष्कारों, बिजनेस आइडियाज और स्टार्टअप्स को सहयोग-गति देने और टाटा ट्रस्ट के मुखिया के तौर पर समाजसेवा के व्यापक उद्देश्यों की पूर्ति में केंद्रित कर दी है। इन सभी कार्यों में, खासकर युवा उद्यमियों के नए बिजनेस आइडियाज और स्टार्टअप्स को जरूरी सहयोग देने के काम में शांतनु उनके सहायक और सलाहकार की भूमिका में हैं।

शांतनु का पशुओं के प्रति विशेष लगाव

शांतनु ने वह कहानी भी साझा की है, जिसने उन्हें रतन टाटा तक पहुंचाया। शांतनु ने बताया है कि उनके परिवार की पांच पीढ़ियों ने टाटा समूह में सेवाएं दीं। प्रबंधन या बड़े पद पर नहीं, बल्कि टाटा मोटर्स में मैकेनिक या इंजीनियर आदि पदों पर। बात 2016 की है, इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद 24 साल के शांतनु भी गृहनगर पुणे में टाटा मोटर्स की एक यूनिट में नौकरी कर रहे थे। एक रात घर लौटते हुए उन्होंने देखा कि तेज रफ्तार कार ने सड़क पार कर रहे एक कुत्ते को रौंद डाला है। पशुओं के प्रति विशेष लगाव के कारण वह विचलित हो उठे। पता चला कि अंधेरे के कारण ऐसे हादसे बड़ी संख्या में होते हैं। शांतनु ने इस समस्या का समाधान करने की ठान ली। कुछ दोस्तों को जोड़ा, चंदा जुटाया और सड़कों पर भटकते बेसहारा कुत्तों, पशुओं के गले में पहनाए जा सकने वाले विशेष रेडियम युक्त और टिकाऊ पट्टे तैयार किए। देखते ही देखते, शहर भर के बेसहारा पशुओं के गले में ये पट्टे थे। दुर्घटनाएं थम गईं।

‘टाटा कर्मी’ शांतनु द्वारा शुरू की गई इस मुहिम (मोटोपाज) की जानकारी कुछ माह बाद रतन टाटा तक पहुंची तो उन्होंने शांतनु को मुंबई स्थित ऑफिस आकर मिलने को कहा। शांतनु की रतन टाटा से वह मुलाकात अनूठी दोस्ती में तब्दील होती गई। बता दें कि रतन टाटा का पशु प्रेम जगजाहिर है। अविवाहित रहने के कारण उनका परिवार तो है नहीं। घर में मौजूद पालतू कुत्ते ही उनके लिए बेहद खास हैं। रतन ने शांतनु की उस मुहिम- मोटोपाज को स्थायी बनाने के लिए पर्याप्त फंड मुहैया कर दिया।

शांतनु ने बताया कि कुछ माह बाद जब उन्होंने रतन टाटा को बताया कि वह एमबीए करने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी जा रहे हैं, और इच्छा व्यक्त की कि लौटकर टाटा समूह को ही सेवाएं देना चाहते हैं, तो उन्होंने खुशी जताई। एमबीए करने के बाद 2018 में जब शांतनु स्वदेश लौटे तो उन्होंनेअपने ऑफिस में यह बड़ी जिम्मेदारी उन्हें सौंपी। शांतनु ने बताया है कि 81 वर्षीय रतन टाटा आज भी जीवन और कर्म के प्रति अपने उच्चतम लक्ष्य को लेकर कितने सजग और संकल्पित हैं।

तुम क्या हो और मैं क्या हूं...

बकौल शांतनु, वह बेहद बुद्धिमान व्यक्ति हैं। उनका अथाह अनुभव और व्यावहारिक ज्ञान उन्हें सोच की ऊंचाइयों पर स्थापित करता है। चाहे नई टेक्नोलॉजी की बात हो या नए आइडिया की, वह हर लेटेस्ट ट्रेंड से वाकिफ रहते हैं। उनकी दूरदर्शिता, बुद्धिमत्ता और जमीनी एप्रोच किसी भी शुरुआत की सफलता की गारंटी बन जाती है। उनकी शख्सियत को समझने वाला यह सहज ही बता सकता है कि वह एक महान इंसान हैं। वह कभी किसी को भी यह महसूस नहीं होने देते कि- तुम क्या हो और मैं क्या हूं।