यूं ही नहीं इसका नाम है छत्तीसगढ़, जानें यहां की 36 भाजियां और उनके फायदे
प्रदेश की कुछ ऐसी भाजियां ऐसी हैं जिनके तने को काट कर अलग स्थान में उगाने वे उपज जाती हैं। इसमें से मास्टर और चरोटा ऐसी ही भाजियां हैं। इनके उत्पादन में किसान की लागत भी कम लगती है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 05 Dec 2018 10:55 PM (IST)
रायपुर [जागरण स्पेशल]। धान का कटोरा कहे जाने वाला छत्तीसगढ़ हरी-भरी भाजियों का भी गढ़ है। प्रदेश में भाजियों की 80 प्रजातियां एक समय पाई जाती थीं। इसमें 36 प्रकार की भाजियां ऐसी हैं जिन्हें आज भी लोग चाव से खा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कृषि वैज्ञानिकों ने शोध में इन भाजियों के तरह-तरह के फायदे भी बताए हैं। शोध में पाया गया है कुलथी भाजी से पथरी की बीमारी आसानी से दूर की जा सकती है। तो वहीं दूसरी ओर मास्टर भाजी और चरोटा में सर्वाधिक फायबर होता है जो पेट की बीमारियां दूर करता है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. जीडी साहू का मानना है कि गांव में आज भी करीब 36 प्रकार की भाजियां खाई जाती है। जिनमें प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। वहीं सब्जी बाजार के दुकानदारों का कहना है कि अब मेथी, पालक और चौलाई के अलावा अन्य भाजियां कम आ रही हैं। पुराने लोग ही तरह-तरह की भाजियों की मांग करते हैं।
तने को काट कर लगाने से उग जाती है भाजी
प्रदेश की कुछ ऐसी भाजियां ऐसी हैं जिनके तने को काट कर अलग स्थान में उगाने वे उपज जाती हैं। इसमें से मास्टर और चरोटा ऐसी ही भाजियां हैं। इनके उत्पादन में किसान की लागत भी कम लगती है। कुछ भाजियां तो ऐसी है जो यहां की जमीन में स्वत: ही उग जाती है। मास्टर भाजी का स्वाद लगभग पालक की तरह ही होता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि पालक में आयरन की मात्रा अधिक होती है, वहीं मास्टर भाजी में फाइबर अधिक होता है। इसके अलावा लाखड़ी भाजी पेट को साफ करने के लिए काफी फायदेमंद होती है।
प्रदेश की कुछ ऐसी भाजियां ऐसी हैं जिनके तने को काट कर अलग स्थान में उगाने वे उपज जाती हैं। इसमें से मास्टर और चरोटा ऐसी ही भाजियां हैं। इनके उत्पादन में किसान की लागत भी कम लगती है। कुछ भाजियां तो ऐसी है जो यहां की जमीन में स्वत: ही उग जाती है। मास्टर भाजी का स्वाद लगभग पालक की तरह ही होता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि पालक में आयरन की मात्रा अधिक होती है, वहीं मास्टर भाजी में फाइबर अधिक होता है। इसके अलावा लाखड़ी भाजी पेट को साफ करने के लिए काफी फायदेमंद होती है।
गोभी और मुनगे की भाजी
प्रदेश में भाजियों की श्रेणी में गोभी के पत्ते, अरबी का पत्ते और मुनगा के पत्ते को भाजियों की श्रेणी में रखा गया है। वैज्ञानिक जीडी साहू बताते हैं कि प्रदेशवासी भाजियों को मौसम के अनुसार ज्यादा सेवन करते हैं। इसमें मूली की भाजी और लाल भाजी को गर्मीयों के दिनों में ज्यादा पसंद किया जाता है। कारण है कि मूली और लाल भाजी गर्मी के दिनों में शरीर का तापमान नियंत्रित रखती है। वैसे ठंड का मौसम ऐसा मौसम है जिसमें सभी प्रकार की भाजियां आसानी से मिल जाती हैं। ये हैं 36 भाजियां
पालक, चौलाई, मैथी, मूली भाजी, प्याज भाजी, सरसों भाजी, भथुआ, खेड़ा, चरोटा, चुनचुनिया, गोभी भाजी, चना, लाखड़ी, कुसमी, मास्टर, अमारी, पटवा, चना भाजी, कुम्हड़ा भाजी, लाल भाजी, कांदा भाजी, करमत्ता, मूनगा भाजी, तिनपनिया, लाखड़ी, कूलथी, आलू भाजी, कांठ गोभी भाजी, खोटनी भाजी, जरी भाजी, झुरगा भाजी, चनौटी, पहुना, केनी, उरीद भाजी, अमुर्री भाजी
प्रदेश में भाजियों की श्रेणी में गोभी के पत्ते, अरबी का पत्ते और मुनगा के पत्ते को भाजियों की श्रेणी में रखा गया है। वैज्ञानिक जीडी साहू बताते हैं कि प्रदेशवासी भाजियों को मौसम के अनुसार ज्यादा सेवन करते हैं। इसमें मूली की भाजी और लाल भाजी को गर्मीयों के दिनों में ज्यादा पसंद किया जाता है। कारण है कि मूली और लाल भाजी गर्मी के दिनों में शरीर का तापमान नियंत्रित रखती है। वैसे ठंड का मौसम ऐसा मौसम है जिसमें सभी प्रकार की भाजियां आसानी से मिल जाती हैं। ये हैं 36 भाजियां
पालक, चौलाई, मैथी, मूली भाजी, प्याज भाजी, सरसों भाजी, भथुआ, खेड़ा, चरोटा, चुनचुनिया, गोभी भाजी, चना, लाखड़ी, कुसमी, मास्टर, अमारी, पटवा, चना भाजी, कुम्हड़ा भाजी, लाल भाजी, कांदा भाजी, करमत्ता, मूनगा भाजी, तिनपनिया, लाखड़ी, कूलथी, आलू भाजी, कांठ गोभी भाजी, खोटनी भाजी, जरी भाजी, झुरगा भाजी, चनौटी, पहुना, केनी, उरीद भाजी, अमुर्री भाजी
आयुर्वेद के अनुसार भाजियों के फायदे
डॉ. हरिन्द्रमोहन शुक्ला के अनुसार कुलथी भाजी के निरंतर सेवन से किडनी में होने वाली पथरी को दूर किया जा सकता है। वहीं चना और मुनगा भाजी पेट साफ करने में सहायक होती है। गर्मी में प्याज भाजी और चरोटा के सेवन से लू से बचा जा सकता है। थोक बाजार में भाजियों की खपत
राजधानी के थोक बाजार में करीब 12 टन भाजियों की खपत प्रतिदिन होती है। यहां आने वाले भाजियों की सीमावर्ती राज्यों महाराष्ट्र, ओड़िसा, उत्तरप्रदेश, झारखंड और मध्यप्रदेश में सप्लाई की जाती है।ये हैं 36 भाजियों की खासियत
(आयुर्वेद डॉ. हरिन्द्र मोहन शुक्ला के मुताबिक)
पालक- सामान्यत: पालक में पचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन ए और कैल्शियम भी अधिक होता है।
चौलाई- 12 महिनों की भाजी के रूप में पहचाने जाने वाली भाजी है चौलाई। थोड़ा स्वाद मैथी और पालक के बीच का होता है, लेकिन स्वास्थ के लिए काफी लाभदायक है। रक्त के संचार और धमनियांे के विकास में सहायक होती है।
मेथी- मैथी का पराठा खाओ या फिर सब्जी। दाल में स्वाद लाना है तो मैथी की पत्ती का छांैक लगाओ। इसके अलावा पेट की क्रिमी से लेकर सिर दर्द जैसी आम समस्याओं से मेथी भाजी से निजात दिलाती है।
मूली भाजी- मूली भाजी ठंड में शरीर के लिए काफी लाभदायक है। इसके अलावा यह चर्म रोग जैसी समस्याओं को भी दूर करती है।
प्याज भाजी- मैथी के बाद प्याज की भाजी से भी छौंक खूब लगाया जाता था। इसके अलावा प्याज भाजी काफी कारगर है। पेट में सल्फर, आयरन और विटामिन सी सभी की मात्रा पर्याप्त मात्रा में पहुंचाती है।
सरसों भाजी- ठंड की सबसे अच्छी भाजी सरसों। स्वाद में तीखा पन लेकिन लाजवाब। स्वास्थ के लिहाज से ठंड के लिए काफी लाभदायक। इसके अलावा पैर में झिनझिनी, नसों में खिचाव के लिए सरसों की भाजी काभी कारगर है। कारण तेलीय पदार्थ की अधिकता।
भथुआ भाजी- पालक की तरह स्वाद वाली भथुआ काफी स्वास्थवर्धक है। कभी शफैयता बना लो या फिर चने की दाल के साथ मिश्रण से स्वाद और अनोखा हो जाता है। वहीं विटामिन और प्रोटिन की सर्वाधिक रहती है। पैरों के लिगामेंट के लिए फायदेमंद।
खेड़ा भाजी- सर्दी-जुखाम में जेड़ा भाजी का पेय पदार्थ पीने से काफी हद तक आराम मिलता है। तासीर गर्म होने के कारण ये ठंड में काफी फायदे मंद है।
चरोटा- समान्यत: पेट दर्द की समस्या में ग्रामीण चरोटा को खाना पसंद करते हैं। स्वाद पनसुत्ते जैसा लेकिन शरीर के लिए काफी फायदेमंद है। पेचिस हो या फिर पेट का मरोड़ सभी के लिए ये भाजी लाभदायक है।
चुनचुनिया भाजी- पचाऊ भाजी चुनचुनिया भाजी। कभी पेट साफ न हो। शरीर भारी लग रहा हो तो इसे खाना प्रदेश के ग्रामीण पसंद करते हैं। जो भी पेट में जमा हो साफ हो जाता है।
गोभी भाजी- गोभी समान्यत: सभी को पसंद आती है लेकिन उसके पत्ते को बहुत ही कम लोगों ने चखा है। विटामिन सी से परिपूर्ण पत्ता शरीर की हड्डियों के विकास और युवा अवस्था में शारीरिक विकास के लिए कारगर है।
चना भाजी- चना की स्वाद सभी को पसंद होता है, लेकिन इसकी पत्ती भी काभी कारगर है। कभी हाजमा खराब हो तो चना भाजी खा हो पेट साफ हो जाएगा।
लाखड़ी- प्रदेश की स्थानिय दाल लाखड़ी खूब खाई जाती है, लेकिन इसकी पत्तियों की भाजी भी खूब पसंद की जाती है। आयरन और कैल्शियम से परिपूर्ण है, लेकिन अधिक मात्रा में खाने से नुकसान करती है।
कुसमी- पत्तियों की बनावट के कारण अनोखी दिखने वाली कुसमी भाजी आयुर्वेद में काफी कारगर है। इसके रस को पीने से गले की खरास दूर हो जाती है।
मास्टर भाजी- पालक की तरह स्वाद रखने वाली मास्टर भाजी है। इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है।
अमारी- खट्टा भाजी के नाम से जाने वाली अमारी भाजी काफी लाभदायक है। पेट मरोड रहा हो या फिर अपच हो रही है तो थोड़ी सी अमारी भाजी उसके लिए लाभदायक होती है।
पटवा भाजी- खट्टी भाजी में दूसरी भाजी। स्वाद भी अनोखा। खासकर इसकी चटनी खूब पसंद की जाती है, लेकिन गर्मी के दिनों में लू से बचाती है।
कुम्हड़ा भाजी - कद्दु के पत्ते की भाजी को ही कुम्हड़ा भाजी कहा जाता है। जिस भी व्यक्ति के बाल झड़ रहे हैं वह इसका सेवन करें तो बाल झड़ना रूक जाएगा।
लाल भाजी- चावल के साथ लाल भाजी का स्वाद लजीज लगता है। गर्मी के दिनों में पेट के लिए काफी लाभदायक है।
कांदा भाजी- बेल के आकार में फलने वाली भाजी को कांदा भाजी के नाम से जाना जाता है। त्वचा संबंधी बीमारी के लिए लाभदायक।
करमत्ता भाजी- बेसन के साथ बनाओ तो स्वाद आता है। मुंह के छाले को ठीक करता है।
मूनगा भाजी- मूनगा की पत्तियां को ही मूनगा भाजी के नाम से जाना जाता है। आंखों की रोशनी के लिए लाभदायक।
तिनपनिया- जंगलों में पाई जाने वाली तिपनिया भाजी खूब पसंद की जाती है। शरीर में किसी भी प्रकार का दाद, खुजली हो रही है तो यह लाभदायक है।
कूलथी- किडनी से संबंधित बीमारियों के लिए लाभदायक है। किडनी में होने वाली पथरी को दूर करने में सहायक है।
आलू भाजी- आलू में पाए जाने वाली सभी तत्व इसमें भी जाए जाते हैं। जो शरीर के लिए लाभदायक है।
गांठ गोभी भाजी - गोभी की तरह ही गांठ गोभी के पत्तों की भाजी खाई जाती है। इसमें सभी प्राकर के तत्व पाए जाते है। कैल्शियम से लेकर आयरन तक।
खोटनी भाजी- सल्फर से लेकर आयरन सभी कुछ खोटनी भाजी में पाया जाता है।
जरी भाजी- इस भाजी को मूंगना की तरह खाया जाता है। ग्रीन ब्लड के सेल्स सबसे अधिक इसी में पाए जाते हैं।
झुरगा भाजी- झुरगा का अर्थ सामान्यत: रसेदार के रूप में जाना जाता है लेकिन इस भाजी को ही झुरगा भाजी कहा जाता है। सभी तरह के मिनलर पाए जाते हैं।
चनौटी- खास तरह की भाजी में चनौटी भाजी पाई जाती है। इसे बस्तर के लोग सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। जोड़ के दुखने और दर्द की समस्या के लिए उपयोग की जाती है।
पहुना- पहुना भाजी कुछ ही प्रदेश के इलाकों में पाई जाती है। खास बात ये है कि गर्भवर्ती महिलाओं के लिए यह काफी लाभदायक है।
केनी- ओड़ीसा और प्रदेश के सीमा रेखा पर इस भाजी को ज्यादा उगाया जाता है। खास बात ये है कि केनी में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो नसों की खिचाव को दूर करते हैं।
उरीद भाजी- उरद दाल के पौधे की पत्ती को उरीद भाजी के नाम से जाना जाता है। खास बात ये है कि भाजी में सभी प्रकार के विटामिन और प्रोटिन पाए जाते हैं।
अमुर्री भाजी- अमुर्री भाजी ऐसी भाजी है जो बच्चों को खिलाई जाती है ताकी उनके विकास में कारगर हो। बातें बनाने में आप जैसा भला कोई और कहां, फिर इसके बारे में आप क्यों हैं अंजान!
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डॉ. हरिन्द्रमोहन शुक्ला के अनुसार कुलथी भाजी के निरंतर सेवन से किडनी में होने वाली पथरी को दूर किया जा सकता है। वहीं चना और मुनगा भाजी पेट साफ करने में सहायक होती है। गर्मी में प्याज भाजी और चरोटा के सेवन से लू से बचा जा सकता है। थोक बाजार में भाजियों की खपत
राजधानी के थोक बाजार में करीब 12 टन भाजियों की खपत प्रतिदिन होती है। यहां आने वाले भाजियों की सीमावर्ती राज्यों महाराष्ट्र, ओड़िसा, उत्तरप्रदेश, झारखंड और मध्यप्रदेश में सप्लाई की जाती है।ये हैं 36 भाजियों की खासियत
(आयुर्वेद डॉ. हरिन्द्र मोहन शुक्ला के मुताबिक)
पालक- सामान्यत: पालक में पचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन ए और कैल्शियम भी अधिक होता है।
चौलाई- 12 महिनों की भाजी के रूप में पहचाने जाने वाली भाजी है चौलाई। थोड़ा स्वाद मैथी और पालक के बीच का होता है, लेकिन स्वास्थ के लिए काफी लाभदायक है। रक्त के संचार और धमनियांे के विकास में सहायक होती है।
मेथी- मैथी का पराठा खाओ या फिर सब्जी। दाल में स्वाद लाना है तो मैथी की पत्ती का छांैक लगाओ। इसके अलावा पेट की क्रिमी से लेकर सिर दर्द जैसी आम समस्याओं से मेथी भाजी से निजात दिलाती है।
मूली भाजी- मूली भाजी ठंड में शरीर के लिए काफी लाभदायक है। इसके अलावा यह चर्म रोग जैसी समस्याओं को भी दूर करती है।
प्याज भाजी- मैथी के बाद प्याज की भाजी से भी छौंक खूब लगाया जाता था। इसके अलावा प्याज भाजी काफी कारगर है। पेट में सल्फर, आयरन और विटामिन सी सभी की मात्रा पर्याप्त मात्रा में पहुंचाती है।
सरसों भाजी- ठंड की सबसे अच्छी भाजी सरसों। स्वाद में तीखा पन लेकिन लाजवाब। स्वास्थ के लिहाज से ठंड के लिए काफी लाभदायक। इसके अलावा पैर में झिनझिनी, नसों में खिचाव के लिए सरसों की भाजी काभी कारगर है। कारण तेलीय पदार्थ की अधिकता।
भथुआ भाजी- पालक की तरह स्वाद वाली भथुआ काफी स्वास्थवर्धक है। कभी शफैयता बना लो या फिर चने की दाल के साथ मिश्रण से स्वाद और अनोखा हो जाता है। वहीं विटामिन और प्रोटिन की सर्वाधिक रहती है। पैरों के लिगामेंट के लिए फायदेमंद।
खेड़ा भाजी- सर्दी-जुखाम में जेड़ा भाजी का पेय पदार्थ पीने से काफी हद तक आराम मिलता है। तासीर गर्म होने के कारण ये ठंड में काफी फायदे मंद है।
चरोटा- समान्यत: पेट दर्द की समस्या में ग्रामीण चरोटा को खाना पसंद करते हैं। स्वाद पनसुत्ते जैसा लेकिन शरीर के लिए काफी फायदेमंद है। पेचिस हो या फिर पेट का मरोड़ सभी के लिए ये भाजी लाभदायक है।
चुनचुनिया भाजी- पचाऊ भाजी चुनचुनिया भाजी। कभी पेट साफ न हो। शरीर भारी लग रहा हो तो इसे खाना प्रदेश के ग्रामीण पसंद करते हैं। जो भी पेट में जमा हो साफ हो जाता है।
गोभी भाजी- गोभी समान्यत: सभी को पसंद आती है लेकिन उसके पत्ते को बहुत ही कम लोगों ने चखा है। विटामिन सी से परिपूर्ण पत्ता शरीर की हड्डियों के विकास और युवा अवस्था में शारीरिक विकास के लिए कारगर है।
चना भाजी- चना की स्वाद सभी को पसंद होता है, लेकिन इसकी पत्ती भी काभी कारगर है। कभी हाजमा खराब हो तो चना भाजी खा हो पेट साफ हो जाएगा।
लाखड़ी- प्रदेश की स्थानिय दाल लाखड़ी खूब खाई जाती है, लेकिन इसकी पत्तियों की भाजी भी खूब पसंद की जाती है। आयरन और कैल्शियम से परिपूर्ण है, लेकिन अधिक मात्रा में खाने से नुकसान करती है।
कुसमी- पत्तियों की बनावट के कारण अनोखी दिखने वाली कुसमी भाजी आयुर्वेद में काफी कारगर है। इसके रस को पीने से गले की खरास दूर हो जाती है।
मास्टर भाजी- पालक की तरह स्वाद रखने वाली मास्टर भाजी है। इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है।
अमारी- खट्टा भाजी के नाम से जाने वाली अमारी भाजी काफी लाभदायक है। पेट मरोड रहा हो या फिर अपच हो रही है तो थोड़ी सी अमारी भाजी उसके लिए लाभदायक होती है।
पटवा भाजी- खट्टी भाजी में दूसरी भाजी। स्वाद भी अनोखा। खासकर इसकी चटनी खूब पसंद की जाती है, लेकिन गर्मी के दिनों में लू से बचाती है।
कुम्हड़ा भाजी - कद्दु के पत्ते की भाजी को ही कुम्हड़ा भाजी कहा जाता है। जिस भी व्यक्ति के बाल झड़ रहे हैं वह इसका सेवन करें तो बाल झड़ना रूक जाएगा।
लाल भाजी- चावल के साथ लाल भाजी का स्वाद लजीज लगता है। गर्मी के दिनों में पेट के लिए काफी लाभदायक है।
कांदा भाजी- बेल के आकार में फलने वाली भाजी को कांदा भाजी के नाम से जाना जाता है। त्वचा संबंधी बीमारी के लिए लाभदायक।
करमत्ता भाजी- बेसन के साथ बनाओ तो स्वाद आता है। मुंह के छाले को ठीक करता है।
मूनगा भाजी- मूनगा की पत्तियां को ही मूनगा भाजी के नाम से जाना जाता है। आंखों की रोशनी के लिए लाभदायक।
तिनपनिया- जंगलों में पाई जाने वाली तिपनिया भाजी खूब पसंद की जाती है। शरीर में किसी भी प्रकार का दाद, खुजली हो रही है तो यह लाभदायक है।
कूलथी- किडनी से संबंधित बीमारियों के लिए लाभदायक है। किडनी में होने वाली पथरी को दूर करने में सहायक है।
आलू भाजी- आलू में पाए जाने वाली सभी तत्व इसमें भी जाए जाते हैं। जो शरीर के लिए लाभदायक है।
गांठ गोभी भाजी - गोभी की तरह ही गांठ गोभी के पत्तों की भाजी खाई जाती है। इसमें सभी प्राकर के तत्व पाए जाते है। कैल्शियम से लेकर आयरन तक।
खोटनी भाजी- सल्फर से लेकर आयरन सभी कुछ खोटनी भाजी में पाया जाता है।
जरी भाजी- इस भाजी को मूंगना की तरह खाया जाता है। ग्रीन ब्लड के सेल्स सबसे अधिक इसी में पाए जाते हैं।
झुरगा भाजी- झुरगा का अर्थ सामान्यत: रसेदार के रूप में जाना जाता है लेकिन इस भाजी को ही झुरगा भाजी कहा जाता है। सभी तरह के मिनलर पाए जाते हैं।
चनौटी- खास तरह की भाजी में चनौटी भाजी पाई जाती है। इसे बस्तर के लोग सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। जोड़ के दुखने और दर्द की समस्या के लिए उपयोग की जाती है।
पहुना- पहुना भाजी कुछ ही प्रदेश के इलाकों में पाई जाती है। खास बात ये है कि गर्भवर्ती महिलाओं के लिए यह काफी लाभदायक है।
केनी- ओड़ीसा और प्रदेश के सीमा रेखा पर इस भाजी को ज्यादा उगाया जाता है। खास बात ये है कि केनी में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो नसों की खिचाव को दूर करते हैं।
उरीद भाजी- उरद दाल के पौधे की पत्ती को उरीद भाजी के नाम से जाना जाता है। खास बात ये है कि भाजी में सभी प्रकार के विटामिन और प्रोटिन पाए जाते हैं।
अमुर्री भाजी- अमुर्री भाजी ऐसी भाजी है जो बच्चों को खिलाई जाती है ताकी उनके विकास में कारगर हो। बातें बनाने में आप जैसा भला कोई और कहां, फिर इसके बारे में आप क्यों हैं अंजान!
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