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पाकिस्‍तान में अब तक 7 पूर्व प्रधानमंत्रियों की हो चुकी है गिरफ्तारी, एक को फांसी तो एक की हुई थी हत्‍या

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अल-काद‍िर ट्रस्‍ट मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन सिर्फ इमरान खान ही नहीं पाकिस्तान के सात पूर्व प्रधानमंत्रियों की पहली भी गिरफ्तारी हो चुकी है। जानिए क्या रहा पाकिस्तान में प्रधानमंत्रियों की सियासत का हाल। (जागरण ग्राफिक्स)

By Preeti GuptaEdited By: Preeti GuptaUpdated: Wed, 10 May 2023 06:35 PM (IST)
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पाकिस्तान की सियासत का रहा है काला सच
नई दिल्ली, प्रीति गुप्ता। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान को मंगलवार यानी 9 मई को गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें अल-काद‍िर ट्रस्‍ट मामले में इस्लामाबाद हाईकोर्ट से गिरफ्तार किया गया था। उनकी गिरफ्तारी के बाद से ही पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। वहीं, इमरान खान भी अपनी हत्या की आशंका जता चुके हैं। पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री को गिरफ्तार किये जाने की घटना कोई पहली बार नहीं हुआ है, बल्कि पाकिस्तान के शासन में पहले भी मुल्क के सात प्रधानमंत्रियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। जहां किसी प्रधानमंत्री की गिरफ्तारी कर देश निकाला दिया गया तो वहीं कुछ को मौत की सजा भी दी गई थी। आइए, जानते हैं क्या रहा है पाकिस्तान में प्रधानमंत्रियों का हाल।

सत्ता में नहीं टिक पाए पाकिस्तानी पीएम

पाकिस्तान के पूर्व पीएम हुसैन शहीद सुहरावर्दी को जुलाई 1960 में कानून के उल्लंघन का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्हें गिरफ्तार कर ट्रायल कोर्ट में बिना सुनवाई किए कराची की सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया था। यूसुफ रजा गिलानी 2008 में गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री थे। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में अरेस्ट वॉरंट जारी कर उन्हें गिरफ्तार किया गया था। वहीं, नवाज शरीफ को 1999 में कारगिल युद्ध के बाद सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। जिसके बाद परवेज मुशर्रफ सरकार के दौरान नवाज शरीफ को दस साल तक देश से बाहर भेज दिया गया था। लंदन से पाकिस्तान लौटने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

बेनजीर भुट्टो और जुल्फिकार अली भुट्टो का हुआ दर्दनाक अंत

जनवरी 2017 से मई 2018 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे शाहीद खाकान अब्बासी को भी सलाखों के पीछे जाना पड़ा था। जुलाई 2019 में उन्हें एलएनजी के इम्पोर्ट कॉन्ट्रैक्ट में भ्रष्टाचार करने के आरोप में एनएबी की टीम ने गिरफ्तार कर लिया था। पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं बेनजीर भुट्टो का दर्दनाक अंत हुआ था। साल 1986 में उन्हें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कराची में एक रैली में सरकार की आलोचना करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। वहीं, 1999 में बेनजीर भुट्टो को भ्रष्टाचार के आरोप में पांच साल की सजा सुनाई गई थी। सजा के बाद वह सात साल तक निर्वासन में रहीं थी, लेकिन साल 2007 में जब वह मुल्क वापस लौंटी तो आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई थी। बेनजीर भुट्टो की तरह ही पाकिस्तान के एक और पूर्व प्रधानमंत्री का भी इतना ही दर्दनाक अंत हुआ था। जुल्फिकार अली भुट्टो को विपक्षी नेता की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और बाद में उन्हें सजा-ए-मौत दे दी गई थी।

पाकिस्तान के ताकतवर नेता थे भुट्टो

जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं, जिन्हें साजिश के तहत फांसी पर लटका दिया गया था। जुल्फिकार अली भुट्टो का जन्म पांच जनवरी 1928 को अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के लरकाना में हुआ था। उन्होंने पाकिस्तान के नौवें प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था, लेकिन किसी को क्या खबर थी कि उनका अंत इतना दर्दनाक होगा कि पाकिस्तान के प्रशासन में उन्हें आज भी याद किया जाता है। जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक माने जाते थे।

जिसको दिया पद उसने ही किया विश्वासघात

जुल्फिकार अली भुट्टो ने 14 अगस्त 1973 से पांच जुलाई 1977 तक देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला था। वह अपने पांच साल का भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे। उन्होंने एक मार्च 1976 को लेफ्टिनेंट जनरल जिया उल हक को सेना का प्रमुख नियुक्‍त कर दिया। भुट्टो पूरी तरह से जिया उल हक पर भरोसा करते थे। उन्हें लगता था कि जिया एक कट्टर धार्मिक जनरल हैं और एक ऐसे आर्मी ऑफिसर हैं, जिसे राजनीति में कोई दिलचस्‍पी नहीं हैं, लेकिन उनकी ये सोच पूरी तरह गलत साबित हुई।

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साल 1979 में मिली सजा-ए-मौत

जिया उल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ विश्वासघात किया था। उसने ही भुट्टो के खिलाफ साजिश रची थी। उसने पांच जुलाई 1977 को देश में मार्शल लॉ लगा दिया और तख्तापलट कर दिया। मार्शल लॉ के बाद जिया उल हक ने सभी राजनीतिक पार्टियों को भी खत्‍म कर दिया। जिया ने भुट्टो पर विपक्षी नेता नवाज मोहम्‍मद अहमद खान की हत्‍या का आरोप लगाते हुए उन्हें गिरफ्तार करवा कर जेल में डाल दिया। बाद में लाहौर हाईकोर्ट के जस्टिस ख्वाजा मोहम्मद अहमद सामदानी ने उन्हें यह कहकर रिहा कर दिया कि उनकी गिरफ्तारी का कोई आधार नहीं है। हालांकि, उन्हें तीन दिन बाद दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया और अंत में 4 अप्रैल 1979 को फांसी की सजा दे दी गई थी।

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