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देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी कुपोषण का दंश झेलने को मजबूर

खाद्य उत्पादों में जहर घोलने का काम खेत के स्तर से शुरू होकर अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचने के प्रत्येक चरण पर हो रहा है। किसान अधिक उपज पैदा करने केलिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 12 Mar 2018 11:00 AM (IST)
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देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी कुपोषण का दंश झेलने को मजबूर

[देवाशीष उपाध्याय]। आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद जहां हम विकास के मोर्चे पर ऊंची छलांग लगाने का दावा करते हैं, वहीं देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कुपोषण का दंश झेलने को मजबूर है। वहीं जिस तबके के पास पोषक सामग्री तक पहुंच है वह जानबूझकर उससे दूर होकर कुपोषण का शिकार हो रहा है। यह और भी चिंता का विषय है। परिणामस्वरूप देश का हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी बीमारी से ग्रसित है। पाश्चात्य संस्कृति आधारित अनियमित दिनचर्या तथा खाने में पोषण और पौष्टिकता के बजाय जायके को प्राथमिकता देना भी इसकी एक बड़ी वजह है। यह देश के उन्नत और सुरक्षित भविष्य के लिये भयावह संकेत है। वहीं मिलावटखोर भी हर चीज में मिलावट कर लोगों की सेहत से खेल कर रहे हैं जो बेहद खतरनाक हो चला है।

सेहत के लिए बेहद खतरनाक

खाद्य उत्पादों में जहर घोलने का काम खेत के स्तर से शुरू होकर अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचने के प्रत्येक चरण पर हो रहा है। किसान अधिक उपज पैदा करने केलिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। किसानों के यहां से व्यापारी और वहां से अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचने के दौरान खाद्य उत्पादों का तमाम रसायनों के जरिये संरक्षण और प्रसंस्करण किया जाता है जो इंसानी सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। विकास की अंधी दौड़ में लोगों के पास खाने के लिए समय ही नहीं है और इससे जंक फूड की संस्कृति भी बढ़ी है जिसे खाने से भूख से निजात तो मिल जाती है, लेकिन पोषण के पैमाने पर उनसे कुछ हासिल होने के बजाय उल्टा ही अधिक हो जाता है। इन फास्ट फूड व्यंजनों में ट्रांसफैट, चीनी, टेस्टमेकर, सोडियम और लेड सहित कई खतरनाक रसायनों का बड़े पैमाने पर उपयोग कर ‘स्वादिष्ट’ तो बनाया गया है, लेकिन वे किसी भी लिहाज से स्वास्थ्यवर्धक नहीं हैं। इनमें प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स का अभाव होता है जबकि ट्रांसफैट और चीनी बहुत बड़ी मात्र में होती है। इनमें फाइबर की कमी होने के कारण पाचन तंत्र और अन्य अंगों पर काफी बुरा असर पड़ता है।

कमजोर हो जाती है प्रतिरोधक क्षमता 

आवश्यक पोषक तत्वों के अभाव के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। परिणामस्वरूप मोटापा, मधुमेह, रक्तचाप, कैंसर, किडनी, कब्ज, लीवर संबंधी तमाम बीमारियां हो रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक 60-70 प्रतिशत बीमारियां मनुष्य की अनियमित दिनचर्या, असंतुलित एवं असुरक्षित खान-पान के कारण हो रही हैं। फास्ट फूड के प्रचार के लिए देसी-विदेशी कंपनियां तमाम सितारों की भी मदद ले रही हैं। इससे आम आदमी प्रभावित होता है। फल और सब्जियों में विटामिन, कैल्शियम, मिनरल, आयरन और एन्टीऑक्सीडेंट प्रचुर मात्र में पाए जाते हैं जो शरीर के सर्वागीण विकास और बीमारियों से बचने के लिए प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करते हैं, परंतु बढ़ती मांग को देखते हुए फल व सब्जियों की ज्यादा पैदावार के लिए रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा रहा है। इससे फल एवं सब्जियों के पोषक तत्व मर जाते हैं और उनकी पौष्टिकता घट जाती है।

रासायनिक तत्वों का इस्तेमाल

फल एवं सब्जियों में बड़े पैमाने पर रासायनिक तत्वों के इस्तेमाल के कारण इनकी प्राकृतिक अवसंरचना में परिवर्तन हो जाता है और ये शारीरिक पोषण के बजाय क्षरण का कारक बन जाते हैं। फल एवं सब्जियों के माध्यम से रासायनिक तत्व मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर अनेक बीमारियों को जन्म देते हैं। मनुष्य के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए संतुलित एवं सुरक्षित आहार की आवश्यकता पड़ती है, परंतु दुर्भाग्य से वर्तमान में बिकने वाले अधिकांश खाद्य पदार्थ मिलावटी, अधोमानक और असुरक्षित हैं। ऐसे में जानकारी, जागरूकता और सावधानी बरतकर ही अधिकांश संभावित बीमारियों के खतरे को कम किया जा सकता है और स्वास्थ्य के क्षेत्र में होने वाली परेशानियों एवं खर्च को कम किया जा सकता है। इस पर समय रहते ध्यान देना होगा।

(लेखक- खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन हाथरस में अभिहित अधिकारी है।)

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