यूं ही पहेली नहीं है अबुझमाड़, मुगलों के वक्त भी हुई थी यहां एक नाकाम कोशिश
मुगलकाल में अकबर ने यहां भूमि का सर्वे कराने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रहे। वर्ष 1909 में ब्रिटिश हुकूमत को भी कामयाबी नहीं मिली।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 15 Jun 2018 02:27 PM (IST)
[जागरण स्पेशल]। छत्तीसगढ़ का अबूझमाड़ संसार के सबसे रहस्यमय स्थानों में से एक है। करीब 4400 वर्ग किलोमीटर में फैले अबूझमाड़ के जंगलों, पहाड़ों, गहरी घाटियों के बीच गुमनाम 237 गांवों का भू-सर्वेक्षण कभी नहीं हो पाया। मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक ने जतन किए, लेकिन सफल नहीं हो सके। हजारों साल से कोई हुकूमत यहां प्रवेश नहीं कर सकी।
मुगलकाल में अकबर ने यहां भूमि का सर्वे कराने की कोशिश की, लेकिन नाकामयाब रहे। वर्ष 1909 में ब्रिटिश हुकूमत ने भी ऐसा ही प्रयास किया, मगर उन्हें भी कामयाबी नहीं मिली। अब जाकर छत्तीसगढ़ सरकार को आंशिक कामयाबी मिली है। संभावित 237 गांवों में से 10 का हवाई सर्वे किया जा सका है। इसके आधार पर इसी 13 मई को विकास यात्रा लेकर नारायणपुर जिला पहुंचे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने पांच गांवों के 169 परिवारों को भूमि के दस्तावेज सौंपे।
हवाई सर्वे हुआ, नहीं हो सका भौतिक सत्यापन
दरअसल, अबूझमाड़ नक्सलियों के कब्जे में है। वे राजस्व सर्वे का हिंसक विरोध कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने 11 मई 2007 में नारायणपुर को जिला बनाया। इसके बाद राजनांदगांव जिले से राजस्व निरीक्षकों की टीम अबूझमाड़ का सर्वे करने के लिए भेजी गई, लेकिन यह टीम डर कर लौट आई। सन 2009 में सरकार ने अबूझमाड़ के सर्वे के लिए 22 राजस्व निरीक्षकों की भर्ती की, लेकिन एक ने भी नौकरी ज्वाइन नहीं की। अंतत: अक्टूबर 2016 में सरकार ने आइआइटी रुड़की की मदद से भौगोलिक सूचना प्रणाली और दूरसंवेदी उपग्रह के जरिये यहां का सर्वे कराया। हालांकि भौतिक सत्यापन के लिए सर्वे टीम का गांव तक पहुंचना जरूरी था, जो आज भी नहीं हो पाया है।
कामयाब हुई कोया कमांडो की तैनाती बस्तर में नक्सलियों को पीछे खदेड़ने में कोया कमांडो बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के रूप में बस्तर में तैनात इस दस्ते के एक हजार जवानों ने मिजोरम में गुरिल्ला युद्ध का विशेष प्रशिक्षण लेने के बाद नक्सल मोर्चे पर कमान संभाली है। 2011 में समर्पित नक्सल लड़ाकों को राज्य सरकार ने एसपीओ (विशेष पुलिस अधिकारी) के रूप में नियुक्ति दी थी।
बाद में मानवाधिकार संगठनों की याचिका पर अदालत ने इनकी नियुक्ति को अवैधानिक ठहरा दिया था। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार ने कानून बनाकर सहायक आरक्षक का पद सृजित किया। इसके बाद बने इस बल में स्थानीय आदिवासी युवकों व आत्म समर्पित नक्सलियों को रखा गया। ये जवान स्थानीय बोली-भाषा और जंगल की विषमता, इतिहास व भूगोल से भली भांति परिचित हैं।लिहाजा नक्सली सबसे अधिक खौफ इन्हीं से खाते हैं। नक्सल उन्मूलन मुहिम में डीआरजी बस्तर संभाग के सभी सात जिलों में अधिकतर ऑपरेशन को अब लीड करती है। अबूझमाड़ में चलाए गए ऑपरेशन प्रहार-दो में भी इस दस्ते को अहम सफलता मिली। बकौल विवेकानंद सिन्हा, आइजी, बस्तर, नक्सल रणनीति की काट में यह दस्ता सबसे कारगर साबित हुआ है।
अबूझ पहेली हैअबूझ यानी जिसको बूझना संभव ना हो और माड़ यानी गहरी घाटियां और पहाड़। यह एक अत्यंत दुर्गम इलाका है। अबूझमाड़ और इसके निवासी आज तक अपने आदिकालीन स्वरूप में हैं। अबूझमाड़ में कितने गांवों में किसके पास कितनी जमीन है, चारागाह या सड़कें हैं या नहीं, अन्य चीजों की उपलब्धता कैसी है, इसका कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। ये गांव कहां हैं या इनकी सरहद कहां है, यह भी पता नहीं है। अबूझमाड़ दक्षिणी छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के नारायणपुर जिले में स्थित है। इसका कुछ भाग महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में भी आता है।
भारत के छह प्रमुख बाघ आश्रय स्थलइस क्षेत्र में हैं। गूगल मैप से पता चलता है कि इस इलाके में कोई सड़क नहीं है। यहां के गांव भी स्थिर नहीं हैं यानी इनकी जगह बदलती रहती है क्योंकि यहां रहने वाले माड़िया आदिवासी जगह बदल-बदल कर बेरवा पद्धति से खेती करते हैं।[रायपुर से अनिल मिश्रा और जगदलपुर से रीतेश पांडेय की रिपोर्ट]
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