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Supreme Court: पहले यौन शोषण बाद में समझौता, नहीं रद होगा केस; सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए टिप्पणी की कि यौन उत्पीड़न के मामले को इस आधार पर रद नहीं किया जा सकता कि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौता हो गया है। राजस्थान हाईकोर्ट ने समझौते के आधार पर यौन उत्पीड़न के मामलों को रद कर दिया गया था जिसको सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया और हाईकोर्ट के आदेश को रद कर दिया।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Thu, 07 Nov 2024 10:34 PM (IST)
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पहले यौन शोषण बाद में समझौता, नहीं रद होगा केस
जागरण डेस्क, नई दिल्ली। अक्सर हम देखते हैं कि यौन शोषण के मामले में समझौता होने के बाद कोर्ट केस को रद कर देता है। लेकिन एक में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौता होने के बाद भी यौन शोषण के मामले को रद नहीं किया जा सकता है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को भी रद कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए टिप्पणी की कि यौन उत्पीड़न के मामले को इस आधार पर रद नहीं किया जा सकता कि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौता हो गया है। राजस्थान हाईकोर्ट ने समझौते के आधार पर यौन उत्पीड़न के मामलों को रद कर दिया गया था जिसको सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया और हाईकोर्ट के आदेश को रद कर दिया।

पीठ ने सुनाया अहम फैसला

जस्टिस सीटी रविकुमार और पीवी संजय कुमार की खंडपीठ ने अहम फैसला सुनाया और कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले को आदेश को रद कर दिया गया है और खारिज कर दिया गया है, एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही कानून के अनुसार आगे बढ़ाई जाएगी। पीठ ने स्पष्ट किया कि उसने मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

बार और बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक फैसला पिछले साल अक्टूबर में सुरक्षित रखा गया था और यह उस मामले में आया था जिसमें यह सवाल था कि क्या सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए उच्च न्यायालय के पास आरोपियों के बीच समझौते के आधार पर यौन उत्पीड़न के मामले को रद करने की शक्ति है।

मामला राजस्थान का है

मामला 2022 का है। जब राजस्थान के गंगापुर में एक नाबालिग दलित लड़की ने सरकारी स्कूल के शिक्षक पर यौन उत्पीड़न का लगाया और पुलिस में शिकायत कराई थी। वहीं, पुलिस ने छानबीन करने के बाद शिक्षक के खिलाफ पॉक्सो एक्ट और एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया था और बाद में नाबालिग के खिलाफ बयान भी दर्ज किया गया था।

शीर्ष अदालत ने शुरू में कहा था कि किसी आपराधिक मामले में किसी अप्रभावित पक्ष द्वारा याचिका दायर नहीं की जा सकती है, हालांकि, बाद में इस मुद्दे को उठाने और इसकी जांच करने का फैसला किया गया। इसके बाद आदेश दिया गया कि आरोपी और पीड़िता के पिता को मामले में एक पक्ष बनाया जाए।