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21 वर्षों के बाद भारत की धरती पर सुपर साइक्‍लोन! 221 Kmph से तेज हो सकती है हवा की रफ्तार

1891 से 2002 के बीच कटक पुरी और बालासोर में करीब 83 बार चक्रवाती तूफान आ चुका है। इसमें सुपर साइक्‍लोन भी शामिल हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 19 May 2020 01:10 PM (IST)
21 वर्षों के बाद भारत की धरती पर सुपर साइक्‍लोन! 221 Kmph से तेज हो सकती है हवा की रफ्तार
नई दिल्‍ली। भारत के पूर्वी राज्‍यों में इस वक्‍त चक्रवाती तूफान 'एम्फन' का खतरा मंडरा रहा है। ये खतरा इसलिए भी अधिक है क्‍योंकि ये एक सुपर साइक्‍लोन है। इसकी वजह से चलने वाली हवा की गति 200 किमी प्रति घंटे से भी तेज हो सकती है। आपको बता दें कि भारत में इससे पहले इस तरह का सुपर साइक्‍लोन वर्ष 1999 में आया था जिसमें करीब 10,000 लोगों की मौत हो गई थी। भारत सरकार की तरफ से उसको राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया था। उससे भी पहले 3 नवंबर, 1970 को पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और पश्चिम बंगाल में भोला नाम का सुपर साइक्‍लोन आया था जिसको अब तक का सबसे अधिक भयावह चक्रवाती तूफान माना जाता है। इसमें करीब पांच लाख लोगों की मौत हुई थी और इस दौरान चलने वाली हवा की रफ्तार 240 किलोमीटर प्रति घंटे की थी। ये तूफान अपने साथ हर चीज को उड़ा और बहा ले गया था।

नेशनल साइक्‍लोन सिस्‍क मिटीगेशन प्रोजेक्‍ट (NCRMP) के मुताबिक कटक, पुरी और बालासोर में 1891 से 2002 के बीच करीब 83 बार चक्रवाती तूफान आ चुका है। इसमें यहां पर आने वाले सुपर साइक्‍लोन भी शामिल हैं। साइक्‍लोन को दरअसल कई चरणों में बांटा जाता है जिसके आधार पर इन्‍हें साइक्‍लोन या सुपर साइक्‍लोन की संज्ञा दी जाती है। सामान्‍य तौर पर आने वाले चक्रवाती तूफान के दौरान चलने वाली हवा की गति 34 से 47 किलो नॉट्स या 62 से 88 किमी प्रतिघंटा हो सकती है। वहीं इससे शक्तिशाली चक्रवाती तूफान के दौरान चलने वाली हवा की रफ्तार 48 से 63 किलो नॉट्स या 89 से 118 किमी प्रतिघंटा होती है। तीसरी श्रेणी में अधिक शक्तिशाली चक्रवाती तूफान आते हैं जिनमें हवा की रफ्तार 64 से लेकर 119 किलो नॉट्स या 119 से 221 किमी प्रतिघंटे की गति से हवाएं चलती हैं। इसके बाद चौथी और अंतिम श्रेणी सुपर साइक्‍लोन की होती है जिसमें हवा की रफ्तार 221 किमी प्रति घंटे से भी तेज होती है।

भारत में साइक्‍लोन की बात करें तो इनका इतिहास काफी लंबा रहा है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में वर्ष 2009 में भी 'आइला' नामक चक्रवाती तूफान आया था। इसकी वजह से 300 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और 10 लाख से अधिक लोग बेघर हो गए थे। वहीं 2008 में यहां पर 'फणि' साइक्लोन भी आया था। हालांकि ये दोनों ही सुपर साइक्‍लोन की श्रेणी के नहीं थे, लिहाजा इस बार भारत के पूर्वी तट पर एम्‍फन का खतरा अधिक है। जानकारों की मानें तो इस एक दशक के दौरान भारत ने काफी तरक्‍की की है। वहीं सरकार द्वारा समय पर लिए गए फैसलों से भी जानमाल की हानि को कम करने में सफलता मिली है। इस बार भी एम्‍फन को लेकर सरकार और एनडीआरएफ पूरी तरह से अलर्ट पर है।

एनडीआरएफ के महानिदेशक के मुताबिक ओडिशा में 17 कंपनियों को भेजा जा चुका है। एरिया साइक्लोन वार्निंग सेंटर, कोलकाता के निदेशक डॉ. गणेश कुमार दास के मुताबिक एम्फन की समुद्र में जितनी प्रचंडता दिखाई दे रही है, उतनी जमीन पर दिखाई नहीं देगी। उन्‍हें उम्‍मीद है कि जब ये तट से टकराएगा तो इसकी तीव्रता में कमी जरूर आएगी। जहां तक एम्‍फन की बात है तो आपको बता दें कि इससे चलने वाली हवा की रफ्तार का असर अलग-अलग होगा।