CAG की रिपोर्ट के बाद UP में पहली बार होगा अस्पतालों का थर्ड पार्टी आडिट
थर्ड पार्टी आडिट से पूरे प्रदेश की तस्वीर सामने आएगी और उसके बाद एक समग्र योजना तैयार कर अस्पतालों की स्थिति में सुधार किया जा सकता है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 23 Dec 2019 01:13 PM (IST)
लखनऊ, जेएनएन। भारतीय नियंत्रक एवं लेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में प्रदेश सरकार के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को हर मोर्चे पर फेल बताया गया है। लेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में वाह्य रोगी-अंत: रोगी, डायग्नोस्टिक सेवाएं, चिकित्सीय उपकरण, मानव संसाधन, संक्रमण नियंत्रण एवं औषधि प्रबंधन को लेकर गंभीर टिप्पणी की है। रिपोर्ट कहती है कि आधे से ज्यादा अस्पतालों में बर्न वार्ड, ट्रामा वार्ड के साथ ही डायलिसिस, फिजियेथेरेपी, मनोचिकित्सा के लिए भर्ती की व्यवस्था ही नहीं है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) तो केवल सांप काटने का इलाज केंद्र बनकर रह गए हैं। जिला अस्पतालों तक में एक्सरे मशीन नहीं है। कुछ विरोधाभास भी सामने आए हैं, मसलन राजधानी लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल में 74 फीसद डॉक्टरों की तो कमी मिली, लेकिन नर्सों की उपलब्धता 210 फीसद अधिक थी। 50 से लेकर 86 फीसद मरीजों को पांच मिनट से भी कम समय में डॉक्टर देख रहे हैं, जो आउटडोर में मर्ज खत्म करने, उसकी जांच और इलाज के लिए मानक के अनुसार बहुत ही कम है।
हृदयघात और निमोनिया के इलाज के मामले में सीएचसी के पास उपचार ही नहीं है। वे केवल रेफरल सेंटर बन कर रह गए हैं। उपचार में डायग्नोस्टिक सेवाओं की अति महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके बावजूद आधे से ज्यादा जिला अस्पतालों में एक्सरे मशीनों की कमी पाई गई है। ज्यादातर सीएचसी पर अल्ट्रासोनोग्राफी सुविधा नहीं है तो सीटी स्कैन की भी एक तिहाई अस्पतालों में सुविधा पाई गई है।
पैथोलॉजी जांच की सुविधा में कमी है तो जांच करने वाले लैब टेक्नीशियन भी काफी नहीं हैं। यहां तक कि इस क्षेत्र में निजी एजेंसियों को लगाए जाने के बावजूद कोई सुधार नहीं आया है। कैग को 22 सीएचसी में से छह में ही पैथोलॉजिकल सेवाएं मिली हैं। लेखा परीक्षक ने आइसीयू के मामले में नमूने के तौर पर 11 चिकित्सालयों की जांच की तो पाया कि लखनऊ और गोरखपुर को छोड़कर कहीं भी आइसीयू की सुविधा नहीं थी। उसे ट्रामा सेवाएं भी केवल बांदा और सहारनपुर में मिली हैं।
बहरहाल प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर भारत के नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक ने जब यह तस्वीर दिखाई है तो अफसरों के कानों पर भी जूं रेंगी है। यह पहला अवसर होगा जब स्वास्थ्य विभाग विभिन्न जिलों में स्थित अस्पतालों का थर्ड पार्टी आडिट कराएगा। आशय है कि जो आईना कैग ने दिखाया है, उसे विभाग पहले अपने तंत्र से ही देखेगा, परखेगा और अपने स्तर पर उसमें सुधार के प्रयास भी करेगा, ताकि भविष्य में कैग की रिपोर्ट को लेकर उसे शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े। जहां तक स्वास्थ्य विभाग के अपने तंत्र का सवाल है तो उसके पास भी विकल्प सीमित ही हैं।
प्रमुख सचिव देवेश चतुर्वेदी राजकीय मेडिकल कॉलेजों को आडिट की जिम्मेदारी दिए जाने की बात कहते जरूर हैं, लेकिन यह भी एक सच है कि मेडिकल कॉलेजों में भी संसाधनों का बड़ा रोना है और वह अपनी इस भूमिका से कितना न्याय कर पाएंगे, यह देखने की बात होगी। वैसे यह समय की मांग है कि अस्पतालों का थर्ड पार्टी आडिट कराया जाए, क्योंकि कैग की रिपोर्ट ने वहां के प्रबंधन को ही कठघरे में खड़ा किया है। थर्ड पार्टी आडिट से पूरे प्रदेश की तस्वीर सामने आएगी और उसके बाद एक समग्र योजना तैयार कर अस्पतालों की स्थिति में सुधार किया जा सकता है। यह अच्छी पहल है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।