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पाकिस्तान से सटी सीमा पर वायुसेना को मिलेंगे नए पंख, पीएम मोदी ने रखी एयरबेस की आधारशिला

गुजरात के बनासकांठा जिले के डीसा में बनने जा रहा एयरबेस उत्तर में राजस्थान के बाड़मेर और पश्चिम में गुजरात के भुज एयरबेस के बीच सेतु का काम करेगा। पाकिस्तान के साथ सटी सीमा पर स्थित इन दोनों एयरबेस के बीच अभी दूरी अधिक है।

By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Wed, 19 Oct 2022 08:57 PM (IST)
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पीएम मोदी ने रखी एयरबेस की आधारशिला। (फोटो-एएनआई)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। किसी देश की वायुसेना की शक्ति और साम‌र्थ्य इस तथ्य पर निर्भर करती है कि उसके पास कितने एयरबेस हैं। ऐसे केंद्रों की भौगोलिक स्थिति की भी सामरिक शक्ति में अहम भूमिका होती है। गुजरात के डीसा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस एयरबेस का शिलान्यास बुधवार को किया है, वह भारतीय वायुसेना की शक्ति और पहुंच को नया आयाम देगा।

आइए जानें क्या है यह नई परियोजना और कैसे इस मूर्त रूप मिलने जा रहा है:-

उत्तर और पश्चिम के बीच सेतु

गुजरात के बनासकांठा जिले के डीसा में बनने जा रहा एयरबेस उत्तर में राजस्थान के बाड़मेर और पश्चिम में गुजरात के भुज एयरबेस के बीच सेतु का काम करेगा। पाकिस्तान के साथ सटी सीमा पर स्थित इन दोनों एयरबेस के बीच अभी दूरी अधिक है। डीसा एयरबेस बन जाने से भारतीय वायुसेना को पाकिस्तान से सटी लंबी सीमा पर पश्चिम से लेकर उत्तर तक मजबूती हासिल होगी। डीसा एयरबेस के निर्माण में करीब 1,000 करोड़ रुपये की राशि खर्च की जानी है। इसमें 1,000 मीटर लंबी एयरस्टि्रप बनाई जाएगी। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि पूर्ण रूप से सक्षम युद्धक वायुसेना बेस बनाने के क्रम में लगभग 4,000 रुपये की राशि खर्च होगी।

इसलिए है सामरिक महत्व

डीसा एयरबेस बन जाने से पाकिस्तान की सीमा के निकट हमारी वायुसेना को एक और मजबूत आधार मिलेगा। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित मीरपुर खास वायुसेना केंद्र से डीसा की दूरी 349.8 किलोमीटर है जबकि सीमा से इस वायुसेना केंद्र की दूरी 130 किमी है। मीरपुर खास में पाकिस्तान ने एफ-16 लड़ाकू विमानों का बेस बना रखा है। डीसा केंद्र से भारतीय वायुसेना सीमा पर किसी भी मूवमेंट का जवाब तेजी से दे सकेगी। डीसा में अभी जो एयरस्ट्रिप बनी है, उसे सिविल वायु सेवा संचालन के लिए प्रयोग किया जाता है। इसी एयरस्ट्रिप के उच्चीकरण के साथ वायुसेना डीसा में विस्फोटरोधी पेन (युद्ध के समय लड़ाकू विमानों को सुरक्षित रखने के लिए बनाए जाने वाले ढांचे) भी यहां बनाएगी।

दो दशक तक हुई प्रतीक्षा

रिपो‌र्ट्स के अनुसार, डीसा में एयरबेस बनाने की सामरिक महत्व की परियोजना को स्वीकृति मिलने और शिलान्यास तक दो दशक से अधिक का समय लगा है। इसका विचार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौरान वर्ष 2000 में आया था। इसके बाद इस पर अधिक काम नहीं हुआ। इसके लिए दो दशक पहले करीब 4,000 एकड़ भूमि अधिग्रहीत की गई थी।

2017 में आई तेजी

केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद इस पर वर्ष 2017 से फिर तेजी आई। इस दौरान गुजरात के बनासकांठा में आई बाढ़ में राहत कार्य करने में आई परेशानी से भी डीसा एयरबेस के काम को प्राथमिकता मिली। इसे मिलने में तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की अहम भूमिका रही है। पीएम मोदी के नेतृत्व में रक्षा मामलों की केंद्रीय समिति ने इस परियोजना को गति दी और डीसा एयरबेस को वर्ष 2024 तक पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है।

दक्षिण-पश्चिम वायुसेना कमान को मिलेगी ताकत

डीसा एयरबेस बनने से वायुसेना की दक्षिण-पश्चिम कमान को युद्ध की स्थिति में रक्षा और आक्रमण में सहूलियत होगी। अभी जामनगर, भुज और नलिया एयरबेस यह भूमिका निभाते हैं। डीसा के चयन के पीछे पाकिस्तान सीमा और एयरबेस से इसकी कम दूरी और राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़े होने से आपूर्ति में आसानी जैसे कारण अहम हैं। 

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