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देश में वायु प्रदूषण की समस्या हुई गंभीर, बढ़ने लगी मृत्यु दर; भयभीत कर रहे आंकड़े

देश में वायु प्रदूषण की समस्या इस कदर भयावह हो गई है कि इसकी वजह से मृत्यु दर में वृद्धि होने लगी है। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल मे प्रकाशित एक अध्ययन ने स्याह तस्वीर पेश की है। इसके अनुसार दिल्ली सहित देश के 10 शहरों में प्रतिवर्ष हवा में पीएम-2.5 के कणों की अधिकता के कारण लगभग 33000 लोगों की मौत हो रही है।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Fri, 05 Jul 2024 06:00 AM (IST)
देश में वायु प्रदूषण की समस्या हुई गंभीर, बढ़ने लगी मृत्यु दर

 राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। देश में वायु प्रदूषण की समस्या इस कदर भयावह हो गई है कि इसकी वजह से मृत्यु दर में वृद्धि होने लगी है। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल मे प्रकाशित एक अध्ययन ने स्याह तस्वीर पेश की है। इसके अनुसार दिल्ली सहित देश के 10 शहरों में प्रतिवर्ष हवा में पीएम-2.5 के कणों की अधिकता के कारण लगभग 33,000 लोगों की मौत हो रही है। इसमें सिर्फ दिल्ली में ही 12 हजार लोगों की जान जा रही है, जो प्रतिवर्ष होने वाली कुल मौत का 11.5 प्रतिशत है।

राजधानी में 100 में से 12 लोगों की मौत खराब हवा के कारण होती है। वाराणसी में वायु प्रदूषण से होने वाली मौत 10 प्रतिशत से अधिक है। कोलकाता में 7.3, पुणे में 5.9, अहमदाबाद, मुंबई और हैदराबाद में वायु प्रदूषण से होने वाली मौत 5.6 प्रतिशत है। शिमला जैसी जगह पर यह 3.7 प्रतिशत है।भारत के स्वच्छ वायु मानदंड विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 15 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के मानक से चार गुना अधिक है।

दिल्ली को विश्व का सबसे प्रदूषित शहर

यही कारण है कि वायु प्रदूषण के लिहाज से बेहतर माने जाने वाले शहरों में भी लोगों की जान जा रही है। कुछ माह पहले एक रिपोर्ट में दिल्ली को विश्व का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया था। अदालत से लेकर संसद तक चिंता जताने के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं है।

माना जाता है कि मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में हवा अपेक्षाकृत साफ रहती है, परंतु इन शहरों में भी प्रदूषण से मरने वालों की संख्या अधिक है। इसका कारण हवा में पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ के मानक से अधिक होना है। पीएम-2.5 के कणों में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की वृद्धि होने पर प्रतिदिन मरने वालों की संख्या 1.4 प्रतिशत अधिक हो जाती है।

वायु प्रदूषण के स्थानीय स्त्रोतों के प्रभाव को अलग-अलग करने वाले तकनीक का उपयोग करने पर यह लगभग दोगुना 3.57 प्रतिशत हो गया। पीएम-2.5 का प्रमुख स्त्रोत वाहनों का ईंधन जलने से निकलने वाला धुआं और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं होता है।

अध्ययन में कहा गया है कि भारत को अपने स्वच्छ वायु मानदंडों को कम से कम डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देश के अनुरूप कम करना चाहिए, जिससे कि नागरिकों को प्रदूषित हवा के खतरों से बचाया जा सके।

अध्ययन में शामिल संस्थानभारत से सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव, अशोका यूनिवर्सिटी व सेंटर फार क्रानिक डिजीज कंट्रोल, स्वीडन से कारो¨लस्का इंस्टीट्यूट और अमेरिका से बोस्टन यूनिवर्सिटी एवं हार्वर्ड यूनिवर्सिटी।

वर्ष 2008 से 2019 के बीच मृत्यु दर के आंकड़ों का किया गया अध्ययन

अध्ययन में दिल्ली, वाराणसी, कोलकाता, पुणे, अहमदाबाद, हैदराबाद, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, शिमला 10 शहरों में पीएम 2.5 के संपर्क और वर्ष 2008 से 2019 के बीच मृत्यु दर की गणना के आंकड़ों का उपयोग किया गया। इन शहरों में प्रत्येक वर्ष होने वाली कुल मौतों में से 7.2 प्रतिशत (लगभग 33,000) पीएम-2.5 के कणों से जुड़ी हो सकती हैं।

अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि वायु प्रदूषण को कम करना एक राष्ट्रव्यापी चुनौती है। कम प्रदूषित माने जाने वाले शहरों में भी वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर पर काफी प्रभाव पड़ता है। पूरे वर्ष राष्ट्रव्यापी कड़े अभियान की आवश्यकता है।- डा. भार्गव कृष्णा, अध्ययन के प्रमुख लेखक एवं सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव में फेलो

शहर- पीएम-2.5 के कणों से मौतें- मौत का प्रतिशत

दिल्ली-12,000-11.5

वाराणसी-830-10.2

कोलकाता-4,700-7.3

पुणे-1,400-5.9

अहमदाबाद-2,500-5.6

हैदराबाद-1,600-5.6

मुंबई-5,100-5.6

चेन्नई-2,900-4.9

बेंगलुरु-2,100-4.8

शिमला-59-3.7

स्थिति में सुधार की जरूरत

मौजूद वायु प्रदूषण नीति नॉन-अटेनमेंट सिटी (आधिकारिक तौर पर घोषित वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित शहर) पर केंद्रित है। यह शहरों को प्रदूषण से बचाने के लिए कारगर नहीं है। डब्ल्यूएचओ के मानक से अधिक प्रदूषण वाले शहरों के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए।

- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान जैसी नीतिगत तंत्र व क्रिया प्रणाली प्रदूषण की उच्चतम सीमा पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उन्हें पूरे वर्ष कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

- वायु प्रदूषण के अव्यवस्थित स्थानीय स्त्रोतों को तार्किक रूप से समझ के लिए बेहतर ढंग से नीतिगत साधन विकसित करने होंगे।