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चारधाम यात्रा का महत्व क्या है, कब शुरू हुई और किसने बनाए यहां के मंदिर

माना जाता है कि इन चारधामों की यात्रा करने वाले श्रद्धालु के समस्त पाप धुल जाते हैं और आत्मा को जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।

By Digpal SinghEdited By: Updated: Wed, 03 May 2017 10:42 AM (IST)
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चारधाम यात्रा का महत्व क्या है, कब शुरू हुई और किसने बनाए यहां के मंदिर

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ों में हर साल गर्मियों के महीनों में चारधाम यात्रा का आयोजन होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के दौरान वहां मौजूद रहे। शनिवार 6 मई को बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे और उस दिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भगवान बद्रीविशाल के दर्शन करेंगे। आइए जानें क्या है चार धामों का महत्व, किसने इन्हें बनाया और कब से शुरू हुई चारधाम यात्रा।

इन चारों स्थलों को काफी पवित्र माना जाता है। भगवान बद्री विशाल (विष्णु) का पवित्र स्थल बद्रीनाथ धाम चमोली जिले में स्थित है। भोले बाबा का पवित्र धाम केदारनाथ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। जीवनदायिनी गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री और यमुना नदी का उद्गम स्थल यमुनोत्री दोनों उत्तरकाशी जिले में हैं।

इन चारों धामों की यात्रा का हिन्दुओं में काफी महत्व है। माना जाता है कि इन चारधामों की यात्रा करने वाले श्रद्धालु के समस्त पाप धुल जाते हैं और आत्मा को जीवन-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।

कब शुरू हुई चार धाम यात्रा

आज लाखों की संख्या में लोग चारधाम यात्रा के लिए पहुंचते हैं। लेकिन जेहन में सवाल उठता है कि आखिर यह चारधाम यात्रा पहली बार कब शुरू हुई। कहा जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने बद्रीनाथ की खोज की थी। उन्होंने ही धार्मिक महत्व के इस स्थान को दोबारा बनाया था. बताया जाता है कि भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति यहां तप्त कुंड के पास एक गुफा में थी और 16वीं सदी में गढ़वाल के एक राजा ने इसे मौजूदा मंदिर में रखा था. जबकि केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। स्थानीय लोग चारों धामों में श्रद्धा पूर्वक जाते थे, लेकिन 1950 के दशक में यहां धार्मिक पर्यटन के लिहाज से आवाजाही बढ़ी। 1962 के चीन युद्ध के चलते क्षेत्र में परिवहन की व्यवस्था में सुधार हुआ तो चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ने लगी।


किसने की चारों धामों की स्थापना

स्कंद पुराण के अनुसार गढ़वाल को केदारखंड कहा गया है। केदारनाथ का वर्णन महाभारत में भी है। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के यहां पूजा करने की बातें सामने आती हैं। माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर को बनवाया था। बद्रीनाथ मंदिर के बारे में भी स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है। बद्रीनाथ मंदिर के वैदिक काल (1750-500 ईसा पूर्व) भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में वर्णन है। कुछ मान्यताओं के अनुसार 8वीं सदी तक यहां बौद्ध मंदिर होने की बात भी सामने आती है, जिसे बाद में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिंदू मंदिर में दिया।

गंगा को धरती पर लाने का श्रेय पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ को जाता है। गोरखा लोग (नेपाली) ने 1790 से 1815 तक कुमाऊं-गढ़वाल पर राज किया था, इसी दौरान गंगोत्री मंदिर गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने बनाया था। उधर यमुनोत्री के असली मंदिर को जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। हालांकि कुछ दस्तावेज इस ओर भी इशारा करते हैं कि पुराने मंदिर को टिहरी के महाराज प्रताप शाह ने बनवाया था। मौसम की मार के कारण पुराने मंदिर के टूटने पर मौजूदा मंदिर का निर्माण किया गया है। 

कितने श्रद्धालु हर साल पहुंचते हैं

हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां चारों धामों की दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। साल 2012 में करीब पौने 10 लाख श्रद्धालु यहां पहुंचे थे, जबकि साल 2013 में केदारनाथ त्रासदी से पहले करीब 5 लाख श्रद्धालुओं ने चारधाम दर्शन का पुण्य कमाया। 2014 में भी करीब पौने 2 लाख श्रद्धालु यहां पहुंचे थे, जबकि 2015 में यह संख्या बढ़कर करीब साढ़े तीन लाख और पिछले साल करीब सवा 6 लाख श्रद्धालु चारधाम यात्रा के लिए पहुंचे।

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