Ayodhya Case: 2010 में हाईकोर्ट ने दिया था फैसला, कोई पक्ष मानने को नहीं हुआ तैयार
2010 में इलाहाबाद होई कोर्ट राम जन्मभूमि के मालिकाना हक के मामले में जो फैसला सुनाथा था उसमें सभी पक्षों को जमीन का बराबर हिस्सा सौंपा गया था।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 09 Nov 2019 10:06 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। राम जन्मभूमि के मालिकाना हक के मामले में 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जो फैसला सुनाया था उस पर मामले से जुड़े कुछ पक्षों ने नाराजगी जाहिर की थी। इसी नाराजगी के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने 9 मई 2011 को दिए एक आदेश में पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया था। अपने फैसले को सुनाने में हाईकोर्ट को करीब 40 मिनट लगे थे। कोर्टरूम लोगों की भीड़ से भरा हुआ था। सभी की नजरें हाईकोर्ट के कमरा नंबर 21 पर टिकी थीं। दोपहर 3:40 बजे फैसले के मूल आदेश को पढ़ना शुरू किया गया। दोपहर 4:20 मिनट पर सभी जज फैसला सुनाकर कोर्टरूम से बाहर निकलकर अपने चैंबर की तरफ चले गए थे। अपने आदेश में हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच एक समान तीन भांगों में बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले को देने वालों में जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एसयू खान और जस्टिस डीवी शर्मा शामिल थे।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पर आधारितहाईकोर्ट ने 2010 में जो फैसला सुनाया था वह दरअसल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पर आधारित था। इसका जिक्र अदालत ने भी अपने फैसले में किया था। इससे पहले हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने वर्ष 2003 में विवादित ढांचे वाली जगह का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इस सर्वेक्षण के दौरान विवादित स्थल के नीचे कई खम्भे, चबूतरे और अन्य सामान मिला था। वर्ष 2003 से पहले 1975 में भी एक बार इस विवादित स्थल का सर्वे किया गया था। कोर्ट ने अपने फैसले में यहां तक कहा था कि 450 वर्षों से मौजूद एक इमारत के ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी नहीं की जा सकती है।
इसलिए खारिज हुआ सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा सुन्नी वक्फ बोर्ड यह साबित नहीं कर सका कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने बनवाई थी या मीर बाकी ने, जो उसका सेनापति था। कोर्ट ने माना कि मस्जिद का निर्माण मंदिर के अवशेषों पर हुआ था, इसमें इनका इस्तेमाल भी किया गया था। कोर्ट ने यह भी माना कि दोनों ही समुदाय के लोग इसका इस्तेमाल करते थे। लिहाजा इस जमीन पर अकेले सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा सही नहीं है। कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के उस दावे को भी खारिज कर दिया था जिसमें कहा गया था कि विवादित भूमि पर 1949 तक उनका कब्जा था और 1949 में जबरन उन्हें यहां से हटा दिया गया। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा समय बाधित यानि देरी से दाखिल मानते हुए भी खारिज किया था।
ये था आदेशअपने इस फैसले में हाईकोर्ट ने जहां रामलला विराजमान हैं, वहीं रहने का आदेश दिया था। इसके अलावा य ये भी कहा गया कि जहां रामलला की पूजा होती है वही राम जन्म भूमि भी है। इस जमीन का एक तिहाई हिस्सा रामलला को दिया गया था।राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़े को सौंपी गई थी। पूरी जमीन का एक तिहाई भूभाग उन्हें सौंपने का आदेश दिया गया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में उन दलीलों को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि जब 1949 में वहां पर मूर्तियां रखी गई तब उन्होंने मामला दायर नहीं किया था। लिहाजा कोर्ट ने जमीन के एक तिहाई हिस्से पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का अधिकार दिया गया था।
अपने फैसले में तीनों जजों ने क्या लिखा
जस्टिस धर्मवीर शर्मा- विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है। जन्मस्थान एक विधिक व्यक्ति होता है। यह स्थान भगवान राम के बाल रूप की दैवीय भावना को प्रदर्शित करता है। हर व्यक्ति को किसी भी रूप में उनका ध्यान करने का अधिकार है।
- विवादित भवन का निर्माण बाबर ने करवाया था। इसके निर्माण के वर्ष के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इसे इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ बनवाया गया था। इसलिए इसको मस्जिद नहीं कहा जा सकता है।
- विवादित ढांचे को उसी जगह ये पुरानी संरचना को गिराकर बनवाया गया था। भारतीय पुरातथ्व सर्वेक्षण द्वारा उपलब्ध कराए गए साक्ष्यों से यह साबित हुआ है कि वह संरचना हिंदुओं का एक विशाल धार्मिक स्थान थी।
- विवादित ढांचे के मध्य गुंंबद में 1949 के 22-23 दिसंबर की रात को मूर्तियां रखी गई थीं
- विवाद के दो पक्षकारों सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के दावे समयबाधित नहीं हैं।
- यह स्थापित हुआ है कि वाद में शामिल की गई संपत्ति रामचंद्र की जन्मभूमि है और हिंदुओं को उनकी पूजा करने का अधिकार है। यह स्थान उनके लिए दैवी है और ये अनंतकाल से इसकी तीर्थयात्रा कर रहे हैं।
- यह साबित हो चुका है कि विवादित स्थल का बाहरी परिसर भी हिंदुओं के कब्जे में था। अंदर के परिसर में भी वे पूजा करते रहे हैं। यह भी स्थापित हो चुका है कि विवादित ढांचे को मस्जिद नहीं माना जा सकता है क्योंकि उसे इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ बनाया गया था।
- मस्जिद निर्माण के लिए बाबर द्वारा या उसके आदेश पर किसी मंदिर को नहीं तोड़ा गया। इसका निर्माण मंदिर के अवशेषों पर किया गया था। इसकी कुछ सामग्री का भी इस्तेमाल मस्जिद निर्माण में किया गया था।
- साक्ष्यों से यह साबित नहीं हो सका कि निर्मित हिस्से समेत विवादित परिसर पर बाबर या जिसके आदेश पर इसका निर्माण किया गया था, उसका अधिकार था।
- मस्जिद के निर्माण में आने के कुछ समय बाद हिंदुओं का मानना था कि विवादित परिसर के एक हिस्से में भगवान राम का जन्मस्थान मौजूद है।
- मस्जिद के निर्माण के कुछ समय बाद हिंदुओं ने विवादित स्थान को भगवान राम के सही जन्मस्थान या उस स्थान के तौर पर इसकी पहचान शुरू कर दी जिसमें सही जन्मस्थान स्थित था।
- 1855 में पहला कानूनी विवाद शुरू होने से पहले राम चबूतरा और सीता रसाई अस्तित्व में आए और वहां पर पूजा शुरू हो चुकी थी। यह अदभुत था कि मस्जिद परिसर के अंदर हिंदु धर्मस्थल था जहां पर हिंदू पूजा करते थे।
- क्रमांक संख्या सात में निष्कर्ष के सार के मद्देनजर दोनों पक्षों का पूरे विवादित स्थल पर संयुक्त कब्जा है।
- मुस्लिम और हिंदू विवादित परिसर के अलग अलग हिस्सों का इस्तेमाल कर रहे थे। इसका ऑपचारिक विभाजन नहीं हुआ है। दोनों को पूरे विवादित परिसर पर संयुक्त कब्जा है।
- दोनों पक्ष अपने मालिकाना हक की शुरुआत को साबित नहीं कर सके, लिहाजा धारा 110 साक्ष्य कानून के तहत दोनों संयुक्त कब्जे के आधार पर संयुक्त स्वामी हैं।
- 1949 से कुछ दशक पहले से हिंदुओं ने मस्जिद के बीच वाले गुंबद के नीचे वाली जगह को भगवान राम का जन्मस्थान मानना शुरू कर दिया था।
- मस्जिद के बीच वाले गुंबद के नीचे पहली बार 23 दिसंबर 1949 को मूर्तियां रखी गईं।
- उपरोक्त के आलोक में दोनों पक्षों को संयुक्त कब्जे के आधार पर संयुक्त स्वामी घोषित किया जाता है। इस संबंध में इस शर्त के साथ प्रारंभिक घोषण की जाती है कि अंतिम घोषण की तैयारी के समय जब वास्तव में स्थल का बंटवारा हो तो जो मध्य गुंबद के नीचे का भाग हिंदुओं के हिस्से में जाए, जहां इस समय अस्थाई मंदिर है। इसके साथ ही सभी पक्षों को इसका एक तिहाई भूभाग का स्वामी घोषित किया जाता है।
- परिसर का बीच वाला हिस्सा जिसको विवादित कहा गया था और जिसमें हिंदुओं की आस्था और विश्वास के अ नुसार भगवान राम का जन्म यहीं पर हुआ था।
- इसका प्रमाण नहीं मिलता है कि यहां पर मौजूद मस्जिद का निर्माण बाबर ने करवाया था। न ही ये साबित हुआ कि यह मस्जिद उसके कार्यकाल में बनी थी। मुस्लिम पक्ष ने इसको मस्जिद के रूप में स्वीकार किया और इसका इस्तेमाल किया।
- सुबूतों के अभाव में यह कहना मुिश्किल है कि विवादास्पद निर्माण किसने और कब करवाया। लेकिन यह सच है कि यह निर्माण अवध क्षेत्र में जोसेफ टिंफेथेलर के दौरे से पहले किया गया था।
- इस ढांचे का निर्माण यहां पर पहले से मौजूद मंदिर को तोड़कर किया गया था।
- विवादित ढांचे के बीच वाली गुंबद के नीचे 22-23 दिसंबर 1949 की रात मूर्तियां रखी गई।
- परिसर के अंदर वाला हिस्सा दोनों समुदायों से संबंधित है, क्योंकि दोनों ही पक्ष इसका इस्तेमाल वर्षों से करते रहे हैं। बाहरी अहाते में आने वाले राम चबूतरे, भंडारा और सीता रसोई को निर्मोही अखाड़े को सौंपा जाता है।