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Alluri Sitarama Raju: आजादी का गुमनाम नायक, जो जंगल में अंग्रेजों के लिए बने थे सिरदर्द; PM कर चुके हैं तारीफ

Alluri Sitarama Raju Death Anniversary। आज सात मई है। आज के ही दिन अंग्रेजों ने अल्लूरी सीताराम राजू को एक पेड़ से बांधकर उनका शरीर गोलियों से छलनी कर दिया। उन्हें लोग प्यार से जंगल का नायक कहते हैं। आइए उनके बारे में विस्तार से जानते हैं...

By Achyut KumarEdited By: Achyut KumarUpdated: Sun, 07 May 2023 01:10 PM (IST)
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Alluri Sitarama Raju death anniversary: जंगल का नायक... जिसे अंग्रेजों ने पेड़ से बांधकर गोलियों से छलनी कर दिया
नई दिल्ली, अच्युत कुमार द्विवेदी। Alluri Sitarama Raju: सात मई 1924... यह वह तारीख है, जिस दिन दक्षिण भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू की अंग्रेजों ने बेरहमी से हत्या कर दी। राजू ने अपना पूरा जीवन जनजातीय लोगों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। लोग उन्हें 'जंगल का नायक' कहते हैं। हर साल आंध्र प्रदेश सरकार उनकी जन्म तिथि चार जुलाई को राज्य उत्सव के रूप में मनाती है।

अल्लूरी सीताराम राजू कौन थे?

अल्लूरी सीताराम राजू एक संन्यासी और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म चार जुलाई 1897 में आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में हुआ था। उनके पिता का नाम वेंकटराम राजू था। उनका बचपन अंग्रेजों का अत्याचार सहते हुए बीता। बड़े होने पर उन्होंने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया। उन्होंने 1922 से लेकर 1924 तक चले राम्पा विद्रोह का नेतृत्व किया। 

18 साल की उम्र में बने संन्यासी

सीताराम राजू 18 साल की उम्र में संन्यासी बन गए। उन्हें जंगली जानवरों को वश में करने की क्षमता हासिल थी। इसके अलावा, उन्हें ज्योतिष और चिकित्सा का भी ज्ञान था। यही वजह है कि पहाड़ी और आदिवासी लोगों के बीच वे काफी लोकप्रिय हुए।

अल्लूरी सीताराम राजू क्यों प्रसिद्ध हैं?

अल्लूरी सीताराम राजू अंग्रेजों के खिलाफ राम्पा विद्रोह करने के लिए प्रसिद्ध हैं। अंग्रेजों ने 1982 में मद्रास वन अधिनियम को लागू कर दिया। इस अधिनियम के लागू होने से स्थानीय आदिवासियों के जंगल जाने पर प्रतिबंध लग गया। अभी तक वे खेती करने के लिए जमीन का इंतजाम जंगलों को जला कर करते थे, जिसे पोडु कहा जाता था। राजू बचपन से अंग्रेजों के जुल्म की कहानी सुनते आ रहे थे। इसलिए उन्होंने 25 साल की उम्र में 1922 में रम्पा विद्रोह शुरू कर दिया।

अंग्रेजों को देते थे खुली चुनौती

सीताराम राजू अंग्रेजों को खुली चुनौती देते थे, जिससे अंग्रेज आग-बबूला हो जाते थे। वे राजू को पकड़ने के लिए पुलिस टीम को भेजते थे, लेकिन उनमें से कोई भी वापस नहीं आता था। राजू और उनके साथी सभी पुलिसवालों को मौत के घाट उतार देते थे। राजू और उनके साथियों को जब लड़ाई के लिए हथियार की जरूरत होती, वे अंग्रेजों के पुलिस स्टेशनों पर धावा बोलकर हथियार लूट लेते थे। उनकी मंशा अंग्रेजों को पूर्वी घाट से भगाने की थी। 

अल्लूरी सीताराम राजू की मृत्यु कैसे हुई?

अंग्रेजों और राजू के बीच यह लड़ाई दो साल तक चली। आखिरकार 7 मई 1924 को चिंतबल्ली के जंगल में अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया। इसके बाद उन्हें पास के एक गांव में लाया गया और पेड़ से बांधकर उन्हें गोलियों से भून दिया गया। अंग्रेज उनकी मौत के जरिए यह संदेश देना चाहते थे कि उनसे टकराने का अंजाम क्या होता है।

महात्मा गांधी के विचारों से थे प्रभावित

अल्लूरी सीताराम राजू महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे। उन्होंने लोगों से खादी पहनने की अपील की। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि केवल बल प्रयोग से देश आजाद हो सकता है, अहिंसा से नहीं। भारत सरकार ने सीताराम राजू पर 1986 में डाक टिकट जारी किया था।

पीएम मोदी ने बताया 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की भावना का प्रतीक

पिछले साल चार जुलाई 2022 को पीएम मोदी ने आंध्र प्रदेश के भीमावरम में अल्लूरी सीताराम राजू की 125वीं जयंती पर आयोजित समारोह में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने सीतारामा राजू को एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि राजू ने हमारे देश को एकजुट किया। पीएम मोदी ने कहा कि राजू का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने अपना जीवन दूसरों की भलाई के लिए समर्पित कर दिया।