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देश की सबसे पवित्र अमरनाथ यात्रा की क्या है कथा और जानें इससे जुड़े रहस्य

जनश्रुति के अनुसार, भगवान शंकर और जगदंबा पार्वती इसी मार्ग से पवित्र गुफा तक गए थे। मान्यता है कि जब पार्वती ने शिव से अमर कथा सुननी चाही, तो यही स्थान धन्य हुआ था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 27 Jun 2018 04:09 PM (IST)
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देश की सबसे पवित्र अमरनाथ यात्रा की क्या है कथा और जानें इससे जुड़े रहस्य
[अशोक जमनानी]। भारतीय चिंतन में विराटता का अप्रतिम सौंदर्य चमत्कृत करता है। हमारा शरीर नश्वर है, पर आत्मा अमर है, इसलिए हम अविनाशी भी हैं। ईश्वर का संदेश है- मृत्यु के सत्य की स्वीकार्यता के साथ अमरता के पथ का भी वरण करें। अत: देहभाव से मुक्त होकर अविनाशी आत्मतत्व को पा जाना ही अमरनाथ की यात्रा तथा बाबा बर्फानी के दर्शन की सार्थकता है। अमरता की यात्रा तब तक संभव नहीं है, जब तक कि देह के प्रति हमारा अभिमान न समाप्त हो जाए। इससे मुक्त होकर हम बाहर के नैसर्गिक सौंदर्य की तरह अपने भीतर अमरता का एक विराट सौंदर्य रच लेते हैं, जो सत्य है और शिव भी..

अमरनाथ यात्रा 28 जून से शुरू हो रही है। यह केवल श्रद्धा की यात्रा ही नहीं, वरन भक्ति, ज्ञान और कर्म को सार्थक करती यात्रा भी है। कश्मीर धरती का स्वर्ग कहलाता है, लेकिन भारतीय मानस स्वर्ग को नहीं पाना चाहता। वह तो इस स्वर्ग के सौंदर्य को निहारकर वहां पहुंचना चाहता है, जहां का सौंदर्य अविनाशी है।

मान्यता है कि जब पार्वती ने शिव से अमर कथा सुननी चाही, तो यही स्थान धन्य हुआ था, लेकिन यहां तक आते-आते भगवान शिव ने अपने सभी प्रिय पात्रों - चंद्रमा, नंदी, नाग, गंगा और गणेश को एक-एक कर मार्ग में छोड़ दिया था। वे इन पांचों अर्थात चंद्रमा, नंदी, नाग, गंगा और गणेश को इसलिए छोड़ते हैं, क्योंकि ये पंच महाभूतों के प्रतीक हैं।

पंच महाभूत ही देह को रचते हैं। पहले पंच महाभूतों से बनी देह का अभिमान छोड़ना ही पड़ेगा, तभी यह यात्रा संभव होगी। शायद इसलिए यह यात्रा बेहद कठिन भी है। श्रीनगर से यात्री पहलगांव अथवा बालटाल होकर इस पवित्र गुफा तक जाते हैं। बालटाल का मार्ग छोटा है, लेकिन पहलगांव का मार्ग लंबा होने के बावजूद सुरक्षित है। अब इस मार्ग में कई सुविधाएं भी उपलब्ध रहती हैं।

जनश्रुति के अनुसार, भगवान शंकर और जगदंबा पार्वती इसी मार्ग से पवित्र गुफा तक गए थे। यह मार्ग चंदनवाड़ी और शेषनाग से होकर पंचतरणी तक पहुंचता है और फिर पवित्र गुफा की यात्रा आरंभ होती है। संपूर्ण मार्ग में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य तो है, लेकिन मार्ग कठिन और खतरों से भरा हुआ है। अब साधनों की उपलब्धता ने यात्रा को सरल बनाया है। बालटाल से हेलीकॉप्टर से भी लोग जाते हैं। साधन सरलता तो देते हैं, लेकिन मार्ग का सौंदर्य-सुख और अनूठा आनंद मिलने से छूट भी जाता है।

वैसे इस यात्रा को यदि एक रूपक की तरह देखें, तो यह अद्भुत संदेश देता है। पंच महाभूतों के देहाभिमान को त्यागकर तथा कठिन यात्रा के बाद श्रद्धालु जब पहुंचते हैं तो उन्हें लगता है कि प्राणतत्व सूक्ष्म हो गया है, क्योंकि यहां प्राणदायिनी ऑक्सीजन बहुत कम है। वहां प्रकृति और पुरुष अमरतत्व के लिए संवाद करते हैं, तो फिर प्रकट होता है आत्मतत्व, जो लिंगरूप है। यह आत्मतत्व परमात्मा का अंश रूप है, लेकिन वेदांत कहता है- ‘पूर्णात पूर्णं उदच्युते’। पूर्ण से जो प्रकट हुआ, वह स्वयं भी पूर्ण है। इसलिए अमरनाथ बाबा लिंग रूप में आत्म तत्व भी हैं और स्वयं परमात्मा भी।

इस स्थान से जुड़ी अनेक कथाएं भी यहां लोग सुनाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह स्थान प्रलय में जलमग्न हो गया था, तब कश्यप ऋषि ने इसका उद्धार किया और भृगु ऋषि ने सबसे पहले बर्फानी बाबा के दर्शन किए। एक कहानी उस मुस्लिम गड़रिये की भी है, जिसने इस स्थान की खोज की। आज भी उसके वंशजों को यहां के चढ़ावे का एक हिस्सा मिलता है। एक कहानी उन कबूतरों की भी है, जो अमरकथा सुनकर अमर हो गए।

बेहद कठिन यात्रा के बाद यात्री पवित्र गुफा में पहुंचकर अपनी हर पीड़ा भूल जाए और उसे लगे कि कोई थकान अब शेष नहीं है, तो यह अलौकिक आनंद कैसे भुलाया जा सकता है। यही इस यात्रा का मर्म है और यही भारतीय चिंतन का मूर्त रूप है कि कठिन जीवन-यात्रा में देहाभिमान छूटता चला जाए। प्रकृति और पुरुष का संवाद स्थापित हो और वह आनंद स्वरूप आत्मतत्व प्रकट हो, जो परमात्मा से मिला दे। गोस्वामी तुलसीदास ने शिव स्तुति करते हुआ लिखा, ‘तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं/ मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं’, तो संभवत: उनके मन में बर्फानी बाबा की ही छवि रही होगी।

यह छवि अमरकथा का शुभ फल है, जो प्रत्येक वर्ष कुछ दिनों के लिए प्रकट होती है। इस यात्रा में जाने वाले तो धन्य होते ही हैं, जो अपनी जीवन यात्रा में देहाभिमान से मुक्त हो रहे हैं और प्राणों के सूक्ष्म होते क्षणों में भी प्रकृति से आत्म-तत्व तक जाने का संवाद कर रहे हैं, उन सबके भीतर भी स्वयं शिव आकार ले रहे हैं। यही शिवलिंग रूप में आत्मतत्व है, लेकिन मूल रूप में परम ही हैं और इन्हें ही हम श्रद्धावश ‘बर्फानी बाबा’ अमरनाथ कहकर बुलाते हैं।

बेहद कठिन यात्रा के बाद यात्री पवित्र गुफा में पहुंचकर अपनी हर पीड़ा भूल जाए और उसे लगे कि कोई थकान अब शेष नहीं है, तो यह अलौकिक आनंद कैसे भुलाया जा सकता है।

(लेखक आध्यात्मिक चिंतक हैं)