अमेरिका ने चीन से लड़ाई में भारत को बताया अहम साझेदार, राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रपत्र में कई बार किया जिक्र
बदलते वैश्विक माहौल में अमेरिका की सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती चीन की उभरती ताकत को रोकना और रूस के आक्रामक रवैये पर काबू पाना है। इन दोनों हालात में भारत उसका एक अहम सहयोगी देश साबित हो सकता है।
By AgencyEdited By: Amit SinghUpdated: Fri, 14 Oct 2022 02:00 AM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: बदलते वैश्विक माहौल में अमेरिका की सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती चीन की उभरती ताकत को रोकना और रूस के आक्रामक रवैये पर काबू पाना है। इन दोनों हालात में भारत उसका एक अहम सहयोगी देश साबित हो सकता है। बुधवार को अमेरिका के बाइडन प्रशासन की तरफ से जारी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का लब्बोलुआब यही है। इस रणनीतिक प्रपत्र में कई बार भारत का जिक्र है लेकिन भारत की भूमिका प्रशांत-हिंद क्षेत्र में ही ज्यादा महत्वपूर्ण बताई गई है।
भारत को एक लोकतांत्रिक देश और प्रमुख रक्षा साझीदार बताते हुए कहा गया कि अमेरिका उसके साथ ही हिंद प्रशांत क्षेत्र को खुला और सभी के लिए समान अवसर वाला बनाने के लिए काम करेगा। लेकिन इस रणनीति का बहुत बड़ा हिस्सा चीन पर केंद्रित है। अमेरिका ने साफ तौर पर यह कहा है कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में चीन को पछाड़ना उसकी प्राथमिकता है। वर्ष 2020 में सत्ता में आए राष्ट्रपति जो बाइडन की सरकार की तरफ से जारी यह पहला रणनीतिक प्रपत्र है। इसमें भारत के साथ रक्षा सहयोग को और प्रगाढ़ करने की बात कही गई है।
अमेरिका ने भारत के साथ मिल कर हाल के वर्षों में दो अंतरराष्ट्रीय संगठनों की स्थापना की है। क्वाड (अमेरिका, भारत, जापान व आस्ट्रेलिया) और आइ2-यू2 (भारत, इजरायल, यूएई व अमेरिका) को बहुत ही महत्वपूर्ण बताते हुए अमेरिका ने कहा है कि इन संगठनों का एक उद्देश्य यह भी है कि लोकतांत्रिक देश अपने नागरिकों के लिए और दुनिया की बेहतर सेवा कर सकते हैं। इन संगठनों को एक समान सोच वाले लोकतांत्रिक देशों का मंच बताया है और कहा है कि इनके बीच सहयोग और प्रगाढ़ किया जाएगा। भारत को एशिया की क्षेत्रीय चुनौतियों से निबटने में भी महत्वपूर्ण माना गया है।
अमेरिका ने यह भी परोक्ष तौर पर बताया है कि लोकतांत्रिक देशों का यह सहयोग चीन के बढ़ते प्रभुत्व की काट होगा। इनके साथ मिल कर चीन की प्रतिस्पर्धा और रूस की तरफ से पैदा किए गए विकट खतरे की काट खोजी जाएगी। इसके लिए यह सदी बहुत ही महत्वपूर्ण होगी और अब तेजी से इस बारे में कदम नहीं उठाया जाएगा तो साझा चुनौतियों से लड़ने के अवसर खत्म हो जाएंगे। अमेरिका ने चीन को एकमात्र ऐसी चुनौती के तौर पर गिनाया है जो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में बदलाव कर सकता है। बीजिंग के पास यह क्षमता है कि वह हिंद प्रशांत क्षेत्र में और इससे बाहर अपना प्रभाव डाल सकता है, ताकि वह वैश्विक शक्ति के तौर पर स्थापित हो सके।