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AMU Minority Status: एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सात जजों की संविधान पीठ में शुरू हुआ मंथन, हाई कोर्ट के फैसले को मिली है चुनौती

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान माना जाएगा या नहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने मंथन शुरू कर दिया है। मंगलवार से एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर बहस शुरू हुई। एएमयू की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने दलीलें रखते हुए कहा शुरुआत से एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान है और उसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मानने का इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला ठीक नहीं है।

By Jagran News Edited By: Abhinav AtreyUpdated: Tue, 09 Jan 2024 10:00 PM (IST)
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एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सात जजों की संविधान पीठ में शुरू हुआ मंथन (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान माना जाएगा या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ने मंथन शुरू कर दिया है। मंगलवार से एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर बहस शुरू हुई। एएमयू की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने दलीलें रखते हुए कहा कि शुरुआत से एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान है और उसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं मानने का इलाहाबाद हाई कोर्ट का पांच जनवरी, 2006 का फैसला ठीक नहीं है।

राजीव धवन ने कहा कि हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 1968 के पांच जजों की पीठ के अजीज बाशा फैसले को आधार बनाया है, जबकि उसके बाद कानून में संशोधन हो चुका है और बहुत से अन्य फैसले आ चुके हैं, जिनके मुताबिक एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान ही माना जाएगा। मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सात जजों की पीठ ने मामले पर सुनवाई शुरू की।

हम यह नहीं मान सकते, अल्पसंख्यकों द्वारा संपूर्ण प्रशासन हो

इस दौरान प्रधान न्यायाधीश ने जीवन के विभिन्न पहलुओं को कानून द्वारा रेगुलेट किए जाने की बात करते हुए टिप्पणी में कहा कि संविधान के अनुच्छेद-30 (अल्पसंख्यकों को अपने संस्थान के प्रबंधन का अधिकार) में हम यह नहीं मान सकते कि अल्पसंख्यकों द्वारा ही संपूर्ण प्रशासन होना चाहिए और एक रेगुलेटेड सोसायटी में हम ऐसा सोच भी नहीं सकते। जहां जीवन के हर भाग को किसी न किसी रूप में रेगुलेट किया गया है।

हर समुदाय के छात्र वहां प्रवेश ले सकते हैं

उन्होंने कहा कि इसलिए संस्थान को कानून के जरिये नियमित करने से उसका अल्पसंख्यक दर्जा छिन नहीं जाता। अगर कानून के जरिये प्रशासन को रेगुलेट किया गया है तो यह अल्पसंख्यक दर्जे के लिए कोई बाधा नहीं है, लेकिन वहां सिर्फ धार्मिक पाठ्यक्रम की जरूरत नहीं है। हर समुदाय के छात्र वहां प्रवेश ले सकते हैं, सिर्फ किसी एक समुदाय के नहीं।

संविधान में प्रशासन की कोई संवैधानिक परिभाषा नहीं

वकील धवन ने कहा कि यह महत्वपूर्ण बिंदु है, पसंद का मुद्दा है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि संविधान में प्रशासन की कोई संवैधानिक परिभाषा नहीं है। यह अदालतों ने बताया है कि प्रशासन का क्या मतलब है, लेकिन प्रशासन का अधिकार खुद कानून द्वारा रेगुलेटेड है। धवन ने कहा कि सब मुस्लिम, मुस्लिम, मुस्लिम नहीं हो सकता क्योंकि संविधान लागू होने के बाद सभी विश्वविद्यालयों में एक उदार तत्व है। छात्रों व शिक्षकों सभी का प्रतिनिधित्व कानून में है।

पीठ के दूसरे न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने राजीव धवन से पूछा कि संविधान लागू होने के बाद उन विश्वविद्यालयों की क्या स्थिति होगी जो उसके बाद स्थापित हुए हैं। धवन ने कहा कि ऐसे संस्थानों की बड़ी संख्या है।

मामले को संवैधानिक चश्मे से देखना होगा

उन्होंने कहा कि यूजीसी के तहत कई डीम्ड विश्वविद्यालयों को अजीज बाशा फैसले के बावजूद अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया गया है। धवन ने कहा, इसीलिए इस मामले को संवैधानिक चश्मे से देखना होगा और उदार शिक्षा को धार्मिक शिक्षा के साथ जोड़ना होगा। मामले में बुधवार को भी बहस जारी रहेगी।

क्या है मामला

सुप्रीम कोर्ट में एएमयू समेत आठ अपीलें लंबित हैं, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के पांच जनवरी, 2006 के फैसले को चुनौती दी गई है। हाई कोर्ट ने उस फैसले में कहा था कि एएमयू कभी भी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था इसलिए पीजी पाठ्यक्रम में मुसलमान छात्रों को आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

2019 में मामले को सात जजों की पीठ को विचार के लिए भेजा

हाई कोर्ट ने मुसलमान छात्रों को दिए जाने वाले आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। 12 फरवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने इस मामले को सात जजों की पीठ को विचार के लिए भेज दिया था। इसके अलावा 1981 में भी अल्पसंख्यक दर्जे का एक मामला सात जजों भेजा गया था उसमें अजीज बाशा फैसले का मुद्दा भी शामिल था।

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