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साबुन और क्लीनिंग प्रोडक्ट से एंटी बायोटिक रजिस्टेंस का बन रहा खतरा

अमेरिकी दवा नियामक एफडीए ने 2016 में साबुन व अन्य उत्पादों में ट्राइक्लोजन के प्रयोग पर रोक लगा दी थी। हालांकि अभी ज्यादातर देशों में ट्राइक्लोजन का प्रयोग होता है। भारत में भी एक सीमित मात्रा तक इसके प्रयोग की अनुमति है।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Wed, 02 Nov 2022 10:26 AM (IST)
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रजिस्टेंस और ट्राइक्लोजन में मिला है संबंध
नई दिल्‍ली, आइएएनएस। टीबी और टिटनस जैसे गंभीर संक्रमणों से लेकर किसी घाव के पक जाने तक में बैक्टीरिया की भूमिका होती है। किसी सतह को छूने से वहां मौजूद बैक्टीरिया का हमारे हाथों के जरिये शरीर तक पहुंच जाना भी आम बात है। यही कारण है कि साबुन से लेकर सफाई से जुड़े कई ऐसे उत्पाद हैं, जो बैक्टीरिया को खत्म करते हैं। यूनिवर्सिटी आफ टोरंटो के हालिया शोध में एक चिंताजनक बात सामने आई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि साबुन, टूथपेस्ट और अन्य क्लीनिंग प्रोडक्ट एंटी बायोटिक रजिस्टेंस का कारण बन रहे हैं।

बड़ी चुनौती बन रहे हैं सुपरबग

एंटी बायोटिक रजिस्टेंट बैक्टीरिया को आमतौर पर सुपरबग कहा जाता है। ये ऐसे बैक्टीरिया होते हैं, जिन पर एंटी बायोटिक दवाओं का असर नहीं होता है। लगातार किसी एंटी बायोटिक दवा या रसायन का सामना करते-करते समय के साथ कुछ बैक्टीरिया अपना ऐसा स्वरूप तैयार कर लेते हैं, जिन पर उन रसायनों का असर नहीं पड़ता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए ऐसे बैक्टीरिया जानलेवा साबित होते हैं।

रजिस्टेंस और ट्राइक्लोजन में मिला है संबंध

बैक्टीरिया से लड़ने का दावा करने वाले ज्यादातर साबुन, टूथपेस्ट व अन्य उत्पादों में ट्राइक्लोजन नाम का रसायन होता है। यूनिवर्सिटी आफ टोरंटो के प्रोफेसर हुई पेंग का कहना है कि ट्राइक्लोजन का संबंध एंटी बायोटिक रजिस्टेंस से पाया गया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि वैसे तो सीवेज के पानी में कई एंटी बायोटिक तत्व पाए जाते हैं, लेकिन उनमें से ट्राइक्लोजन का संबंध ई. कोली बैक्टीरिया में रजिस्टेंस से पाया गया है। यह बैक्टीरिया डायरिया एवं हैजा का कारण बनता है।

कुछ देशों में प्रतिबंधित भी है यह रसायन

पहले के कुछ अध्ययन बताते हैं कि ट्राइक्लोजन का प्रयोग थायरायड के हार्मोन स्राव को प्रभावित कर सकता है। बच्चों में ट्राइक्लोजन का ज्यादा प्रयोग उन्हें अस्थमा एवं अन्य एलर्जी का शिकार बना सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी दवा नियामक एफडीए ने 2016 में साबुन व अन्य उत्पादों में ट्राइक्लोजन के प्रयोग पर रोक लगा दी थी। हालांकि अभी ज्यादातर देशों में ट्राइक्लोजन का प्रयोग होता है। भारत में भी एक सीमित मात्रा तक इसके प्रयोग की अनुमति है। हालांकि कुछ शोध बताते हैं कि भारत में जिस मात्रा तक ट्राइक्लोजन के प्रयोग की अनुमति है, उससे हजार गुना कम ट्राइक्लोजन भी नुकसानदायक हो सकता है।