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अरहर के धोखे में कहीं मटर की दाल तो नहीं खा रहे हैं आप?

वर्ष 2015 के आखिरी तीन महीनों (अक्तूबर से दिसंबर) मुकाबले वर्ष 2016 की इसी अवधि में दलहन के आयात में 30 फीसद तक की वृद्धि हुई है।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Updated: Tue, 24 Jan 2017 11:05 AM (IST)
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अरहर के धोखे में कहीं मटर की दाल तो नहीं खा रहे हैं आप?

नई दिल्ली, [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। दाल में कुछ काला है! समझ सकें तो समझ लें। कहीं अरहर के धोखे में मटर की दालें तो नहीं खा रहे हैं? मटर का बेसन धड़ल्ले से चना बेसन के रूप में बिक रहा है। हल्दी पाउडर से चटक पीला होकर मटर का बेसन जिंस बाजार में है। पचीस रुपये किलो की मटर का बेसन सौ रुपये से नीचे नहीं मिल रहा है। लेकिन जिस बाजार में दालों की तेजी को थामने में विलायती मटर ने बड़ी भूमिका निभाई है।

इन आशंकाओं को दलहन के आयातित आंकड़ों में देखा जा सकता है। वर्ष 2015 के आखिरी तीन महीनों (अक्तूबर से दिसंबर) मुकाबले वर्ष 2016 की इसी अवधि में दलहन के आयात में 30 फीसद तक की वृद्धि हुई है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन तीन महीनों में कुल 25 लाख टन दालों के आयात में पीली मटर की हिस्सेदारी आधे से अधिक तकरीबन 15 लाख टन है। जबकि अरहर दाल के आयात में तीन गुना की वृद्धि तो हुई है, लेकिन मात्रा के रूप में यह केवल पौने तीन लाख टन ही रही है।

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जिंस बाजार में दलहन में चना के मूल्य में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई, जो कई बार तो अरहर दाल को भी पीछे छोड़ दिया। इस चौंकाने वाले तथ्य के पीछे ही दाल काली होनी शुरु हो गई। यानी बड़ी अरहर दाल में छोटी पीली मटर की दाल खपने लगी। बंदरगाह पहुंच पीली मटर पचीस रुपये किलो की पड़ती है, जबकि अरहर दाल एक सौ रुपये प्रति किलो से कम पर नहीं मिल रही है। लिहाजा सुरक्षित मिश्रण से मिलावट खोर चांदी कूट रहे हैं।

लेकिन सबसे बड़ा खेल चना दाल के बेसन में हो रहा है, जहां से पीली मटर के बेसन को समझ पाना आसान नहीं है। न स्वाद से न रंग से और नहीं रूप से पहचान पाना संभव नहीं है। लेकिन बेसन का रंग चोखा करने के लिए हल्दी व रंग का उपयोग खुलकर किया जा रहा है। वर्ष 2015 में जहां केवल आठ लाख टन मटर का आयात किया गया था, वहीं वर्ष 2016 के आखिरी तीन महीनों में मटर का कुल आयात लगभग 15 लाख टन कर लिया गया।

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