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Army Chief Nepal Visit: गोरखा सैनिकों की भारत के प्रति समर्पण की कहानी है 11 गोरखा राइफल्स

Army Chief Manoj Pande Nepal Visit अग्निवीर योजना से नाराज नेपाल ने भारत को चेतावनी दी थी कि वह अपने युवाओं को भारतीय सेना की जगह पाकिस्तान और चीनी सेना में भर्ती होने के लिए भेजेगा। जानें- भारत के लिए क्यों इतने महत्वपूर्ण हैं गोरखा सैनिक?

By Amit SinghEdited By: Updated: Mon, 05 Sep 2022 06:30 PM (IST)
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Army Chief Manoj Pande Nepal Visit: आठ सितंबर तक चलेगा सेनाध्यक्ष का नेपाल दौरा।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। भारतीय थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे (Indian Army Chief General Manoj Pande) रविवार (चार सितंबर 2022) को अपनी चार दिवसीय यात्रा के लिए नेपाल (Army Chief's Nepal Visit) पहुंच चुके हैं। चार दिवसीय यात्रा में वह नेपाली प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) से भी मिलेंगे, जिनके पास रक्षा मंत्रालय भी है। इसके अलावा वह नेपाल सेना के अपने समकक्ष जनरव प्रभु राम शर्मा से भी मुलाकात करेंगे। इस दौरान नेपाली गोरखा सैनिकों की अग्निवीर में भर्ती का मामला भी उठ सकता है। पिछले दिनों नेपाल ने अग्निवीर योजना के तहत अपने युवाओं की भर्ती पर विरोध दर्ज कराया था। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत के लिए गोरखा सैनिक इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं?

गोरखा सैनिकों से मात खा अंग्रेजों ने उनका हुनर पहचाना

इसका जवाब भारतीय सेना के इतिहास में छिपा है। ब्रिटिश भारत के दौर में 1814 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल राजघराने (Gorkha Kingdom) के गोरखाली सैनिकों (Gorkhali Soldiers) के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ। ये संघर्ष 1816 में ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के बीच हुए सुगौली समझौते (Treaty of Sugauli) के साथ खत्म हुआ था। इस युद्ध में गोरख सैनिकों के युद्ध कौशल और साहस ने ब्रितानी अधिकारियों और राजनयिकों को आकर्षित किया। इसके बाद अंग्रेजों ने विभिन्न युद्धों के दौरान गोरखा सैनिकों की अस्थाई भर्ती शुरू कर दी।

किंग जॉर्ज की गोरखा सेना

गोरखा अपने साहस और युद्ध कौशल के लिए नहीं, बल्कि अपनी ईमानदारी और वफादारी के लिए भी पहचाने जाते हैं। ब्रिटिश सेना में अस्थाई तौर पर शामिल होने वाले गोरखा सैनिकों ने जल्द ही ब्रिटिश अधिकारियों व राजनयिकों का भरोसा जीत लिया। इसके बाद गोरखा सैनिकों को नासिरी रेजिमेंट (Nasiri Regiment) की एक बटालियन में स्थाई तैनाती मिली। आगे चलकर यही बटालियन किंग जॉर्ज प्रथम की अपनी गोरखा राइफल्स (1st King George's Own Gurkha Rifles) रेजिमेंट बनी। इसके बाद ब्रिटिश इंडियन आर्मी में गोरखा सैनिकों की भर्ती का सिलसिला शुरू हो गया।

सोना ही नहीं सेना भी लूट ले गए अंग्रेज

1947 में भारत आजाद हुआ।। इस दौरान अंग्रेजों ने भारत के बहुमूल्य हीरे-जवाहरात और सोना ही नहीं, बल्कि आजाद करते वक्त सेना भी लूट ली। प्रथम विश्व युद्ध तक ब्रिटिश इंडियन आर्मी में गोरखा सैनिकों की 10 रेजिमेंट्स बन चुकी थीं। इनका नाम प्रथम गोरखा राइफल्स से लेकर क्रमवार 10 गोरखा राइफल्स तक था। भारत छोड़ते वक्त अंग्रेजों ने एक समझौते के तहत गोरखा राइफल्स की 10 में से चार बटालियन अपने पास रख ली और छह भारत को दे दी। भारत को मिलने वाली गोरखा रेजिमेंट्स में पहली, तीसरी, चौथी, पांचवीं, आठवीं और नौंवी गोरखा राइफल्स थी।

छह गोरखा रेजिमेंट भारत को मिली, चार अंग्रेज ले गए

अंग्रेज अपने साथ जिन चार गोरखा रेजिमेंट्स को ले गए, उसमें दूसरी, छठवीं, सातवीं और 10वीं गोरखा रेजिमेंट्स शामिल थी। इसी वजह से भारतीय सेना में ये रेजिमेंट्स आज भी नहीं हैं। ब्रिटिश सेना में शामिल होना गोरखा सैनिकों के लिए स्वैच्छिक था। ऐसे में छठवीं और सातवीं गोरखा रेजिमेंट्स के बहुत से सैनिकों ने भारत के प्रति अपने समर्पण को तरजीह दी और ब्रिटिश सेना का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया।

जब ब्रिटिश सेना में शामिल होने से किया इनकार

छठवीं और सातवीं गोरखा राइफल्स के जिन सैनिकों ने ब्रिटिश सेना का अंग बनने से इनकार कर दिया, उन्हें मिलाकर भारत में 11वीं गोरखा राइफल्स (11th Gorkha Rifles) के नाम से सातवीं रेजिमेंट बनी। आज भी ये रेजिमेंट भारत के प्रति गोरखा सैनिकों के समर्पण और लगाव की कहानी बयां करती है। गोरखा रेजिमेंट्स प्रमुख तौर पर पूरी दुनिया में केवल तीन देशों के पास हैं, जिसमें नेपाल स्वयं, भारत और ब्रिटेन शामिल है। ये जांबाज गोरखा सैनिक, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध समेत ब्रिटिश इंडियम आर्मी के तौर पर लगभग सभी बड़े युद्ध और अंतरराष्ट्रीय सैन्य मिशनों में शामिल हुए हैं।

गोरखा, जिसे मौत भी डरा नहीं सकती

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ (Field Marshal Sam Manekshaw) की वो प्रसिद्ध लाइन आज भी गोरखा सैनिकों की बहादुरी को दर्शाती है, जिसमें उन्होंने कहा था 'अगर कोई व्यक्ति कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता, तो वह या तो झूठ बोल रहा या वह एक गोरखा है'। कारगिल युद्ध में एक पल ऐसा भी आया था, जब गोरखा सैनिकों की एक टुकड़ी के पास गोला-बारूद खत्म हो गया और पाकिस्तानी सेना ने उन्हें घेर लिया था। पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या, इन गोरखा सैनिकों के मुकाबले लगभग दोगुनी थी। बावजूद गोरखा सैनिकों ने हार नहीं मानी और अपनी खुखरी से पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़े थे। ऐसे कई वाकये हैं, जो भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों का महत्व दर्शाती है।