'Article 370 को निरस्त करते समय पूरी संसद को विश्वास में लिया गया था', अनुच्छेद 370 पर SC में केंद्र का जवाब
Article 370 News वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि प्रविधान को निरस्त करते समय संपूर्ण संसद को विश्वास में लिया गया था जिसमें जम्मू कश्मीर के सांसद भी शामिल थे। उन्होंने दोनों संविधान सभाओं के बीच अंतर बताने का प्रयास करते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर के लिए संविधान बनाते समय इसकी संविधान सभा को वही स्वतंत्रता नहीं मिली जो भारत की संविधान सभा को प्राप्त थी।
By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Sat, 02 Sep 2023 06:30 AM (IST)
नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को शुक्रवार को बताया गया कि तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रविधानों को निरस्त करने का कार्यकारी निर्णय नहीं था, बल्कि इस संबंध में भारतीय संसद को विश्वास में लिया गया था। इस मुद्दे पर जारी लंबी बहस के बीच, प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ को हस्तक्षेपकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने बताया कि अनुच्छेद 370 में सिफारिश शब्द का मतलब है कि निरस्त करने के लिए जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की सहमति आवश्यक नहीं थी।
संविधान सभाओं के बीच अंतरवरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि प्रविधान को निरस्त करते समय संपूर्ण संसद को विश्वास में लिया गया था, जिसमें जम्मू कश्मीर के सांसद भी शामिल थे। उन्होंने दोनों संविधान सभाओं के बीच अंतर बताने का प्रयास करते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर के लिए संविधान बनाते समय, इसकी संविधान सभा को वही स्वतंत्रता नहीं मिली, जो भारत की संविधान सभा को प्राप्त थी।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाईअनुच्छेद 370 (3) का जिक्र करते हुए द्विवेदी ने कहा कि इसके तहत सिफारिश शब्द का मतलब यह नहीं है कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए संविधान सभा की सहमति आवश्यक थी। पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल रहे। पीठ अनुच्छेद 370 के प्रविधान को निरस्त करने के केंद्र सरकार के पांच अगस्त, 2019 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के 14वें दिन दलीलें सुन रही थी।
विभिन्न प्रविधान शामिलद्विवेदी ने पीठ से कहा कि जम्मू कश्मीर संविधान सभा विभिन्न आदेशों से बंधी हुई थी, जिसमें भारतीय संविधान के विभिन्न प्रविधान शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इसे न्याय, स्वतंत्रता, भाईचारा सुनिश्चित करना था। यह अनुच्छेद एक से भी बंधा हुआ था। यह घोषित नहीं कर सकता था कि हम भारत की संघीय इकाई नहीं हैं। वे यह नहीं कह सकते थे कि उनके क्षेत्र का कोई भी हिस्सा भारत का हिस्सा नहीं हो सकता है।
अनुच्छेद 370 का उल्लेखद्विवेदी ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रविधानों को निरस्त करने के कदम का बचाव करते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 को हमेशा एक अस्थायी प्रविधान माना जाता था और डा बीआर आंबेडकर, एनजी आयंगर (संविधान सभा में), जवाहरलाल नेहरू और गुलजारीलाल नंदा के (संसद में) भाषणों में इसका संकेत दिया गया है कि जम्मू कश्मीर राज्य को अन्य राज्यों के बराबर लाने की परिकल्पना शुरुआत से ही की गई थी। उन्होंने कहा कि इसलिए अनुच्छेद 370 का उल्लेख भारत के संविधान में अस्थायी के रूप में किया गया था।