जम्मू-कश्मीर के कठुआ में इस मंदिर समेत 11 अन्य धरोहरों को बनाया गया राष्ट्रीय स्मारक
जम्मू-कश्मीर के मंदिर समेत 11 नई धरोहरों के बाद अब देश में राष्ट्रीय स्मारकों की संख्या 3697 हो गई है। खास बात ये है कि इसमें चार मंदिर भी शामिल हैं। जानें- कौन से हैं ये स्मारक?
By Amit SinghEdited By: Updated: Sat, 10 Aug 2019 04:13 PM (IST)
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। अनुच्छेद-370 (Article 370) खत्म किए जाने की वजह से जम्मू-कश्मीर इन दिनों चर्चा में है। अब खबर सामने आई है कि कठुआ के एक मंदिर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया है। इसके अलावा कुल 11 धरोहरों को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है। खास बात यह है कि इन स्मारकों में चार मंदिर शामिल हैं। जानें और किन-किन धरोहरों को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है?
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने एक साल में देश की संस्कृति और सभ्यता से जुड़े महत्वपूर्ण 11 धरोहरों को राष्ट्रीय स्मारक बनाने का रिकॉर्ड कायम किया है। राष्ट्रीय स्मारक होने के नाते अब इन मंदिरों के संरक्षण की जिम्मेदारी सरकार उठाएगी। इन 11 नई धरोहरों को मिलाकर देश में राष्ट्रीय स्मारकों की संख्या 3,586 से बढ़कर 3,697 हो गई है।यहां बनाए गए राष्ट्रीय स्मारक
ये स्मारक उत्तराखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, केरल और जम्मू-कश्मीर में स्थित हैं। इन स्मारकों में ओडिशा के बोलंगीर स्थित रानीपुर झारियाल मंदिर समूह, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ स्थित कोटली का विष्णु मंदिर, केरल के वायनाड स्थित जनार्दन मंदिर, जम्मू कश्मीर के कठु़आ स्थित त्रिलोचननाथ मंदिर शामिल है। देहरादून स्थित जगतग्राम का अश्वमेध यज्ञ स्थल को भी राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिया गया है।
ये स्मारक उत्तराखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, केरल और जम्मू-कश्मीर में स्थित हैं। इन स्मारकों में ओडिशा के बोलंगीर स्थित रानीपुर झारियाल मंदिर समूह, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ स्थित कोटली का विष्णु मंदिर, केरल के वायनाड स्थित जनार्दन मंदिर, जम्मू कश्मीर के कठु़आ स्थित त्रिलोचननाथ मंदिर शामिल है। देहरादून स्थित जगतग्राम का अश्वमेध यज्ञ स्थल को भी राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिया गया है।
खोदाई स्थल भी बना राष्ट्रीय स्मारक
उत्तराखंड के वीरपुर खुर्द स्थित वीरभद्र ऋषिकेश खोदाई स्थल को भी राष्ट्रीय स्मारक बनाया गया है। किसी खोदाई स्थल को विशेष परिस्थितियों में ही राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाता है। इसके लिए लंबी कागजी प्रक्रिया से गुजरना होता है। जिसमें सालों लग जाते हैं। मगर एएसआइ ने अप्रैल 2018 से लेकर मार्च 2019 तक इस कार्य का अंजाम दिया है। अश्वमेध यज्ञ स्थल स्मारक
विकासनगर से छह किलोमीटर दूर कालसी के समीप बाड़वाला नामक स्थान पर एक सघन आम के बाग के बीच अदृश्य और उपेक्षित किंतु अत्यधिक महत्व का ऐतिहासिक स्थल जगत ग्राम है। यह ऐतिहासिक स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सन 1952 से 1954 के बीच किए गए उत्खनन से प्रकाश में आया। इस उत्खनन में पक्की ईंटों से निर्मित तीसरी शताब्दी की उड़ते हुए गरुण के आकार वाली तीन यज्ञ वेदिकाओं का अनावरण हुआ, जो आसपास के धरातल से तीन-चार फीट नीचे दबी पड़ी थीं।
उत्तराखंड के वीरपुर खुर्द स्थित वीरभद्र ऋषिकेश खोदाई स्थल को भी राष्ट्रीय स्मारक बनाया गया है। किसी खोदाई स्थल को विशेष परिस्थितियों में ही राष्ट्रीय स्मारक बनाया जाता है। इसके लिए लंबी कागजी प्रक्रिया से गुजरना होता है। जिसमें सालों लग जाते हैं। मगर एएसआइ ने अप्रैल 2018 से लेकर मार्च 2019 तक इस कार्य का अंजाम दिया है। अश्वमेध यज्ञ स्थल स्मारक
विकासनगर से छह किलोमीटर दूर कालसी के समीप बाड़वाला नामक स्थान पर एक सघन आम के बाग के बीच अदृश्य और उपेक्षित किंतु अत्यधिक महत्व का ऐतिहासिक स्थल जगत ग्राम है। यह ऐतिहासिक स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सन 1952 से 1954 के बीच किए गए उत्खनन से प्रकाश में आया। इस उत्खनन में पक्की ईंटों से निर्मित तीसरी शताब्दी की उड़ते हुए गरुण के आकार वाली तीन यज्ञ वेदिकाओं का अनावरण हुआ, जो आसपास के धरातल से तीन-चार फीट नीचे दबी पड़ी थीं।
इन यज्ञ वेदिकाओं को भारतीय पुरातत्व विभाग ने अखिल भारतीय संदर्भ में दुर्लभतम माना है। तीन वेदिकाओं में से एक वेदिका की ईंटों पर ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण सूचना के आधार पर जो तथ्य प्रकाश में आए, उनके अनुसार ईसा की पहली से पांचवीं सदी के बीच वर्तमान सरसावा, हरिपुर, विकासनगर और संभवत: लाखामंडल तक युग शैल नामक एक साम्राज्य था। जिसकी राजधानी हरिपुर थी। यह साम्राज्य बृषगण गौत्रीय वर्मन वंश द्वारा शासित था। इस साम्राज्य का उत्कर्ष काल, तीसरी शताब्दी में शील वर्मन नामक परम शक्तिशाली राजा हुए, उन्होंने जगतग्राम पर चार अश्वमेध यज्ञ कर अपने उत्कर्ष का प्रदर्शन किया। इन्हीं अश्वमेध यज्ञों में से तीन यज्ञों की वेदिकाएं हैं और चौथा स्थल अभी खोजना बाकी है।
ऋषिकेश स्थित वीरभद्र खुदाई स्थल
वीरभद्र में 1973 से 1975 के बीच एएसआइ ने खुदाई कराई थी। जिसमें तीन सांस्कृतिक स्थल प्रकाश में आए। जिनका प्रारंभिक काल एक शताब्दी से लेकर तीसरी शताब्दी ईस्वी, दूसरे भाग में खुदाई में चौथी शताब्दी से लेकर 5वीं शताब्दी और तीसरे भाग की खुदाई में 7वीं शताब्दी से लेकर 8वीं शताब्दी के प्रमाण मिले हैं। यहां खोदाई में मिट्टी के घरों के निर्माण के अलावा शिव मंदिर के भी प्रमाण मिले हैं। माना जाता है कि कोई संपन्न सभ्यता के हिंदू लोग यहां रहते रहे होंगे। बनाए गए स्मारकों की सूची
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वीरभद्र में 1973 से 1975 के बीच एएसआइ ने खुदाई कराई थी। जिसमें तीन सांस्कृतिक स्थल प्रकाश में आए। जिनका प्रारंभिक काल एक शताब्दी से लेकर तीसरी शताब्दी ईस्वी, दूसरे भाग में खुदाई में चौथी शताब्दी से लेकर 5वीं शताब्दी और तीसरे भाग की खुदाई में 7वीं शताब्दी से लेकर 8वीं शताब्दी के प्रमाण मिले हैं। यहां खोदाई में मिट्टी के घरों के निर्माण के अलावा शिव मंदिर के भी प्रमाण मिले हैं। माना जाता है कि कोई संपन्न सभ्यता के हिंदू लोग यहां रहते रहे होंगे। बनाए गए स्मारकों की सूची
- ओडिशा के बोलंगीर स्थित रानीपुर झारियाल मंदिर समूह
- उत्तराखंड के पिथौरागढ़ स्थित कोटली का विष्णु मंदिर
- केरल के वायनाड स्थित जनार्दन मंदिर
- जम्मू कश्मीर के कठु़आ स्थित त्रिलोचननाथ मंदिर
- देहरादून स्थित जगतग्राम का अश्वमेध यज्ञ स्थल
- उत्तराखंड के वीरपुर खुर्द स्थित वीरभद्र ऋषिकेश खुदाई स्थल
- नागपुर स्थित हाईकोर्ट की पुरानी इमारत
- हाथी खाना, आगरा
- आगा खां की हवेली, आगरा
- राजस्थान के अलवर स्थित नीमराना की ऐतिहासिक बावली
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