Assembly Election 2023: मुफ्त वादों पर चुनाव आयोग ने उठाए सवाल, कहा- ऐसी घोषणाएं चुनाव के वक्त ही क्यों?
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि चुनावों में किए जाने वाले मुफ्त वादे राजनीतिक दलों के लिए लोकप्रियता का एक तड़का जरूर है लेकिन जीतने के बाद उनके लिए उसे निभाना और रोकना दोनों ही कठिन होता है। उन्होंने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने विचाराधीन है। बावजूद इसके वह जल्द ही कोर्ट से यह अनुरोध करेंगे कि इसे लेकर उन्हें कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए जाएं।
By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Mon, 09 Oct 2023 09:56 PM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मुफ्त चुनावी वादों को लेकर जब प्रतिस्पर्धा बढ़ी हुई है, ऐसे समय में चुनाव आयोग ने इस पर सवाल उठाए है और कहा है कि पांच साल तक सरकारों को ऐसी घोषणाओं की याद क्यों नहीं आती है। उन्हें चुनाव से ठीक पहले ही इसकी याद क्यों आती है?
चुनावों में किए जाने वाले मुफ्त वादे राजनीतिक दलों के लिए 'लोकप्रियता का एक तड़का' जरूर है, लेकिन जीतने के बाद उनके लिए उसे निभाना और रोकना दोनों ही कठिन होता है। इसे लिए जनता को यह जानने का अधिकार है कि वह इसे कैसे लागू करेंगे और इसके लिए जरूरी पूंजी कहां से जुटाएंगे।- मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार
मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह टिप्पणी सोमवार को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कार्यक्रम के ऐलान के मौके पर पूछे गए सवालों के जवाब देते हुए की।
मुस्तैदी से जुटा है चुनाव आयोगः मुख्य चुनाव आयुक्त
उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों की ओर से की जाने वाले घोषणाओं और मुफ्त वादों से जुड़ी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए आयोग मुस्तैदी से जुटा है। आयोग ने इसे लेकर राजनीतिक दलों के साथ एक विमर्श शुरू किया है। एक प्रोफार्मा जारी कर उन्हें जरूरी जानकारी देने के लिए कहा गया है।यह भी पढ़ेंः 17 को MP और 23 को राजस्थान में चुनाव, छत्तीसगढ़ में दो चरणों में मतदान; 3 दिसंबर को नतीजे
चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से क्या कहा है?
वैसे तो चुनावी प्रक्रिया के तहत सभी राजनीतिक दलों को अपने घोषणा पत्र जारी करने का अधिकार है, लेकिन आयोग का मानना है कि जो घोषणाएं की जा रही है, वह उन्हें कैसे पूरा करेंगे यह जानने का जनता और मतदाताओं को भी अधिकार है। फिलहाल आयोग ने राजनीतिक दलों से कहा है कि वह बताए कि जो घोषणाएं या वादे वह कर रहे है, उसे कैसे पूरा करेंगे। कहां से वित्तीय संसाधन जुटाएंगे। कौन- कौन इसका दायरे में आएगा। आदि।