Venus Phosphine: शुक्र ग्रह पर जीवन संभव है? वैज्ञानिकों की इस खोज से छिड़ी नई बहस
जेन ग्रीव्स ने बताया कि एक प्रमुख सिद्धांत यह बताता है कि फॉस्फीन का निर्माण फॉस्फोरस से बनी चट्टानों के ऊपरी वायुमंडल में छोड़े जाने से होता है जहां वे पानी और अम्लों के साथ प्रतिक्रिया करके फॉस्फीन गैस बनाते हैं। फॉस्फीन एक रंगहीन गैस है जिसकी गंध लहसुन या सड़ी हुई मछली की तरह होती है। यह ज्वलनशील गैस है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। खगोलविद वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह (Venus) पर फॉस्फीन गैस का पता लगाकर अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल कर ली है। इसी के साथ फॉस्फीन का पता चलने से शुक्र पर जीवन के होने की संभावना बढ़ गई है।
इसी हफ्ते रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी की राष्ट्रीय खगोल विज्ञान बैठक 2023 में बोलते हुए, ब्रिटेन की कार्डिफ यूनिवर्सिटी की जेन ग्रीव्स ने शुक्र ग्रह के वायुमंडल में पहले से कहीं ज्यादा फॉस्फीन की खोज का खुलासा किया।
कैसे बनती है फॉस्फीन गैस?
जेन ग्रीव्स ने बताया कि एक प्रमुख सिद्धांत यह बताता है कि फॉस्फीन का निर्माण फॉस्फोरस से बनी चट्टानों के ऊपरी वायुमंडल में छोड़े जाने से होता है, जहां वे पानी और अम्लों के साथ प्रतिक्रिया करके फॉस्फीन गैस बनाते हैं।
फॉस्फीन एक रंगहीन गैस है
दरअसल, फॉस्फीन एक रंगहीन गैस है जिसकी गंध लहसुन या सड़ी हुई मछली की तरह होती है। यह ज्वलनशील गैस है। फॉस्फीन के संपर्क में आने से मतली, उल्टी, पेट दर्द, दस्त, प्यास, मांसपेशियों में दर्द, सांस लेने में परेशानी हो सकती है। इसके अधिक और लंबे समय तक संपर्क में रहने से गंभीर स्वास्थ्य का जोखिम हो सकता हैं।
धरती के वायुमंडल में कम मात्रा में फॉस्फीन मौजूद
फॉस्फीन धरती के वायुमंडल में कम मात्रा में मौजूद है। यह वैश्विक फॉस्फोरस जैव रासायनिक चक्र में अहम भूमिका निभाता है। फॉस्फीन मुख्य रूप से रेडॉक्स जहर के तौर पर काम करता है, जो ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा करके कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। औद्योगिक रूप से फॉस्फीन का इस्तेमाल भंडारित किए गए अनाज और तम्बाकू में कीट नियंत्रण के लिए किया जाता है, जो कीटों का सफाया करता है।
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