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Jayant Narlikar: 'द बिग बैंग' थ्‍योरी को नकारने वाले खगोलशास्‍त्री, जिन्होंने शब्दों से कराई ब्रह्मांड की सैर

Astrophysicist Jayant Narlikar जयंत विष्णु नार्लीकर ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने न केवल ब्रह्मांड की उत्पत्ति जैसे गूढ़ विषय पर उत्कृष्ट योगदान दिया बल्कि अंतरिक्ष के रहस्यों को बच्चों के बीच लोकप्रिय भी बनाया। उन्हें अक्सर दूरदर्शन या रेडियो पर विज्ञान के लोकप्रिय भाषण देते हुए या फिर बच्चों से घिरे विज्ञान के कठिन सवालों के जवाब देते हुए देखा एवं सुना जा सकता है। आज इनकी 85वीं जयंती है।

By Babli KumariEdited By: Babli KumariUpdated: Wed, 19 Jul 2023 04:58 PM (IST)
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Astrophysicist Jayant Narlikar: ऐसे खगोलशास्‍त्री जिन्‍होंने 'द बिग बैंग' थ्‍योरी को नकारा
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Astrophysicist Jayant Narlikar: यह साल 1974 की बात है। मराठी विज्ञान परिषद को, जो कि विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित थी, अपनी वार्षिक कहानी लेखन प्रतियोगिता के लिए नारायण विनायक जगताप के नाम से एक आवेदन प्राप्त होता है। ’कृष्ण विवर’ नाम से प्रस्तुत यह कहानी ब्लैक होल के विषय पर आधारित थी और भारतीय विज्ञान की फिक्शन श्रेणी में नई आवाज बन कर उभरी और प्रथम पुरस्कार हासिल किया। यह प्रथम पुरुस्कार जीतने वाले नारायण विनायक जगताप या NVJ वास्तव में JVN थे, यानी जयंत विष्णु नार्लीकर ही थे।

जयंत विष्णु नार्लीकर भारत के वही लोकप्रिय वैज्ञानिक थे, जिन्होंने 80-90 के दशक में बच्चों के साथ–साथ बड़ों को भी ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों के बारे में बताया जिनके लिए आकाश, तारे, चांद सब जिज्ञासा का विषय भर थे। नार्लीकर ने आसान शब्दों में हमारे बच्चों को ब्रह्माण्ड की सैर कराई। दूरदर्शन पर प्रसारित ब्रह्मांड नामक शो के माध्यम से नार्लीकर ने बच्चों को रॉकेट और अंतरिक्ष विज्ञान की विभिन्न घटनाओं के बारे में बताया। उस पीढ़ी के बच्चे अगर चांद पर जाने, विज्ञान के बारे में जानने या वैज्ञानिक बनने के बारे में सोच पाए तो निश्चित रूप से इसका श्रेय जयंत नार्लीकर को भी जाता है।

जयंत विष्णु नार्लीकर ऐसे वैज्ञानिक थे, जिन्होंने न केवल ब्रह्मांड की उत्पत्ति जैसे गूढ़ विषय पर उत्कृष्ट योगदान दिया, बल्कि अंतरिक्ष के रहस्यों को बच्चों के बीच लोकप्रिय भी बनाया। उन्हें अक्सर दूरदर्शन या रेडियो पर विज्ञान के लोकप्रिय भाषण देते हुए या फिर बच्चों से घिरे विज्ञान के कठिन सवालों के जवाब देते हुए देखा एवं सुना जा सकता है।

तीक्ष्ण बुद्धि और विभिन्न विषयों के जानकार और विज्ञान विषय के एक्सपर्ट हैं जयंत नार्लीकर। विज्ञान की दुनिया में इनका सम्माननीय स्थान है और इनकी प्रसिद्धि सिर्फ देश ही नहीं विदेशों तक फैली हुई है। आज जयंत नार्लीकर का जन्मदिन है। नार्लीकर ने ब्रह्मांड में अनेक परिवर्तन, नए सिद्धांत दुनिया के सामने प्रस्तुत किए। अपने कई साक्षात्कारों के माध्यम से उन्होंने दुनिया को ब्रह्मांड के रहस्य आसान शब्दों में बताए। जयंत नार्लीकर एक खगोलशास्त्री और गणितज्ञ हैं। इन विषयों पर उन्होंने गहन अध्ययन किया है। उनकी पत्नी मंगला नार्लीकर का हाल ही में निधन हो गया। वह भी एक गणितज्ञ थीं। तो आइए जयंत नार्लीकर के जन्मदिन पर जानते हैं कि इन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में क्या-क्या कार्य किए-

बचपन और प्रारंभिक जीवन (Childhood and Early Life)

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में विष्णु वासुदेव नार्लीकर और सुमति नार्लीकर के घर जयंत विष्णु नार्लीकर का जन्म 19 जुलाई 1938 को हुआ था। नार्लीकर ने कक्षा 12 की पढ़ाई केन्द्रीय विद्यालय बनारस से पूरी की। उसके बाद आगे की पढ़ाई उन्होंने बनारस से ही जारी रखी। साल 1957 में नार्लीकर ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से साइंस ग्रेजुएट की उपाधि प्राप्त की। साल 1959 में  इंग्लैंड के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के फिट्ज़विलियम हाउस में गणित में बीए किया और सीनियर रैंगलर (एक छात्र जो गणित में स्नातक की डिग्री के तीसरे वर्ष में प्रथम श्रेणी सम्मान प्राप्त करता है) बने। इसके बाद नार्लीकर ने अपनी पीएचडी 1963 में फ्रेड हॉयल के मार्गदर्शन में पूरी की।

कैरियर और उपलब्धियां (Career and Achievements)

मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) में सैद्धांतिक खगोल भौतिकी समूह का नेतृत्व 1972 में जयंत नार्लीकर ने किया था। नार्लीकर को 1988 में, पुणे के इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) के सम्मानित संस्थापक निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था।

जयंत नार्लीकर को मिला अपने कार्य के ये सभी पुरस्कार (Awards Received)

जयंत नार्लीकर ने अपने जीवन के सफर में नार्लीकर को अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा गया। इन पुरस्कारों में प्रमुख हैं: स्मिथ पुरस्कार (1962), पद्म भूषण (1965), एडम्स पुरस्कार (1967), शांतिस्वरूप पुरस्कार (1979), इन्दिरा गांधी पुरस्कार (1990), कलिंग पुरस्कार (1996) और पद्म विभूषण (2004), महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार (2010)।