Attack on Rushdie: भारतीय लेखकों ने की घटना की निंदा, कहा- यह घटना कट्टरता के खतरे को इंगित करती है
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित थियेटर निर्देशक नीलम मानसिंह चौधरी ने कहा कि हम करुणा से अधिक घृणा और हिंसा से एकजुट समाज का हिस्सा बन गए हैं। इनके अलावा महेश दत्तानी और तसलीमा नसरीन ने भी घटना पर प्रतिक्रिया दी है।
By Shivam YadavEdited By: Updated: Tue, 16 Aug 2022 12:49 PM (IST)
नई दिल्ली (एजेंसी)। न्यूयार्क में लेखक सलमान रुश्दी (Salman Rushdie) पर हुए हमले की भारतीय लेखकों ने निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह घटना लेखकों के प्रति कट्टरता के संभावित खतरों की तरफ इशारा करता है। मालूम हो कि 12 अगस्त को हुए जानलेवा हमले में घायल लेखक सलमान रुश्दी की सेहत में सुधार आ रहा है।
रुश्दी पश्चिमी न्यूयार्क में ‘निर्वासन में लेखकों और अन्य कलाकारों की शरण स्थली के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका’ विषय पर चर्चा के लिए आए थे। वह स्टेज पर सभी से मुलाकात कर ही रहे थे, तभी एक 24 वर्षीय युवक हदी मटर (Hadi Matar) ने रुश्दी पर चाकुओं से कई बार वार किया था। इस हमले में रुश्दी बुरी तरह घायल हो गए थे। वहीं घटना ने पहले से ही ध्रुवीकृत समय में एक और चर्चा का विषय तैयार कर दिया है।
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने हमले को "निंदनीय" बताया है। वहीं देश भर के लेखकों और कलाकारों ने समाचार एजेंसी आईएएनएस को बताया कि यह घटना एक चेतावनी है कि स्वतंत्र भाषण, धार्मिक कट्टरता और कलाकारों के खिलाफ हिंसा लंबे समय तक सुर्खियों से दूर नहीं रह सकती।
नयनतारा ने कहा- वे डरी हुई हैं
2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाली रुश्दी की लंबे समय तक मित्र रही लेखिका नयनतारा सहल ने कहा कि वह सलमान रुश्दी पर हुए हमले और नफरत भरी उस दुनिया से बहुत डरी हैं, जिसमें वे रहती हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं एक लेखिका के रूप में उनके (रुश्दी) के साहस को सलाम करती हूं, जिन्होंने अभिव्यक्ति की रक्षा की है।’
वहीं पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित थियेटर निर्देशक नीलम मानसिंह चौधरी ने कहा कि हम करुणा से अधिक घृणा और हिंसा से एकजुट समाज का हिस्सा बन गए हैं। उन्होंने कहा कि रुश्दी पर हमला उनको विचलित करती है। उन्होंने कहा, ‘सभ्यता एक पतली परत है जिसे उत्साहपूर्वक संरक्षित करने की आवश्यकता है।’
यह हैरान करने वाली घटना: महेश दत्तानी
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नाटककार महेश दत्तानी ने कहा कि शब्दों के खिलाफ यह लड़ाई चाकू या बंदूकों से नहीं लड़ा जा सकता। यह दुखद और दुखद समय है। उन्होंने कहा, ‘फतवा 1989 में जारी हुआ था और हमला 2022 में हो रहा है। यह हैरान करने वाला वाकया है कि लोग अपने अंधविश्वास के चलते किसी भी जान लेने पर आमादा हैं।’
इसके अलावा, कोच्चि बिएननेल फाउंडेशन के कलाकार और संस्थापक सदस्य-अध्यक्ष बोस कृष्णमाचारी ने कहा कि धार्मिक कट्टरता दुनिया के केवल हमारे हिस्से की की समस्या नहीं है। उन्होंने, ‘हम निश्चित रूप से सामाजिक विकास के मामले में पीछे की ओर जाते दिख रहे हैं। यह स्वस्थ समाज कतई नहीं है। इसकी शुरुआत हमेशा लेखकों और कलाकारों से होती है, लेकिन यह कोई परिधीय चीज नहीं है। हमने देखा है कि पूरे इतिहास में सबसे पहली आवाज जो दबाई जाती है वह कलाकार की होती है।’