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औरंगजेब ने कराया था काशी विश्वनाथ मंदिर का ध्‍वंस, रानी अहिल्‍या बाई ने कराया पुनर्निर्माण; जानें पूरी कहानी

उद्घाटन के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि काशी तो अविनाशी है और इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि आततायियों ने इस शहर पर हमले किए। औरंगजेब ने तलवार के दम पर संस्कृति को कुचलने की कोशिश की।

By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Tue, 14 Dec 2021 06:53 AM (IST)
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क्रूर मुगल शासक औरंगजेब और रानी अहिल्याबाई
 नई दिल्‍ली, आनलाइन डेस्‍क। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को काशी विश्वनाथ धाम कारिडोर का उद्घाटन किया। इससे पहले 18 अप्रैल 1669 को क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। 1669-70 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण करवाया। रानी अहिल्याबाई के योगदान का शिलापट और उनकी एक मूर्ति भी 'श्री काशी विश्वनाथ धाम' के प्रांगण में लगाई गई। अहिल्याबाई के बाद पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने विश्वनाथ मंदिर के शिखर पर सोने का छत्र बनवाया। कहा जाता है ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने भी मुख्य मंदिर का मंडप बनवाया था।

पीएम मोदी बोले

उद्घाटन के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि काशी तो अविनाशी है और इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि आततायियों ने इस शहर पर हमले किए। औरंगजेब ने तलवार के दम पर संस्कृति को कुचलने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि काशी पर औरंगजेब ने अत्याचार किए। यहां मंदिर तोड़ा गया तो माता अहिल्याबाई होलकर ने इसका निर्माण कराया। जैसे काशी अनंत है, ऐसे ही उसका योगदान भी अनंत है।

नहीं तोड़ सके मंद‍िर का शिवल‍िंग

बताया जाता है क‍ि औरंगजेब के फरमान के बाद 1669 में मुगल सेना ने विशेश्वर का मंदिर ध्वस्त कर दिया था। स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को कोई क्षति न हो, इसके लिए मंदिर के महंत शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कुंड में कूद गए थे। हमले के दौरान मुगल सेना ने मंदिर के बाहर स्थापित विशाल नंदी की प्रतिमा को तोड़ने का प्रयास किया था लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी वे नंदी की प्रतिमा को नहीं तोड़ सके। आज तक विश्वनाथ मंदिर परिसर से दूर रहे ज्ञानवापी कूप और विशाल नंदी को एक बार फिर 352 साल बाद विश्वनाथ मंदिर परिसर में शामिल कर लिया गया है।

रानी अहिल्याबाई होल्कर और उनका मंदिर में योगदान

1777 में इंदौर के होल्कर राजघराने की रानी अहिल्या बाई होल्कर विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाने का प्रण लि‍या। उन्‍होंने अगले 3 साल में मंदिर पुनर्निर्माण करवाया। यूं तो रानी अहिल्याबाई का शासन इंदौर जैसे एक छोटे से राज्य पर ही था, लेकिन उन्होंने देश के कई इलाकों में विकास के काम करवाए। उन्होंने अपने राज्‍य में कई तालाब, सडकें, नदियों के किनारे घाट और मंदिरों के पुनर्निर्माण का करवाया था। अहिल्याबाई एक सफल शासक और कूटनीतिज्ञ थीं, लेकिन, इतिहासकारों के अनुसार, उनकी धार्मिक प्रवृत्ति और मंदिरों के प्रति श्रद्धा भाव के चलते उन्हें संत भी कहा जाने लगा था।

जानें क्‍या है काशी विश्वनाथ मंदिर में योगदान

इंदौर के होल्कर राजघराने के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के बेटे खांडेराव होल्कर की पत्नी रानी अहिल्याबाई थीं। 1733 में अहिल्याबाई की शादी खांडेराव से हुई थी, लेकिन 1754 कुम्भेर के युद्ध में खांडेराव की मृत्यु हो गई। 12 साल बाद उनके ससुर मल्हारराव होल्कर भी नहीं रहे। मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होल्कर ने भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण को लेकर काफी कोशिशें की थीं, इनकी कोशिशों को देखते हुए ही साल 1770 में दिल्ली में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय यानी अली गौहर ने मंदिर विध्वंस की क्षतिपूर्ति वसूलने का आदेश भी जारी कर दिया, लेकिन तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी यानि अंग्रेजों का राज हो गया और मंदिर का काम रुक गया। दो साल बाद अहिल्याबाई के इकलौते बेटे मालेराव का भी 21 साल की उम्र में देहांत हो गया, अब इंदौर का शासन पूरी तरह अहिल्याबाई के हाथों में था।

साल 1777-80 के बीच रानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर निर्माण का प्रयास दोबारा शुरू किया और सफल भी हुईं। अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह कों फिर से बनवाया और शास्त्रसम्मत तरीके से मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा भी करवाई। काशी के जानकार प्रोफेसर राना वीपी सिंह का कहना है क‍ि काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर रानी अहिल्याबाई का योगदान अतुलनीय है। रानी ने शास्त्र सम्मत तरीके से शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। एकादश रूद्र के प्रतीक स्वरुप 11 शास्त्रीय आचार्यों द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा के लिए पूजा की गई। रानी ने शिवरात्रि से इसका संकल्प किया और शिवरात्रि पर ही मंदिर खोला गया। इससे रानी की दृष्टि और सनातन संस्कृति के प्रति निष्ठा का पता चलता है। काशी से अगर विश्वनाथ को अलग करें तो कुछ नहीं बचेगा। मंदिर जब क्षतिग्रस्त किया गया तब रानी अहिल्याबाई मानो अन्नपूर्णा के आशीर्वाद स्वरुप वहां पहुंचीं और मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।