AYODHYA CASE: कोर्ट के बाहर मध्यस्थता से नहीं सुलझा मामला तो रोजाना शुरू हुई सुनवाई, अब फैसले का इंतजार
AYODHYA CASE सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि दोनों पक्ष चाहें तो वो कोर्ट के बाहर इस मामले को सुलझा सकते हैं मगर बात नहीं बन पाई।
By Vinay TiwariEdited By: Updated: Sat, 09 Nov 2019 10:06 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अयोध्या मामला कोर्ट में पहुंचने के बाद उसके निपटारे के लिए तमाम तरह के प्रयास किए गए। एक समय ऐसा भी आया जब कोर्ट ने ये भी कहा कि यदि दोनों पक्ष कोर्ट के बाहर इस मामले को निपटाना चाहते हैं तो वो उस दिशा में भी काम कर सकते हैं। मध्यस्थता के लिए हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों के बड़े नेताओं को आमने-सामने बैठकर बात करने के लिए कहा गया। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि यदि जरूरत पड़ती है तो कोर्ट के जज भी इस मामले में मध्यस्थता करने के लिए तैयार हैं। मगर पहले दोनों पक्षों के लोगों को इसके लिए राजी होना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता करने की मंजूरी प्रदान की 08 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने श्री श्री रविशंकर, श्रीराम पंचू और जस्टिस एफएम खलीफुल्ला को अयोध्या केस में मध्यस्थता करने की मंजूरी प्रदान की। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता को तैयार हुआ, लेकिन हिंदू महासभा और रामलला पक्ष ने ये कहकर असहमति जताई कि जनता मध्यस्थता के फैसलों को नहीं मानेगी। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के मामले पर फैसला सुरक्षित रखा। 02 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता के जरिए अयोध्या केस नहीं सुलझाया जा सकता। इसी के साथ कोर्ट ने 6 अगस्त से केस में प्रतिदिन सुनवाई की डेट फिक्स कर दी। आइए जानते हैं कि मध्यस्थता के जरिए इस केस को सुलझाने के मामले में अब तक क्या-क्या हुआ:-
21 मार्च 2017- सुप्रीम कोर्ट मार्च के महीने में इस मामले की सुनवाई हो रही थी। इस दौरान चीफ जस्टिस रहे जेएस खेहर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल की बेंच ने कहा था कि यह मुद्दा धर्म और आस्था से जुड़ा हुआ है, इसलिए यदि दोनों पक्ष आमने-सामने बैठें और बातचीत के जरिए इसका हल निकालने की कोशिश करें तो उस पर भी विचार किया जा सकता है। इसी के साथ चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि इस मामले में यदि जरूरत पड़ती है तो सुप्रीम कोर्ट के जज भी मध्यस्थता करने के लिए तैयार हैं। मगर जब सभी पक्ष राजी होंगे तभी इस मामले का निपटारा हो सकता है।
26 अक्टूबर 2017 श्रीश्री रविशंकर की ओर से बयाना दिया गया कि वो बाबरी विवाद को कोर्ट से बाहर सुलझाने के लिए निजीतौर पर कोशिश कर रहे हैं। शिया वक्फ बोर्ड के नेताओं से बातचीत की जा रही है।28 अक्टूबर 2017 आधात्यमिक गुरू श्रीश्री रविशंकर ने कहा है कि वो राम मंदिर का मसला हल करने में मदद कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वो इस मामले में मध्यस्थता करने को तैयार हैं मगर उनकी ओर से भी इस मामले में कोई पहल नहीं की जाएगी। उन्होंने ये जानकारी भी दी थी कि कुछ लोग उनके पास आए थे और मुझसे मुलाकात की थी। जो लोग मिलने के लिए आए थे वो भी इस मामले का आपसी रजामंदी से हल निकालना चाहते हैं, यदि वो लोग मुझे केंद्र में रखकर मामला सुलझाना चाहते हैं तो मैं उसके लिए तैयार हूं।
31 अक्टूबर 2017 मामले को अदालत से बाहर सुलझाने की कड़ी में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने मुलाकात की। इस मसले पर दोनों के बीच लगभग एक घंटे तक बातचीत हुई। इस पर वसीम रिजवी ने कहा कि राम मंदिर फैजाबाद जिले के अयोध्या शहर में राम जन्मभूमि पर ही बनना चाहिए। शिया वक्फ बोर्ड भी इस मामले में पार्टी हैं, क्योंकि बाबरी मस्जिद शिया मस्जिद थी।
शिया मस्जिद होने की वजह से उनका भी इस पर दावा था। जब वसीम रिजवी से पूछा गया कि इतने सालों तक वो इस पूरे मामले में चुप्पी क्यों साधे रहे तो उन्होंने साफ किया कि किसी मामले में खामोश रहने का मतलब ये नहीं है कि हमारा उस पर से अधिकार ही खत्म हो गया है। मस्जिद पर शिया वक्फ बोर्ड का अधिकार है हम उसको लेने के लिए अदालत का सहारा लेंगे।हिंदू महासभा ने किया विरोध
उधर आधात्यमिक गुरू श्रीश्री रविशंकर इस मामले को मध्यस्थता के जरिए सुलझाने की कोशिश कर रहे थे उधर हिंदू महासभा ने बयान जारी करके राम मंदिर मामले में रविशंकर के मध्यस्थता करने का विरोध शुरू कर दिया। महासभा के राष्ट्रीय सचिव मुन्ना कुमार शर्मा ने बयान जारी किया, इसमें कहा जब वे इस मामले में कभी पक्षकार नहीं रहे तो मध्यस्थ कैसे बन सकते हैं? श्री श्री रविशंकर कभी भी श्रीराम जन्मभूमि विवाद से जुड़े ही नहीं रहे। उन्होंने ना ही कभी मंदिर बनाने की कोशिश की और ना ही कभी किसी भी आंदोलन से ही जुड़े रहे हैं। इस तरह का बयान आने के बाद श्रीश्री रविशंकर मामले में पीछे हो गए।
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी इसके बाद बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने भी सहमति नहीं जताई। एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा कि बातचीत या फिर मध्यस्थता से अब यह मसला हल नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि बोर्ड के सदस्य मध्यस्थता को तैयार नहीं हैं। जिलानी ने कहा कि मुस्लिम पक्ष मस्जिद की जमीन को सरेंडर करने को तैयार नहीं है। गरीब नवाज फाउंडेशन
गरीब नवाज फाउंडेशन के चैयरमेन अंसार रजा ने भी श्रीश्री रवि शंकर के इस मामले में मध्यस्थता का विरोध दर्ज कराया। उन्होंने कहा कि श्रीश्री का इस मामले से दूर दूर तक कोई लेना देना ही नहीं है, उनको बीच में बोलने का कोई हक नहीं, इस वजह से इस मामले से जुड़े दोनों पक्षों को अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए। राम जन्मभूमि न्यास इसके बाद राम जन्मभूमि न्यास के सदस्यों ने भी आपत्ति दर्ज करवा दी। न्यास के वरिष्ठ सदस्य रामविलास वेदांती ने कहा है कि अयोध्या विवाद से श्री श्री रविशंकर का कुछ भी लेना देना नहीं है, इसलिए उनकी मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जाएगी। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन राम जन्मभूमि न्यास और विश्व हिंदू परिषद ने लड़ा है इसलिए बातचीत के जरिए इसे सुलझाने का मौका भी इन्हीं दोनों संगठनों को मिलना चाहिए। उन्होंने ये सलाह भी दी कि देश के धर्माचार्य और उलेमाओं को बैठकर बाबरी विवाद के मसले का हल निकालना चाहिए।
निर्मोही अखाड़ा के बयान अखाड़े के महंत राम दास ने कहा कि इस मामले में बातचीत संवैधानिक दायरे के भीतर होनी चाहिए, इसमें किसी भी तरह की राजनीतिक दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए। जिन लोगों को अब तक इससे कोई सरोकार ही नहीं रहा वो इस मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता कैसे कर सकते हैं?