Ayodhya Verdict : 1989 में राम मंदिर शिलान्यास ने इसे देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन दिया
Ayodhya Verdict वर्ष 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की राजनीतिक मजबूरियों ने राम मंदिर आंदोलन को तेज होने का मौका दे दिया। इसके बाद ये मसला कभी ठंडा नहीं हुआ।
By Amit SinghEdited By: Updated: Sat, 09 Nov 2019 10:22 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Ayodhya Verdict : माना जाता है कि करीब 500 वर्ष पहले अयोध्या में राम मंदिर गिराकर, मुगल शासक बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने वहां मस्जिद का निर्माण कराया था। वर्ष 1528 के आसपास बनी इस मस्जिद को बाबरी मस्जिद कहा गया। यहीं से राम जन्मभूमि को लेकर विवाद की शुरूआत हुई। इसके बाद वर्ष 1986 में फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दुओं के अनुरोध पर विवादित स्थल के दरवाजे प्रार्थना के लिए खुलवा दिए। मुसलमानों ने इसका विरोध शुरू करते हुए, बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति बना ली। यहीं से हिंदू भी राम मंदिर निर्माण के लिए एकजुट होने शुरू हो गए। राम मंदिर की मांग रफ्तार पकड़ रही थी। राम मंदिर की मांग में सबसे अहम पड़ाव आया साल 1989 का, जब विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की अगुवाई में हजारों हिंदू कार्यकर्ताओं ने अयोध्या में विवादित स्थल के पास राम मंदिर का शिलान्यास कर दिया। इसके बाद से अयोध्या विवाद देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया।
अयोध्या विवाद में 09 नवंबर 1989 की तारीख बेहद महत्वपूर्ण है। ये वही दिन था जब विहिप ने हजारों हिंदू समर्थकों संग अयोध्या में राम जन्म भूमिक का शिलान्यास किया था। हजारों राजनैतिक हस्तियों, बड़े-बड़े साधु-संतों के बीच उस वक्त 35 साल के रहे एक दलित युवक कामेश्वर चौपाल (Kameshwar Chaupal) के हााथों राम मंदिर के नींव की पहली ईंट रखवायी गई थी। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने से सबसे ज्यादा खुश अगर कोई है तो वो कामेश्वर (अब 65 वर्ष) ही हैं, जिन्होंने नींव की पहली ईंट रखी थी। कामेश्वर कहते हैं कि वह नींव की पहली ईंट रखने वाला पल वह कभी नहीं भूल सकते। वो पल उन्हें गर्व का एहसास कराता है। इसलिए उन्हें बेसब्री से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है।
पूरे देश में चला था अभियान
राम मंदिर शिलान्यास से पहले पूरे देश में विहिप ने इसके लिए अभियान चला रखा था। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए हिंदू एकजुट होने लगे थे। शिलान्यास के लिए पूरे देश में यात्राएं आयोजित की गईं। राम मंदिर शिलान्यास के लिए ही आठ अप्रैल 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में एक विशाल धर्म संसद का भी आयोजन किया गया था।
राजनीतिक दबाव में मजबूर हुए राजीव वर्ष 1989 जब विवादित स्थल के पास राम मंदिर की नींव रखी गई, राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे। राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरे देश में जो लहर थी, उसने राजीव गांधी पर राजनीतिक दबाव बना दिया था। देश में इसी वर्ष आम चुनाव होने थे। राजीव गांधी नहीं चाहते थे कि उनकी छवि हिंदू विरोधी नेता के रूप में उभरे। शाहबानो केस को लेकर हिंदू पहले ही उनसे नाराज थे। ऐसे में हिन्दुओं को लुभाने के लिए राजीव गांधी ने राजनीतिक दबाव में 1989 में हिंदू संगठनों को विवादित स्थल के पास राम मंदिर के शिलान्यास की इजाजत दे दी थी।
बोफोर्स के जिन्न ने बढ़ाया दबाव राम मंदिर को लेकर राजीव गांधी के दबाव में आने की सबसे बड़ी वजह थी बोफोर्स घोटाला। मीडिया में बोफोर्स घोटाले को लेकर उस वक्त रोज नए खुलासे हो रहे थे। एक तरफ हिन्दुओं की नाराजगी और दूसरी तरफ बोफोर्स घोटाले के जिन्न ने राजीव गांधी को घेर लिया था। उस वक्त पंजाब और कश्मीर में भड़की हिंसा ने राजीव गांधी को अत्यधिक दबाव में ला दिया था। राजीव गांधी के लिए स्थिति तब और खराब हो गई, जब केंद्रीय रक्षा मंत्री वीपी सिंह ने कैबिनेट से इस्तीफा दिया और कांग्रेस का साथ छोड़, जनता दल में शामिल हो गए।
उल्टा पड़ गया राजीव का दांवतत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी राम मंदिर शिलान्यास की मंजूरी देकर हिंदू वोटबैंक को अपने पक्ष में करना चाहते थे, लेकिन उनका ये दांव उल्टा पड़ गया। हिंदू संगठनों और विश्व हिंदू परिषद के जरिए भाजपा राम मंदिर मुद्दे को पहले ही अपने पक्ष में कर चुकी थी। राजीव गांधी द्वारा शिलान्यास की मंजूरी दिए जाने के बाद विहिप ने मंदिर निर्माण के लिए अपना आंदोलन और तेज कर दिया। एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चरम पर था, उधर विहिप के आव्हान पर देश भर से लाखों श्रद्धालु ईंट लेकर अयोध्या पहुंचने लगे थे। इस तरह से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया।
राम मंदिर के लिए अमेरिका और ब्रिटेन से भी मिला चंदा1989 की शुरूआत में ही विहिप ने घोषणा कर दी थी कि 10 नवंबर को अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास किया जाएगा। इसके साथ ही विहिप ने पूरे देश में अभियान चलाना शुरू कर दिया। नतीजा ये हुआ कि राम मंदिर निर्माण के लिए विहिप को भारत समेत अमेरिका और ब्रिटेन से भी भरपूर चंदा मिलने लगा। विहिप ने अकेले राम मंदिर निर्माण के लिए उस दौर में 8.29 करोड़ रुपये जुटाए थे। इस रकम से विश्व हिंदू परिषद ने देश के दो लाख से ज्यादा गांवों से मंदिर निर्माण के लिए शिलाएं व ईंट जुटाने का अभियान भी छेड़ दिया था। श्रीराम लिखी ये ईंटें भगवा कपड़ों में लिपटकर अयोध्या पहुंचने लगीं। आस्था इतनी प्रबल हो चुकी थीं कि इन ईंटों को भी विधिवत पूजा करने के बाद अयोध्या के लिए भेजा जाता था। ईंटों के बदले अयोध्या से मिट्टी लाकर पूरे गांव में प्रसाद या भगवान की भेंट के तौर पर बांटी जाती थी। अनुमान है कि उस वक्त तकरीबन 10 करोड़ लोग राम मंदिर निर्माण के इस अभियान से जुड़े हुए थे।
हाईकोर्ट ने मंदिर निर्माण पर लगाया स्टेअयोध्या में राम मंदिर को लेकर तेज होती हलचल के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 14 अगस्त 1989 को इस मामले में स्टे लगाते हुए, संबंधित पक्षों को संपत्ति के स्वरूप में किसी तरह का बदलाव नहीं करने का आदेश दिया। कोर्ट ने सभी पक्षों से शांति और सौहार्द बनाए रखने की भी अपील की थी। बावजूद विहिप ने देश भर से मंदिर निर्माण के लिए ईंट जमा करने का अभियान जारी रखा। इसे देखते हुए राजीव गांधी ने केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह को हालात संभालने की जिम्मेदारी सौंपी। बूटा सिंह ने 27 सितंबर 1989 को यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ विहिप के संयुक्त सचिव अशोक सिंघल से मुलाकात की। इस मुलाकात में विहिप का अभियान रोकने पर तो सहमति नहीं बनी, लेकिन सरकार इस शर्त के साथ विहिप को रामशिला यात्रा जारी रखने पर तैयार हो गई कि हाईकोर्ट के आदेशों का पूरी तरह से पालन किया जाएगा और शांति व्यवस्था हर हाल में बरकरार रहेगी। इस तरह राम मंदिर के अभियान ने देश के सबसे प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दे का रूप ले लिया।