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BR Ambedkar Jayanti 2023: बी आर आंबेडकर

Babasaheb BR Ambedkar बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर (बी.आर. आंबेडकर) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक महानायक थे जो भारतीय संविधान के निर्माता बने। बाबा साहेब का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू नगर में हुआ था। File Photo

By Devshanker ChovdharyEdited By: Devshanker ChovdharyPublished: Sun, 09 Apr 2023 02:42 AM (IST)Updated: Mon, 10 Apr 2023 04:14 PM (IST)
BR Ambedkar Jayanti 2023: 14 अप्रैल बी आर आंबेडकर का जन्मदिन

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Babasaheb BR Ambedkar: बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर (बी.आर. आंबेडकर), भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक महानायक थे, जो भारतीय संविधान के निर्माता बने। उनका मूल नाम भीमराव है। बाबा साहेब का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू नगर में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और उनकी माता का नाम भीमाबाई सकपाल है।

डॉ बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। उन्होंने अपने जीवन के बचपन से ही जाति भेदभाव और असमानता का सामना किया। वे अपने जीवन के अंतिम दिनों तक समाज में अधिकार, समानता और न्याय के लिए संघर्ष करते रहे। भीमराव आंबेडकर ने अपनी शिक्षा के लिए काफी मेहनत की। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की और अंततः वे लंदन के अंग्रेजी विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद भारत लौटे। भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना जीवन सामाजिक सुधार कार्यों में लगा दिया।

भीमराव आंबेडकर का जीवन परिचय

बाबासाहेब का पूरा नाम भीमराव रामजी आंबेडकर हैं। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में एक दलित महार परिवार में हुआ था। उनका निधन 6 दिसंबर 1956 को राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में हुआ। भीमराव आंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई सकपाल हैं। भीमराव आंबेडकर के पिता भारतीय सेना में सूबेदार थे। भीमराव आंबेडकर ने दो शादियां की थीं। उनकी पहली पत्नी का नाम रमाबाई आंबेडकर और दूसरी पत्नी का नाम सविता आंबेडकर हैं।

भीमराव आंबेडकर की शिक्षा

भीमराव आंबेडकर ने मुंबई के एलफिन्स्टन हाई स्कूल से शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। इस स्कूल में वह एकमात्र अछूत छात्र थे, जिस कारण से उन्हें काफी परेशानी भी हुई। भीमराव आंबेडकर ने वर्ष 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इसके बाद, उन्होंने एलफिन्स्टन कॉलेज में दाखिला लिया। बाबा साहेब ने वर्ष 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र की पढ़ाई पूरी की।

बाबा साहेब को बड़ौदा (अब वडोदरा) के गायकवाड़ शासक द्वारा छात्रवृत्ति दी गई थी। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की थी। ऐसा माना जाता है कि जब गायकवाड़ शासक के अनुरोध पर बाबा साहेब ने बड़ौदा लोक सेवा में प्रवेश लिया, तो उन्हें उच्च जाति के सहयोगियों द्वारा बुरा व्यवहार किया जाता था।

इसके बाद, बाबा साहेब ने कानूनी अभ्यास और शिक्षण की ओर रुख किया। इसके साथ ही, उन्होंने दलितों के बीच अपना नेतृत्व कायम किया। इसी दौरान, भीमराव आंबेडकर ने कई सारे पत्रिकाओं को शुरू किया। वहीं, उन्होंने सरकार की विधान परिषदों में दलितों के लिए विशेष प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए लड़ाई लड़ी और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे।

छुआछूत का विरोध

भीमराव आंबेडकर ने दलितों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने दलितों के खिलाफ हुए सामाजिक भेदभाव के विरोध में अभियान चलाया। उन्होंने अपने दृष्टिकोण से दलित बौद्ध आंदोलन को भी प्रेरित किया और बौद्ध समाज की स्थापना की। बाबा साहेब को स्कूल के दिनों में छुआछूत की घटनाओं का खूब सामना करना पड़ा था। उन्हें उस मटके से पानी नहीं पीने दिया जाता था, जिससे दूसरे वर्ग के बच्चे पानी पीते थे।

वहीं, ऐसा भी कहा जाता है कि स्कूल के दिनों में बाबा साहेब को बैठने के लिए खुद ही चटाई लाना पड़ता था। उनके साथ छुआछूत की घटना सिर्फ बचपन में ही नहीं हुई, बल्कि जब वे मुंबई में सिडेनहैम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर थे और वहां पढ़ा रहे थे, तब भी उनके साथ अस्पृश्यता जैसा व्यवहार होता था। बाबा साहेब के सहयोगी कभी भी उनके साथ पानी तक नहीं पीते थे।

बॉम्बे उच्च न्यायालय में कानून का अभ्यास करते हुए, उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उन्हें ऊपर उठाने के लिए कई तरह से कोशिश की। उनका पहला संगठित प्रयास केंद्रीय संस्थान बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना था। इसक उद्देश्य शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार को बढ़ावा देना था और अवसादग्रस्त वर्गों के रूप में सन्दर्भित बहिष्कार के कल्याण करना था।

बाबासाहेब ने 1926 में एक वकील के रूप में अपने करियर के दौरान तीन गैर-ब्राह्मण नेताओं का बचाव किया। इन नेताओं ने ब्राह्मण समुदाय पर देश को बर्बाद करने का आरोप लगाया था। जाति वर्गीकरण के खिलाफ यह जीत बाबासाहेब के लिए काफी बड़ी थी और छुआछूत के खिलाफ आंदोलन का जन्म यहीं से हुआ था। इसके अलावा, बॉम्बे उच्च न्यायालय में कानून का अभ्यास करते हुए, उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने और अछूतों के उत्थान का प्रयास किया।

भीमराव आंबेडकर और पुणे समझौता

वर्ष 1926 के बाद भीमराव आंबेडकर अछूत राजनीतिक की हस्ती बन चुके थे। बाबासाहेब ने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की। वह ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होंने अछूत समुदाय के लिए स्वतंत्र राजनीतिक पहचान की मांग की, जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों की दखलअंदाजी न हो। लंदन में 8 अगस्त, 1930 को शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान उन्होंने ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा था।

ब्रिटिश सरकार के विधानमंडल में चुनावी सीटों में दलित आरक्षण को लेकर यरवदा सेंट्रल जेल पुणे में महात्मा गांधी और भीमराव आंबेडकर के बीच 24 सितंबर, 1932 को एक समझौता हुआ था, जिसे पूना पैक्ट या पुणे समझौता कहा गया।

भीमराव आंबेडकर का राजनीतिक सफर

बाबासाहेब ने 1936 में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की। पार्टी ने 1937 में केंद्रीय विधानसभा के लिए 13 आरक्षित और 4 सामान्य सीटों के लिए चुनाव लड़ा, जिसमें 14 सीटें मिलीं। भीमराव आंबेडकर ने 1937 में बांबे विधानसभा में एक विधेयक पेश किया, जिसका उद्देश्य सरकार और किसानों के बीच सीधा संबंध बनाना था। उन्होंने वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री के रूप में काम किया।

बाबासाहेब 1952 में पहले आम चुनाव में बॉम्बे नॉर्थ से चुनाव लड़े, वह लेकिन हार गए। इसके बाद, राज्यसभा के सदस्य नियुक्त किए गए। भंडारा सीट से 1954 के उपचुनाव में, वह लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरे और तीसरे स्थान पर रहे।

बाबासाहेब की धर्म परिवर्तन की घोषणा

भीमराव आंबेडकर ने 13 अक्टूबर 1935 को नासिक के निकट येवला में एक सम्मेलन में धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की। उन्होंने कहा था, ''हालांकि मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन मैं एक हिन्दू के रूप में हरगिज नहीं मरूंगा।'' इसके साथ ही उन्होंने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने धर्म परिवर्तन की घोषणा करने के बाद 21 साल तक विश्व के सभी प्रमुख धर्मों का गहन अध्ययन किया।

भीमराव आंबेडकर ने अपनाया बौद्ध धर्म

भीमराव आंबेडकर वर्ष 1950 में वह एक बौद्धिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका गए, जहां वह बौद्ध धर्म से अत्यधिक प्रभावित हुए। स्वदेश वापसी पर उन्होंने बौद्ध धर्म के बारे में पुस्तक लिखी। उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। वर्ष 1955 में उन्होंने भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की। 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने एक आम सभा आयोजित की, जिसमें उनके साथ-साथ अन्य पांच लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म अपनाया। कुछ समय बाद छह दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म की रीति-रिवाज के अनुसार किया गया।

बाबासाहेब और संविधान निर्माण

भीमराव आंबेडकर ने भारत के संविधान का निर्माण किया। उन्होंने संविधान समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया था। संविधान समिति का काम 1946 में शुरू हुआ था और संविधान का निर्माण 26 नवंबर, 1949 को पूरा हुआ था। संविधान भारत की संवैधानिक शासन व्यवस्था है और 26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र की शुरुआत हुई थी।

भीमराव ने किया था अनुच्छेद 370 का विरोध

बता दें कि आंबेडकर ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध किया था, जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था। वहीं, इस अनुच्छेद को उनकी इच्छाओं के खिलाफ संविधान में शामिल किया गया था।

समान नागरिक संहिता के पक्षधर बाबासाहेब

भीमराव आंबेडकर समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और जम्मू-कश्मीर के मामले में अनुच्छेद 370 का विरोध करते थे। उनका कहना था कि भारत आधुनिक, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होता, तो उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती। संविधान सभा में बहस के दौरान, उन्होंने समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश की थी।

बाबासाहेब का निधन

भीमराव आंबेडकर वर्ष 1948 से मधुमेह बीमारी से पीड़ित थे। वर्ष 1954 में जून से अक्टूबर तक काफी बीमार रहे और उन्हें देखने में भी परेशानी होने लगी थी। 6 दिसम्बर 1956 को बाबासाहेब का निधन दिल्ली स्थित उनके घर में हुआ था। निधन के समय उनकी आयु उनके घर मे हो गया। तब उनकी आयु 64 वर्ष और सात महीने की थी।


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