अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान तो जानें कैसे मिलेगा आराम
आज की आपाधापी भरी जिंदगी में शरीर के विभिन्न भागों जैसे -कमर में दर्द कंधे व गर्दन में दर्द आदि से संबंधित समस्याएं बढ़ रही हैं।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 13 Jun 2019 08:49 AM (IST)
[निशि भाट]। मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद अक्सर कंधे और शरीर में अकड़न और कमर के निचले हिस्से में तेज दर्द का अनुभव होता है। इस दर्द को हम लंबे समय तक नजरअंदाज करते रहते हैं और फिर अचानक यह हमें रोज परेशान करने लगता है। झुककर कोई चीज उठानी हो, लंबे समय तक बैठना या ड्राइव करना हो, हर छोटे बड़े काम में दर्द जी का जंजाल बन जाता है।
अगर आपने ध्यान दिया हो तो पिछले कुछ सालों में इसी दर्द के इर्दगिर्द घूमने वाली स्पाइनल कॉर्ड की वर्टिब्रा एल थ्री या एल फोर, सी फोर और सी फाइव में दर्द आदि की परेशानियां भी सामने आने लगी हैं। हर पांचवें व्यक्ति को कंधे, पीठ या कमर के निचले हिस्से में खिंचाव और दर्द रहता है। आखिर यह परेशानी है क्या? इसका समाधान फिजियोथेरेपी में है या फिर एलोपैथी में या फिर ऐसा तो नहीं कि कुछ आसान व्यायाम और उठने-बैठने का तरीका सही करके इस दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है।
दर्द के हैं कुछ खास कारण
मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द के केवल दो से तीन प्रतिशत मामलों में सर्जरी की जरूरत होती है। लगभग 75 प्रतिशत दर्द को तीन से चार महीने में ठीक किया जा सकता है और 15 प्रतिशत मामलों में बिना दवा के केवल व्यायाम से पीड़ित व्यक्ति को राहत मिल सकती है, लेकिन इसके लिए सबसे अधिक जरूरी है कि दर्द पर ध्यान दिया जाए और उसके बढ़ने से पहले ही कारणों को दूर किया जाए, क्योंकि दर्द की वजह का एक कारण मांसपेशियों का कमजोर होना भी है। इसके अलावा एनकायलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के कारण भी यह समस्या संभव है। हालांकि सभी तरह के दर्द के लक्षण लगभग एक जैसे ही होते हैं।
सियाटिका और स्पाइनल स्टेनोसिस में उम्र बढ़ने के साथ रीढ़ की हड्डी से होकर गुजरने वाली नसों पर दबाव बढ़ने लगता है, जिसका असर तुरंत दर्द के रूप में सामने आता है। रीढ़ की हड्डी की जिस प्रमुख स्थिति पर नसों का दबाव बढ़ता है, उसे चिकित्सकीय भाषा में एल फाइव या एल थ्री का नाम दिया जाता है। नसों पर दबाव बढ़ने पर रक्त का प्रवाह रुकता है और दर्द कमर से होते हुए पैरों तक पहुंच जाता है।
बैठने का गलत ढंग
गलत मुद्रा(रांग पोस्चर्स) में लंबे समय तक बैठने की वजह से टेल बोन पेन यानी रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में दर्द होने के मामले भी बढ़ रहे हैं। निचले हिस्से का यह दर्द कूल्हों के ठीक बीच में हमेशा बना रहता है, जिसे लोग नजरअंदाज करते हैं। बैठने का गलत तरीका एक समय में शरीर के कई अंगों की साधारण गतिविधि को प्रभावित करता है। अगर यही गलत तरीका आदत में शामिल हो जाए तो परेशानी होना स्वाभाविक है।कुर्सियों की बनावट पर दें ध्यान
मल्टीनेशनल और कॉरपोरेट कंपनियों में इस संदर्भ में ‘एरगॉनामिक्स’ शब्द प्रचलित हो रहा है। इसका अर्थ ऐसी बॉयोटेक्नोलॉजी से है, जिसमें काम करने के वातावरण के अनुकूल बैठने की व्यवस्था व अनुकूल परिस्थिति में काम करते हुए उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को देखा जाता है। अकेले दिल्ली-एनसीआर में तीन दर्जन बड़ी निजी कंपनियां कामकाजी युवाओं के स्वास्थ्य के अनुकूल कुर्सियां बना रही हैं, जिसमें उनके कद को ध्यान में रखा जाता है। इसका असर उनकी कार्यक्षमता पर भी सकारात्मक पड़ा है।कैसे रखें गर्दन का ध्यान
- कंप्यूटर पर काम करने का सीधा असर आंखों के बाद गर्दन पर पड़ता है। आंखों की सुरक्षा के लिए जिस तरह फोटोक्रॉमिक स्क्रीन को प्रमुखता दी जाती है, उसी तरह गर्दन को सुरक्षित रखने के लिए कंप्यूटर के की-बोर्ड का सही दिशा में होना जरूरी है।
- तीन से चार घंटे तक यदि की-बोर्ड पर काम कर रहे हैं, तो कंप्यूटर से की-बोर्ड की दूरी एक फीट होनी चाहिए। दोनों हाथों की कोहनी लटकी हुई स्थिति में नहीं होनी चाहिए। इससे गर्दन की मांसपेशियों में तुरंत खिंचाव होता है।
- कंप्यूटर के लिए बनाई गए स्पेशल मेज को यदि काम करने वाले व्यक्ति की लंबाई के अनुसार नहीं बनाया गया है तो यह भी गर्दन में दर्द का एक प्रमुख कारण हो सकता है। की-बोर्ड रखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्लाइड मेज की जगह विशेषज्ञ मेज पर ही निश्चित दूरी पर की-बोर्ड को रखना अधिक बेहतर बताते हैं।
- गर्दन के दर्द से बचने के लिए काम करते हुए टाई के इस्तेमाल को पूरी तरह गलत बताया गया है, जो सीधे रूप से स्पॉन्डिलाइटिस व गर्दन के दर्द का प्रमुख कारण मानी गई है। टाई की जगह लूज कॉलर के शर्ट अधिक आरामदेह माने गए हैं।
- कम से कम मोटे गद्दे का प्रयोग करें।
- तकिया कंधे को सपोर्ट देते हुए नहीं, बल्कि गर्दन को सपोर्ट देते हुए लगाएं।
- लेटते हुए कमर व घुटने के नीचे तकिया लगाकर मांसपेशियों के स्ट्रेस को कम किया जा सकता है।
- सोने से पहले कम से कम पांच बार गहरी सांस अंदर लें और बाहर छोड़ें। इससे जल्दी नींद आएगी।