खूनी दरवाजे पर मिट गई बहादुर शाह जफर की वंश बेल
नई दिल्ली। खूनी दरवाजा जिसे लाल दरवाजा भी कहा जाता है। दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर दिल्ली गेट के निकट स्थित है। यह दिल्ली के बचे हुए 13 ऐतिहासिक दरवाजों में से एक है। यही वह दरवाजा है जहां अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के दो बेटों व एक पोते को 1
By Edited By: Updated: Sat, 25 May 2013 09:59 AM (IST)
नई दिल्ली। खूनी दरवाजा जिसे लाल दरवाजा भी कहा जाता है। दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर दिल्ली गेट के निकट स्थित है। यह दिल्ली के बचे हुए 13 ऐतिहासिक दरवाजों में से एक है। यही वह दरवाजा है जहां अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के दो बेटों व एक पोते को 1857 में अंग्रेजों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसी हत्याकांड से इस दरवाजा के नाम खूनी दरवाजा रख दिया गया। जिस रोड पर यह दरवाजा स्थित है, देश के स्वाधीन होने के बाद इस रोड का नाम बहादुर शाह जफर मार्ग रखा गया।
खूनी दरवाजा पुरानी दिल्ली के लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में फिरोज शाह कोटला मैदान के सामने स्थित है। इसके पश्चिम में मौलाना आजाद चिकित्सीय महाविद्यालय का द्वार है। यह असल में दरवाजा न होकर तोरण है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे सुरक्षित स्मारक घोषित किया है। इस दरवाजे का का नाम खूनी दरवाजा तब पड़ा जब यहां मुगल सल्तनत के तीन शहजादों को हत्या की लटका दिया गया। इनमें शामिल थे अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बेटे मिर्जा मुगल और मिर्जा सुल्तान और बहादुर शाह के पोते अबू बकर। ब्रिटिश जनरल विलियम हॉडसन ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोली मार कर हत्या कर उनकी हत्या कर दी। मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के आत्मसमर्पण के अगले ही दिन विलियम हॉडसन ने तीनों शहजादों को भी समर्पण करने पर मजबूर कर दिया। 22 सितम्बर को जब वह इन तीनों को हुमायूं के मकबरे से लाल किले ले जा रहा था। इन शहजादों को विश्वास में लिया गया था कि उन्हें लालकिला ले जाया जाएगा। जहां उन पर मुकदमा चलेगा। उनका विद्रोह में योगदान नहीं है तो उन्हें मुक्त कर दिया जाएगा। उन दिनों अंग्रेजों की अदालत लालकिला में थी। वहीं मामलों की सुनवाई होती थी। अंग्रेज सैनिक तीनों शहजादों को हुमायूं के मकबरे से लेकर लालकिला के लिए चले थे तो उनके पीछे बड़ी संख्या में जनता हो ली थी। शहजादों की गिरफ्तारी पर जनता में भारी रोष था। ब्रिटिश जनरल विलियम हाडसन भी अंग्रेज सैनिकों के साथ था। खूनी दरवाजे पर हाडसन ने तीनों शहजादों को रोका, उन्हें नग्न किया और कतार में खड़ा कर गोलियां दाग कर मार डाला। इसके बाद शवों को इसी हालत में ले जाकर कोतवाली के सामने लटका दिया गया। इतिहासकार जुबैर हुसैन कहते हैं कि शहजादों की हत्या और उन्हें कोतवाली पर लटकाए जाने का मकसद अंग्रेजों द्वारा जनता में भय व्याप्त करना था ताकि विद्रोह में शामिल होने से अन्य लोग डरें। मगर इससे उल्टा हुआ। निर्दोष शहजादों को इस तरह से मार देने से जनता में अंग्रेजों के प्रति भयंकर आक्रोश पैदा हुआ। लोग गुस्से से भर गए और बागी सैनिकों का हर तरह से साथ देने लग गए थे।
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