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बांग्लादेश हिंसा से मेघालय के गांव में क्यों बढ़ी चिंता? रात भर निगरानी कर रहे ग्रामीण, BSF की निगरानी में खेल रहे बच्चे

Bangladesh Violence बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच सीमा से सटे भारतीय इलाकों में भी निगरानी बढ़ा दी गई है। बॉर्डर पर स्थित मेघालय के एक गांव में इस समय चिंता काफी बढ़ गई है क्योंकि यहां पर केवल बांस के बाड़ से भारत-बांग्लादेश की सीमा अलग होती है। ऐसे में ग्रामीण बाड़ मजबूत करने में जुट गए हैं और रातभर जागकर निगरानी कर रहे हैं।

By Agency Edited By: Sachin Pandey Updated: Sun, 11 Aug 2024 05:05 PM (IST)
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गांव के अधिकतर घर अंतरराष्ट्रीय सीमा के बेहद करीब हैं। (File Image)
पीटीआई, शिलांग। बांग्लादेश में शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने और उनके देश छोड़ने के बाद फैली अशांति से मेघालय में अंतरराष्ट्रीय सीमा से कुछ मीटर दूरी पर बसे एक गांव के लोग सीमा पार से घुसैपठ की आशंका को लेकर काफी चिंचित हैं।

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार ईस्ट खासी हिल्स जिले के लिंगखॉन्ग गांव के लोग बांग्लादेश को उनके गांव से अलग करने वाली बांस की बाड़ को मजबूत करने में लगे हैं और रात भर जागकर निगरानी तक कर रहे हैं।

ग्रामीणों ने सीमा पर बनाया बांस का बाड़

इस गांव में 90 से अधिक लोग रहते हैं, जिन्होंने सीमा पार से होने वाले मामूली अपराधों को रोकने के लिए कोविड महामारी के दौरान सीमा पर बांस की एक पतली बाड़ लगा दी थी। लिंगखॉन्ग, मेघालय के उन क्षेत्रों में से एक है, जहां भूमि सीमांकन संबंधी मुद्दों और अंतरराष्ट्रीय सीमा स्तंभ या जीरो लाइन के 150 गज के भीतर बस्तियों के होने के कारण सीमा बाड़ का निर्माण नहीं किया जा सका।

गांव पर नजर डालें तो पता चलेगा कि यहां अधिकतर घर अंतरराष्ट्रीय सीमा के बेहद करीब हैं और यहां का एकमात्र फुटबॉल मैदान जीरो लाइन पर है, जहां बच्चे हर समय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की निगरानी में खेलते हैं।

बीएसएफ ने बढ़ाई चौकसी

इस गांव की निवासी 42 वर्षीय डेरिया खोंग्सदिर ने चिंता जाहिर करते हुए पीटीआई से कहा, 'पांच अगस्त को जब बांग्लादेश में हिंसा की घटनाएं बढ़ीं तो उस समय हम काफी चिंतित थे और रातभर सो नहीं पाए। हमें डर था कि बांग्लादेश में हमारे पड़ोसी हिंसक हो सकते हैं। राहत की बात रही कि बीएसएफ ने अपनी चौकसी बढ़ा दी तथा गांव में स्थित अपनी चौकी में और अधिक जवानों को तैनात कर दिया।'

उन्होंने कहा, 'साथ ही गांव के रक्षा दल और हमारी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूरी रात जागने वाले लोगों को भी तैनात कर दिया गया।' डेरिया ने कहा, 'हमारी सुरक्षा के लिए एकमात्र यह बांस की बाड़ है। इससे गांव के स्तर पर छोटे-मोटे अपराधों को रोकने में मदद मिली है, लेकिन गंभीर स्थिति में यह कारगर होगी या नहीं, इसका कुछ नहीं कह सकते।'

बाड़ को मजबूत करने में जुटे ग्रामीण

ग्रामीणों ने अब बाड़ को मजबूत करने के लिए नए बांस लगाने शुरू कर दिए हैं। लिंगखॉन्ग जीरो लाइन से 150 गज के दायरे में आता है और नियमों के अनुसार 150 गज के बाद ही कांटेदार तार की बाड़ लगाई जा सकती है। इसलिए, जब 2021 में बाड़ के लिए नींव रखी गई तो गांव, बाड़ सुरक्षा दायरे से बाहर हो गया।

ग्रामीणों के विरोध के कारण काम रोकना पड़ा। उन्होंने जीरो लाइन पर बांस की बाड़ भी लगा दी और अधिकारियों से उस लाइन के साथ कांटेदार तार की बाड़ लगाने का आग्रह किया। मेघालय में 443 किलोमीटर लंबी भारत-बांग्लादेश सीमा के लगभग 80 प्रतिशत हिस्से पर बाड़ लगा दी गई है। उन क्षेत्रों में बाड़ नहीं लगाई जा सकी है, जहां बॉर्डर गार्ड्स बांग्लादेश (बीजीबी) इसका विरोध करता आ रहा है या जहां निर्माण के लिए जमीन ही नहीं है।

13 क्षेत्रों में बांग्लादेश से मंजूरी लंबित

बीएसएफ के मेघालय फ्रंटियर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'समझौते के अनुसार, बाड़ को जीरो लाइन से कम से कम 150 गज की दूरी पर बनाया जाना चाहिए, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। बॉर्डर गार्ड्स बांग्लादेश कभी-कभी आबादी के आधार पर जीरो लाइन पर बाड़ लगाने देता है, जैसा कि लिंगखॉन्ग में देखने को मिलता है।'

बांग्लादेश सरकार ने मेघालय में सीमा पर कम से कम सात स्थानों पर इस व्यवस्था पर समझौता किया है और इसे लिंगखॉन्ग तक विस्तारित करने के लिए चर्चा जारी है। हालांकि, कम से कम 13 ऐसे क्षेत्रों के लिए मंजूरी अभी भी लंबित है और मंजूरी हासिल करना एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है।

नौ साल में मिली सहमति

अधिकारी ने विस्तृत जानकारी दिए बिना कहा, 'हमने 2011 में भी इसी तरह का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन कुछ क्षेत्रों के लिए 2020 में जाकर सहमति बनी।' लिंगखॉन्ग निवासी डबलिंग खोंग्सदिर ने बाड़ मुद्दे पर भारत सरकार के रवैये पर असंतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा, 'यह सही नहीं है कि बाड़ लगने के बाद हमारा गांव भारतीय क्षेत्र से बाहर चला जाए। हम सुरक्षित महसूस नहीं करते। हम सुरक्षा दायरे में रहना चाहते हैं। हम यहां अनादि काल से रह रहे हैं। हमें उम्मीद है कि बांग्लादेश की नई सरकार और भारत सरकार जल्द ही इस समस्या का समाधान करेंगी।'