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आप भी जरा घूमकर आइए ‘कुर्ग’, ये है खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा ‘कर्नाटक का कश्मीर’

रहस्यमयी पहाड़ियां कॉफी के विशाल बागान तेज रफ्तार में बहती संगीतमय नदियां और बुलंद चोटियां...। इन सब आभूषणों के साथ कर्नाटक में बसा कुर्ग इन दिनों बेहद हसीन नजर आता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 28 Jun 2019 08:57 AM (IST)
आप भी जरा घूमकर आइए ‘कुर्ग’, ये है खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा ‘कर्नाटक का कश्मीर’
पूर्वी कमालिया। हरे-भरे पेड़-पौधों की चादर में लिपटी कुर्ग की पहाड़ियों को चूमते गरजते काले बादलों को देखने इन दिनों सैलानियों की भीड़ लगी हुई है। प्रकृति यहां एक ‘ओपन थियेटर’ के रूप में नजर आती है, जिसे देखने का रोमांच आप यहां आकर ही महसूस कर सकते हैं। यूं तो कुर्ग हर मौसम में आकर्षक लगता है, लेकिन बारिश को खास पसंद करने वालों के लिए यह अभी धरती पर एक जन्नत बना हुआ है। सर्दियों में यह जिला प्रकृति की गोद में गहरी निद्रा में डूबने के लिए आतुर सूर्यदेव को अलविदा कहने का मंच बन जाता है। इसे कभी ‘भारत का स्कॉटलैंड’ तो कभी ‘कर्नाटक का कश्मीर’ कहा जाता है। कुर्ग, कर्नाटक के दक्षिण-पश्चिम भाग में पश्चिमी घाट के पास एक पहाड़ पर स्थित जिला है, जो समुद्र तल से लगभग 900 मीटर से 1715 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह दक्षिण भारत के लोगों का प्रसिद्ध वीकएंड गेटवे भी है। दक्षिण कन्नड़ के लोग यहां विशेष रूप से वीकएंड मनाने आते हैं। इस छोटे से जिले में 3 ताल्लुक आते हैं- मादीकेरी, सोमवारापेटे और वीराजापेटे। मादीकेरी कुर्ग का मुख्यालय है।

एब्बी जलप्रपात

कावेरी की जलधारा के भीषण बहाव से पैदा होती गर्जना आपको मीलों दूर से अपनी ओर आकर्षित करेगी, मानो यह जलधारा कह रही हो कि कुछ क्षण के लिए दुनिया का सारा कोलाहल भूलकर इस जलध्वनि के संगीत में खो जाएं। वन विभाग ने यात्रियों की सुविधा के लिए यहां एक ‘व्यू पॉइंट’ का निर्माण भी किया

है, जहां से आप घंटों तक एब्बी जलप्रपात की खूबसूरती में खोए रह सकते हैं।

मंडलपट्टी की जीप सफारी

कुर्ग से तकरीबन 20-25 किमी. दूर है मंगलपट्टी। पुष्पगिरि के घने जंगल से गुजरकर पहाड़ों की समतल चोटियों पर स्थित मंडलपट्टी की ढलान सहसा लुभा लेती है। बारिश के मौसम में ताजा नहाये घास एवं हवा के झोंकों के साथ झूमते जंगली फूलों से इस पट्टी की सुंदरता दोगुनी हो जाती है। बादलों में लिपटी इस घाटी में जीप की सफारी करना लगभग हर यात्री की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर रहता है। एब्बी जलप्रपात जाते हुए रास्ते में ही स्थित स्थानीय जीप यूनियन से आप जीप बुक कर सूर्यास्त तक इस सफारी का मजा ले सकते हैं।

बायलाकुप्पे-दक्षिण भारत का तिब्बत

तिब्बती शैली में बने रंग-बिरंगे घर, स्वच्छ एवं सुंदर गलियां और आलीशान मंदिर से सुनाई देते बौद्ध संतों के मंत्रोच्चार..., कर्नाटक के हृदय की तरह कुर्ग जिले में बसा यह ‘मिनीतिब्बत’भूटान और नेपाल की गलियों-सा एहसास कराता है। उत्तर भारत में धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) और दक्षिण में बायलाकुप्पे तिब्बतियों की मुख्य बस्तियां हैं। धर्मशाला जहां उनकी संसदीय राजधानी है तो वहीं बायलाकुप्पे उनका शिक्षा केंद्र है। लद्दाख, धर्मशाला, शिमला व सिक्किम के बौद्ध मतानुयायी बायलाकुप्पे में अपनी धार्मिक शिक्षा हेतु आते हैं। कर्नाटक के ज्यादातर शहरों में उत्तर व पूर्वी-भारत से आए लोग यहां ज्यादा नजर आते हैं। बायलाकुप्पे का शांतिमय और आध्यात्मिक वातावरण आपकी यात्रा की शुरुआत के लिए एक बेहतरीन अनुभव होगा। यह मादीकेरी से 40 किमी. की दूरी पर है।

तल कावेरी

कुर्ग से तल कावेरी करीब 45 किमी. की दूरी पर है। माना जाता है कि ब्रह्मगिरि पर्वतों की घाटी में ध्यानमग्न ऋषि के कमंडल पर कौए के रूप में आ बैठे श्रीगणेश को देख ऋषि ने उसे वहां से हटाने के लिए हाथ उठाया, पर उसी क्षण कौआ गायब हो गया और कमंडल से देवी कावेरी की धारा बहने लगी। इस तरह पवित्र सप्त सिंधु नदियों में से एक मानी जाने वाली देवी कावेरी का जन्म हुआ। कावेरी नदी के जन्म स्थान पर एक पवित्र कुंड बना हुआ है। इस कुंड से आगे कुछ किमी. तक कावेरी भूगर्भ में बहती है। कुंड के किनारे अगस्त्य मुनि, शिवजी एवं गणपति के मंदिर में दर्शन कर लोग इस पवित्र जल में स्नान करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर माह के पहले दिन लोग देवी कावेरी का जन्मोत्सव मनाने तल कावेरी आते हैं। बारिश के मौसम में कावेरी नदी को यहां एक फव्वारे की तरह निकलते देखना एक अविस्मरणीय अनुभव है।

कोडावा जनजाति की है अनोखी पहचान

कुर्ग के ज्यादातर स्थानीय निवासी कोडावा नामक आदिवासी जनजाति के हैं। इनका मूल स्थान कोडागु है। अंग्रेजों के आने के बाद कोडागु ‘कुर्ग’ नाम से मशहूर हुआ। ‘कुर्ग टक्क’ अथवा ‘कोडावा’ भाषा बोलने वाले कुर्गियों का लिबास भी सबसे अलग है। कोडावा पुरुष ‘कुप्या’ नामक लंबा कोट पहनते हैं और महिलाएं सिल्क साड़ी अलग स्टाइल से पहनती हैं। इतिहासकारों की मानें तो कोडावा जाति का संबंध सिंधु घाटी सभ्यता के मोहनजोदड़ो शहर से है।

स्कंद पुराण में कोडावा को चंद्रवंशी राजाओं का वंशज बताया गया है, जो देवी पार्वती के पूजक और कावेरी नदी के जन्मस्थल के रक्षक थे। कोडागु के स्त्री-पुरुष मार्शल आर्ट में इतने निपुण होते हैं कि टीपू सुल्तान भी कभी कोडागु को जीत न सका। इस जाति के चिह्न की रचना भी बंदूक और ‘पेचे कट्टी’ तथा ‘ओद्डे कट्टी’ नामक दो तलवारों से की गई है। अंग्रेजों ने इस जाति के जवानों को आर्मी में भर्ती किया था। उन्हें विश्व युद्ध में भी भेजा गया था। आजादी की लड़ाई में भी कोडावा अंग्रेजों पर भारी पड़े थे। स्वतंत्रता सेनानी पंड्यान्दा बेल्लिअप्पा को ‘कुर्ग के गांधी’ के रूप में जाना जाता है। केएस थिम्माया और फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा भी कुर्ग के मशहूर बेटे रहे हैं। कारगिल में तैनात भारतीय सेना के अरुण गोविंद बताते हैं, ‘दक्षिण की सबसे पुरानी ‘37 कुर्ग बटालियन’ आज भी कोडावा परंपरा का पालन कर अपनी संस्कृति को सीमा पर भी संजोए हुए है। क्रिकेटर रॉबिन उथप्पा, पूर्व टेनिस खिलाड़ी रोहन बोप्पना और कई हॉकी खिलाड़ी कोडावा जाति से ही हैं।’

आसपास बिखरे नजारे

कुक्के सुब्रमण्यम

कुर्ग से 74 किमी. दूर स्थित यह मंदिर ‘कालसर्प दोष’ पूजा के लिए मशहूर है। कई हस्तियां इस पौराणिक मंदिर में पूजा व दर्शन के लिए आ चुकी हैं। यहीं कुमार पर्वत पहाड़ी तक का ट्रेक भी साहसी सैलानियों में लोकप्रिय है। इसे कर्नाटक का सबसे चुनौतीपूर्ण ट्रेक माना जाता है।

कन्नूर

यह स्थान कुर्ग से तकरीबन 112 किमी. की दूरी पर है। प्रकृति प्रेमी होने के साथ-साथ यदि आप नृत्यप्रेमी भी हैं तो कन्नूर आपके लिए किसी जन्नत से कम नहीं है। नारियल के पेड़ों और चावल के खेतों के बीच एक कलाद्वीप के समान कन्नूर को यात्रा-सूची में शामिल करना न भूलें।

कासरगोड

कुर्ग से 110 किमी. दूर है यह स्थान। ‘बॉम्बे’ फिल्म में समुद्र की उफनती लहरों के बीच बने किले पर जब नायक बेहद लोकप्रिय गीत तू ही रे, तू ही रे... गाता है तो दर्शकों का ध्यान आज भी नायक पर कम और किले के मनमोहक दृश्य पर ज्यादा जाता है। दक्षिण भारत में कासरगोड भले ही काफी मशहूर हो, किंतु भारत के ज्यादातर लोग कासरगोड के सुंदर नजारे से अनजान हैं। आप कुर्ग आएं तो कासरगाकी योजना भी अपनी सूची में शामिल कर सकते हैं। बेकल किला और कासरगोड के सुंदर बीच बड़े मनमोहक हैं।

बागानों की सैर की ऑनलाइन बुकिंग

केवल कॉफी ही नहीं, कुर्ग में अनन्नास, लीची, इलायची, चीकू और अन्य फलों और मसालों के बागानों की सैर कर सकते हैं। इन बागानों की सैर की जानकारी तथा बुकिंग ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं।

कुर्ग की कॉफी का नहीं भूलेंगे स्वाद!

आसमान छूते पेड़ों की छांव में ‘बोन्साई पौधों’ के समान प्रतीत होते हैं ये कॉफी के पौधे। इन पर लगे चटकीले लाल रंग के मोतीरूपी फल दुनियाभर के प्रकृतिप्रेमियों को आकर्षित करते हैं। यहां पेड़ों से लिपटकर रेंगती हुई काली मिर्च की बेलें और कोहरे में छिपे कॉफी के पौधे किसी रहस्यमय जंगल-सा आभास देते हैं। आपको कुछ समय इस रहस्यमयी स्थान पर बिताने की इच्छा पूरी हो सकती है।

दरअसल, यहां इन बागानों में ‘होम स्टे’ या ‘कॉटेज’ बने हुए हैं, जहां आप ठहरकर ऐसे कई नजारों का आनंद ले सकते हैं। आपको बता दें कि सालों तक उत्कृष्ट गुणवत्ता की कॉफी देने वाले ये पौधे कटने के बाद भी अपना आकर्षण नहीं खोते, बल्कि कुर्ग के बाजारों में कॉफी की लकड़ी से बने अनोखे फर्नीचर भी आप देख सकते हैं। फरवरी महीने में कॉफी के फल पक कर तैयार हो जाते हैं। शहरों की दुकानों में मिलने वाली कॉफी का स्वाद एकदम असली है या नहीं, अगर आपने कभी इस बारे में सोचा है तो कुर्ग की कॉफी चखकर देखें। यहां आपको शुद्धता का अलग स्वाद मिलेगा।

लुभा लेगा मोरों का नृत्य

कुर्ग की घाटियां भारत के कई विलुप्त होते प्राणियों का घर भी हैं, जिन्हें आज राष्ट्रीय उद्यानों का दर्जा हासिल है। पुष्पगिरि, ब्रह्मगिरि, मधुमलाई, बंदीपुर और नागरहोले राष्ट्रीय उद्यान कुर्ग से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। बंदीपुर और नागरहोले उद्यान में सरकारी लॉज बुक कर जंगल के बीच रात्रिवास किया जा सकता है। यहां जंगल सफारी सुबह छह बजे से शुरू होती है। इसकी बुकिंग उद्यान की वेबसाइट पर उपलब्ध है। जंगली हाथी, बाघ, अनगिनत प्रजातियों के हिरन एवं भालू इन जंगलों में देखे जा सकते हैं। बारिश में जहां इन जंगलों में मिट्टी की सोंधी खुशबू आपको प्रकृति की गोद में होने का एहसास कराती है, वहीं सर्दियों में नर्म धूप में जलाशयों के किनारे बैठे जानवरों के नजारे भी देख सकते हैं। बारिश की शुरुआत में यहां मोर अपने खूबसूरत पंखों को फैलाकर नृत्य करते हैं। ये सभी दृश्य यात्रा को यादगार बनाते ह

कुर्गी स्वाद का जवाब नहीं!

कुर्ग के ताजा पकवान खाने के लिए मादिकेरी के इकलौते ‘कुर्गी’ रेस्टोरेंट में लंबी कतारें लगती हैं। विशिष्ट ग्रेवी से बना ‘कोडावा कोली करी’ यहां का खास पकवान है। स्थानीय मुर्गे को पिसे हुए मसालों की चटनी में पकाया जाता है। इस करी में एक अलग ही दक्षिण एवं पहाड़ी स्वाद का आनंद आता है। यहां जंगली बांस से बनी ‘बैम्बू शूट करी’ भी काफी मशहूर है। यहां शाकाहारी यात्रियों के लिए यों तो कई रेस्टोरेंट हैं, किंतु सबसे बढ़िया खाना ‘उडुपी गार्डन’ में मिलता है। कुर्ग में फलों के रस से वाइन बनाने की काफी पुरानी परंपरा है। सर्दियों में आप यहां घरों में भी वाइन बनते देख सकते हैं। यहां ऐसे ही कुछ घर छोटी-छोटी वाइन फैक्ट्री में भी परिवर्तित हो गए हैं। यहां अदरक, आंवला, मिर्ची, सेब, अनार, लीची, अनन्नास, खजूर और चॉकलेट की वाइन आसानी से उपलब्ध हो जाती है। स्थानीय पद्धति से बनाई गई इस वाइन को थोड़ी मात्रा में लेना शरीर के लिए फायदेमंद माना जाता है।

मसाले और ‘सुपर-फूड’

खुशबूदार लौंग, इलायची, काली मिर्च और दालचीनी जैसे मसाले आपको कुर्ग से जरूर खरीदने चाहिए। ताजा कुर्गी मसाले आपके खाने को लज्जतदार और सेहत को बेहतर कर देंगे। कुर्ग में भारी मात्रा में कोको के फल का भी उत्पादन होता है, जिनका उपयोग चॉकलेट बनाने में होता है। यदि आप चॉकलेट खाने के शौकीन हैं तो आप यहां के बाजार से या तो यहां ताजा बनी हुई चॉकलेट खरीद सकते हैं या फिर कोको के फल खरीदकर खुद घर पर अपनी ‘डार्क चॉकलेट’ बना सकते हैं। ‘सुपर फूड’ माना जाने वाला एवोकाडो आपके शहरों में भले ही सबसे महंगा फल हो, किंतु ‘बटर फ्रूट’ नाम से मशहूर यह फल यहां काफी किफायती दाम में मिल जाएगा। इन सबके अलावा विराजपेट का कुर्गी शहद भी आप मदिकेरी के बाजार से खरीद सकते हैं। और हां, आप यहां से कॉफी की दुर्लभ लकड़ियों से बने टेबल तथा बाकी कलाकृतियां भी अपने साथ ले जा सकते हैं।

कब और कैसे पहुंचें?

जून से फरवरी के बीच का समय कुर्ग की यात्रा के लिए बेहतर माना जाता है। हालांकि यहां कभी भी बारिश हो जाती है, इसलिए छतरी रखना न भूलें। कर्नाटक के मैसूर शहर से कुर्ग 117 किलोमीटर दूर स्थित है। बस, कार, कैब या बाइक से कुर्ग के मुख्य शहर मदिकेरी तक पहुंचा जा सकता है। नजदीकी हवाई अड्डा तथा रेलवे स्टेशन मैसूर और बेंगलुरु में स्थित है।

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