आसान नहीं है यूूनिफाॅर्म सिविल कोड को लागू करने की राह
भारत में यदि यूनिफाॅर्म सिविल कोड लागू हुआ तो इससे कई बड़े बदलाव हो जाएंगे जो समाज के हित में होंगे। लेकिन इसको लागू करने में परेशानियां कम नहीं हैं।
नई दिल्ली। यूनिफाॅर्म सिविल कोड को लेकर विभिन्न सरकारों ने बात तो कई बार की लेकिन इस पर कभी कोई कदम आगे नहीं बढ़ाया। आजादी के बाद यह पहला मौका है जब केंद्र सरकार ने इस ओर पहल कर विधि आयोग से इस पर उनकी राय मांगी है। संसद यदि समान आचार संहिता विधेयक को पारित कर देती है तो देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू होगा।
लागू हुआ तो खत्म हो जाएगा मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड
यूनिफाॅर्म सिविल कोड मतलब सभी के समान आचार संहिता या समान अधिकार और समान कानून। अभी तक देश में हिंदू और मुस्लिम के लिए कानून भी अलग-अलग हैं। मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए इस देश में अलग कानून चलता है जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जरिए लागू होता है। वर्ष 2005 में भारतीय शिया मुसलमानों ने असहमतियों की वजह से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से नाता तोड़ दिया था और उन्होंने ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के रूप में एक स्वतंत्र लॉ बोर्ड का गठन किया था। इन कानूनों के दायरे में संपत्ति, शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे विषय आते हैं। यह नियम यदि एक बार लागू हो गया तो मुस्लिम पसर्नल लाॅ बोर्ड का वजूद खत्म हो जाएगा। इसकी सबसे बड़ी खासियत भी यही है और परेशानी भी यही है।
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परेशानी इसलिए है क्योंकि मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड को खत्म करना इतना आसान भी नहीं है। लेकिन जिस तरह से मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के मसले पर आगे निकलकर आई हैं और इसके खिलाफ बोल रही हैंं उससे इसकी राहें कुछ आसान जरूर हुई हैं। कुछ मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर इसको खत्म करने की भी मांग की है। यह अपने आप में कोई कम बड़ी बात नहीं है। यह मुस्लिम समाज में बदलाव का बड़ा संकेत है, जिसके खिलाफ समाज की नई पीढ़ी निकलकर सामने आ रही है।
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कांग्रेस करती रही है विरोध
हालांकि इस कानून के खिलाफ कांग्रेस ने हमेशा से ही आवाज उठाई है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की मुखालफत करने में वह सबसे आगे है। इसके अलावा भी कई नेता और पार्टियां इसके खिलाफ हैं। सुप्रीम कोर्ट हालांकि इस बारे मेंं हस्तक्षेप करने से साफ इंकार कर दिया है लेकिन पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने ही इसका जिक्र किया था। 1985 में शाहबानों मामले में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने ही इसका जिक्र करते हुए शाहबानो को समान नागरिक संहिता के लिए अपील दायर करने को कहा था। भारतीय संविधान की धारा 44 के अंतर्गत इसे लागू करना सरकार का दायित्व है, लेकिन चूंकि ये नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है, लिहाजा इसे लागू करना बाध्यकारी नहीं है। ये एक दिशा-निर्देश है।
लंबा है इतिहास
वर्ष 1772 के हैस्टिंग्स ने शरिअत कानून के लागू किया था। 1929 में, जमियत-अल-उलेमा ने बाल विवाह रोकने के खिलाफ मुसलमानों को अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने की अपील की। इस बड़े अवज्ञा आंदोलन का अंत उस समझौते के बाद हुआ जिसके तहत मुस्लिम जजों को मुस्लिम शादियों को तोड़ने की अनुमति दी गई।
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