बिहार के बच्चों का यातना गृह बने राजस्थान के कारखाने
केवल जयपुर में ही बिहार के 20 हजार बच्चों के कैद होने की आशंका। राजस्थान इन बच्चों के लिए यातना गृह बन चुका है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 08 Jun 2018 10:02 AM (IST)
जयपुर [नरेंद्र शर्मा/मनीष गोधा]। देशभर में हर दिन करीब दो सौ बच्चे लापता हो जाते हैं। इनमें 50 फीसद बच्चियां होती हैं। देश के विभिन्न शहरों- गांवों से बच्चों की चोरी-तस्करी धड़ल्ले से जारी है। बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा जैसे राज्यों में गरीब ग्रामीण परिवारों के बच्चों को तो तस्कर बाकायदा दो-तीन हजार रुपये में मां-बाप से ही खरीद ले रहे हैं, इसलिए अनेक मामलों में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हो रही है। बच्चियों को देह व्यापार में तो बच्चों को कारखानों में खपाया जा रहा है। बिहार शीर्ष पर है। राजस्थान इन बच्चों के लिए यातना गृह बन चुका है। यहां हजारों चूड़ी, पत्थर कटिंग, वस्त्र आदि के कारखानों में हजारों की संख्या में बच्चों के कैद होने की आशंका है।
यह कोई रहस्योद्घाटन नहीं है, बल्कि सिस्टम और सरकार इस सच से बखूब वाकिफ हैं। लेकिन, सभी बेबस हैं। बेबस हैं या मूकदर्शक बने हुए हैं, बड़ा सवाल है। बाल आयोग और मानवाधिकार आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, सभी चिंता जताते रहे हैं, लेकिन ठोस समाधान सामने नहीं आ सका है। बच्चों को राजस्थान, आंध्र प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों, महानगरों और पड़ोसी देशों तक में छोटे-बड़े कारखानों में खपाया जा रहा है। राजस्थान में पड़ताल करने पर पता अनेक बातें सामने आईं। गली-कस्बों में बने ऐसे कारखानों के मुख्य द्वार पर बाहर से ताला लगा कर रखा जाता है। बच्चों को बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी जाती है। अब तक पुलिस ने जो भी कार्रवाई की वह मुखबिर और स्वयंसेवी संगठनों की सूचना के आधार पर की है। इन कारखानों में काम करने वाले नब्बे फीसद बाल श्रमिक बिहार के गया, पूर्णिया, बदीलगढ़, निचलगंज, किशनगढ़, सिवान और पटना जिलों के रहने वाले हैं।
गत माह में ही भट्टा बस्ती से 76 बाल श्रमिकों को स्वयंसेवी संस्था रेस्क्यू जंक्शन के साथ मिलकर पुलिस ने मुक्त करवाया कर बिहार भेजा है। इनमें सबसे अधिक 22 बच्चे बिहार के गया जिले के थे। हालांकि इसके बाद भी करीब एक चौथाई बच्चों की पीड़ा खत्म नहीं होती और कुछ महीनों बाद वे फिर किसी कारखाने में पहुंचा दिए जाते हैं।
नहीं हो पाती है सजा
हम हर महीने चार-पांच रेड डालते हैं, लेकिन सजा नहीं हो पाती, क्योंकि मामला कोर्ट में जाता है और इस बीच आरोपितों को इतना समय मिल जाता है कि वे बच्चों से बयान बदलवा लेते है।
-महेंद्र सिंह, सब
इंस्पेक्टर, भट्टा बस्ती
पुलिस थाना, जयपुर
हम हर महीने चार-पांच रेड डालते हैं, लेकिन सजा नहीं हो पाती, क्योंकि मामला कोर्ट में जाता है और इस बीच आरोपितों को इतना समय मिल जाता है कि वे बच्चों से बयान बदलवा लेते है।
-महेंद्र सिंह, सब
इंस्पेक्टर, भट्टा बस्ती
पुलिस थाना, जयपुर
जयपुर में ही 20 हजार बच्चे कैद हैं जयपुर के कारखानों में 15 से 20 हजार बच्चे कैद हैं। हम प्रयास करते हैं, लेकिन जितने बच्चों को मुक्त करवाते हैं, उसके दोगुने वापस आ जाते हैं। इसका कारण यह है कि बिहार में इन बच्चों के पुनर्वास के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जाता।
-राकेश शर्मा, जयपुर में चल रहे शेल्टर
होम टाबर के प्रबंधक हर महीने औसतन 100 बच्चे मुक्त कराए जाते हैं हम हर महीने औसतन सौ बच्चों को मुक्त कराते हैं, लेकिन यह आंकड़ा यहां काम कर रहे बच्चों की संख्या के मुकाबले बहुत कम है।
-नरेंद्र सिखववाल, जयपुर बाल
कल्याण समिति के अध्यक्षकोटा, अजमेर, पुष्कर, पाली में जयपुर के साथ ही कोटा में कोचिंग छात्रों के होस्टलों में काम करने के लिए, अजमेर में दरगाह और पुष्कर में भीख मांगने के लिए, जोधपुर में पत्थर कटिंग उद्योग में और पाली में साड़ी के फॉल बनाने और इसकी पैकिंग के काम के लिए बड़ी संख्या में बच्चे दूसरे राज्यों से आ रहे हैं।
-विजय गोयल, एनजीओ स्नेह
आंगन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता
-राकेश शर्मा, जयपुर में चल रहे शेल्टर
होम टाबर के प्रबंधक हर महीने औसतन 100 बच्चे मुक्त कराए जाते हैं हम हर महीने औसतन सौ बच्चों को मुक्त कराते हैं, लेकिन यह आंकड़ा यहां काम कर रहे बच्चों की संख्या के मुकाबले बहुत कम है।
-नरेंद्र सिखववाल, जयपुर बाल
कल्याण समिति के अध्यक्षकोटा, अजमेर, पुष्कर, पाली में जयपुर के साथ ही कोटा में कोचिंग छात्रों के होस्टलों में काम करने के लिए, अजमेर में दरगाह और पुष्कर में भीख मांगने के लिए, जोधपुर में पत्थर कटिंग उद्योग में और पाली में साड़ी के फॉल बनाने और इसकी पैकिंग के काम के लिए बड़ी संख्या में बच्चे दूसरे राज्यों से आ रहे हैं।
-विजय गोयल, एनजीओ स्नेह
आंगन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता