Anand Mohan: आजादी के बाद पहला ऐसा नेता, जिसे मिली थी मौत की सजा, सालों से जेल में रहते हुए भी रसूख बरकरार
Anand Mohan Singh वैसे तो बिहार की राजनीति में कई नेता ऐसे हुए जिन्होंने अपने माफिया रूतूबे की वजह से अपनी पहचान बनाई। उन्हीं नेताओं की लिस्ट में से एक नाम बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह का भी है। जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है।
By Babli KumariEdited By: Babli KumariUpdated: Tue, 25 Apr 2023 04:25 PM (IST)
नई दिल्ली, जागरण डेस्क। बिहार की राजनीति कभी बाहुबलियों के प्रभाव से अछूती नहीं रही है। चाहे वो सूरजभान हो, चाहे वो शहाबुद्दीन हो, छोटे सरकार के नाम से जाने जाने वाले अनंत सिंह हो या फिर सुनील पांडे। ऐसे ही एक बाहुबली JDU के पूर्व MP आनंद मोहन हैं।
आनंद मोहन गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में फिलहाल जेल में सजा काट रहे हैं। गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन सिंह सहित 27 दोषियों को रिहा करने की अनुमति देने के जेल नियमों में बदलाव के अपने फैसले के लिए बिहार सरकार को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है और इस तरह एकबार फिर आनंद मोहन सिंह बिहार की राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं।
कौन है बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह
आनंद मोहन बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं। उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे। आनंद मोहन की राजनीति में एंट्री 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के दौरान हुई थी। आनंद मोहन राजनीति में महज 17 साल की उम्र में आ गये थे। जिसके बाद उन्होने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी थी। इमरजेंसी के दौरान पहली बार 2 साल जेल में रहे। आनंद मोहन का नाम उन नेताओं में शामिल है जिनकी बिहार की राजनीति में 1990 के दशक में तूती बोला करती थी।जेपी आंदोलन के जरिए ही आनंद मोहन बिहार की सियासत में आए और 1990 में सहरसा जिले की महिषी सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते। तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। स्वर्णों के हक के लिए उन्होंने 1993 में बिहार पीपल्स पार्टी बना ली। लालू यादव का विरोध कर ही आनंद मोहन राजनीति में निखरे थे।
लालू के घोर विरोधी माने जाते थे आनंद मोहन
बिहार की राजनीति में जब भी कद्दावर और दमखम रखने वाले बाहुबली नेताओं की बात की जाती है आनंद मोहन सिंह का नाम लोग जरूर लेते हैं। बिहार की राजनीति जब से शुरू हुई, तबसे जाति के नाम पर चुनाव हुए और लड़े गए। एक दौर बिहार की राजनीति में 90 के दशक में आया जब ऐसा सामाजिक ताना-बाना बुना गया था कि जात की लड़ाई खुलकर सामने आ गई थी और अपनी-अपनी जातियों के लिए राजनेता भी खुलकर बोलते दिखते थे।चुनाव के समय जात के नाम पर आए दिन मर्डर की खबरें आती थीं। उस वक्त लालू यादव का दौर चल रहा था। उस दौर में आनंद मोहन लालू के घोर विरोधी के रूप में उभरे। 90 के दशक में आनंद मोहन की तूती बोलती थी। उनपर हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती, दबंगई समेत दर्जनों मामले दर्ज हैं।