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Bilkis Bano Case: 'बिलकिस बानो से माफी...', ओवैसी से लेकर राहुल गांधी तक; सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विपक्षी नेताओं ने भाजपा पर साधा निशाना

बिलकिस बानो मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के आदेश को पलट दिया। कोर्ट ने गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा से छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को सोमवार को ‘घिसा पिटा’ कहकर रद्द कर दिया।

By Jagran News Edited By: Siddharth ChaurasiyaUpdated: Mon, 08 Jan 2024 03:39 PM (IST)
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बिलकिस बानो मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के आदेश को पलट दिया।
जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। बिलकिस बानो मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के आदेश को पलट दिया। कोर्ट ने गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा से छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को सोमवार को यह कहकर रद्द कर दिया कि आदेश ‘‘घिसा पिटा’’ था और इसे बिना सोचे-समझे पारित किया गया था।

प्रियंका गांधी ने फैसले का किया स्वागत

कोर्ट के इस फैसले का कई नेताओं ने स्वागत किया और अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा कि अंततः न्याय की जीत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म की शिकार बिलकिस बानो के आरोपियों की रिहाई रद्द कर दी है।

उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर कहा, "अंततः न्याय की जीत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के दौरान गैंगरेप की शिकार #BilkisBano के आरोपियों की रिहाई रद्द कर दी है। इस आदेश से भारतीय जनता पार्टी की महिला विरोधी नीतियों पर पड़ा हुआ पर्दा हट गया है। इस आदेश के बाद जनता का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास और मजबूत होगा। बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई को जारी रखने के लिए बिलकिस बानो को बधाई।"

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'चुनावी फायदे के लिए न्याय की हत्या'

वहीं, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कहा कि चुनावी फायदे के लिए न्याय की हत्या की गई है। उन्होंने 'एक्स' पर पोस्ट कर कहा, "चुनावी फायदे के लिए ‘न्याय की हत्या’ की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है। आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर देश को बता दिया कि ‘अपराधियों का संरक्षक’ कौन है। बिलकिस बानो का अथक संघर्ष, अहंकारी भाजपा सरकार के विरुद्ध न्याय की जीत का प्रतीक है।"

'बीजेपी ने दोषियों को रिहा करवाया'

हैदराबाद से सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बीजेपी और तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा, "मैं शुरू से कह रहा हूं कि बिलकिस बानो मामले में जब गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे। उस समय उनकी सरकार ने इस मामले के दोषियों का साथ दिया था। बिलकिस बानो के साथ दुष्कर्म किया गया। उनकी बच्ची की निर्मम हत्या की गई। बिलकिस बानो ने अपनी इंसाफ की लड़ाई खुद लड़ी।"

उन्होंने कहा, "उस समय गुजरात में बहुत ही खराब माहौल था, इसलिए इस ट्रायल को महाराष्ट्र में शिफ्ट किया गया। आपको यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि बीजेपी ने ही बिलकिस बानो के दोषियों को रिहा कराया। इसके बाद बीजेपी के लोगों ने ही उनके गले में गुलाब का हार डाला, इससे बीजेपी की जो महिलाओं के लिए लड़ाई है, वह एक्पोज हो जाती है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए ओवैसी ने कहा, "गुजरात में बीजेपी सरकार दोषियों की मदद करने का काम कर रही है। बीजेपी के दो विधायकों ने ये कहा कि इन्हें छोड़ दिया जाए। एक विधायक ने उन्हें संस्कारी भी कहा था। आज सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ कर दिया कि बीजेपी सरकार ने बिलकिस बानो के दोषियों को छोड़ने में मदद की।"

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए ओवैसी ने कहा, "उम्मीद करता हूं कि भविष्य में कोई भी सरकार इस तरीके से एक्ट नहीं करेगी, जिससे दुष्कर्म व हत्या के दोषियों को छोड़ दिया जाए, अगर कोई दुष्कर्म का अपराधी ये समझ लेगा कि मैं शासन वाली पार्टी का समर्थक हूं, फिर भी दोषी को पॉलिटिकल आइडियोलॉजी से छूट नहीं मिलेगी।"

गृह मंत्रालय पर सवाल उठाते हुए हैदराबाद सांसद ने कहा, "गृह मंत्रालय ने इन दोषियों को छोड़ने के लिए अप्रूवल दिया था। इसका लेटर भी जारी किया गया था। अमित शाह ने अप्रूवल क्यों दिया था। मोदी जो नारीशक्ति की बात करते हैं, ये सिर्फ जुमलेबाजी है। इन्होंने बिलकिस के दोषियों को छोड़ने का काम किया, उससे एक्सपोज होते हैं।"

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गुजरात सरकार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूइयां की पीठ ने दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी दिया। सजा में छूट को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं को सुनवाई योग्य करार देते हुए पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार सजा में छ्रट का आदेश देने के लिए उचित सरकार नहीं है।

शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि एक राज्य जिसमें किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वही दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम होता है। दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया था।

पीठ ने 100 पन्नों का फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘हमें अन्य मुद्दों को देखने की जरूरत नहीं है। कानून के शासन का उल्लंघन हुआ है क्योंकि गुजरात सरकार ने उन अधिकारों का इस्तेमाल किया जो उसके पास नहीं थे और उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। उस आधार पर भी सजा से माफी के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।’’

शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से दोषियों की सजा माफी की याचिका पर विचार करने संबंधी एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को ‘अमान्य’ माना और कहा कि यह ‘अदालत को गुमराह’ करके और ‘तथ्यों को छिपाकर’ हासिल किया गया।

पीठ ने कहा कि यह एक विशेष मामला है जहां इस अदालत के आदेश का इस्तेमाल सजा में छूट देकर कानून के शासन का उल्लंघन करने के लिए किया गया। शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिकारों का दुरुपयोग कर कानून के शासन का उल्लंघन किया गया है और 13 मई, 2022 के आदेश का इस्तेमाल शक्तियों को हथियाने और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए किया गया।

पीठ ने कहा, ‘‘हम गुजरात सरकार द्वारा अधिकारों का दुरुपयोग करने के आधार पर सजा में छूट के आदेश को रद्द करते हैं।’’ शीर्ष अदालत ने बानो द्वारा दायर याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर 11 दिन की सुनवाई के बाद पिछले साल 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और गुजरात सरकार को 16 अक्टूबर तक 11 दोषियों की सजा माफी से संबंधित मूल रिकॉर्ड जमा करने का निर्देश दिया था।

पिछले साल सितंबर में मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पूछा था कि क्या दोषियों के पास सजा से माफी मांगने का मौलिक अधिकार है। पहले की दलीलों के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने में चयनात्मक रवैया नहीं अपनाना चाहिए और सुधार एवं समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर हर कैदी को मिलना चाहिए।

गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर इस राहत के खिलाफ चुनौती दी थी।