Move to Jagran APP

गंगा की सफाई पर हुए अरबों खर्च फिर भी यूपी, बिहार, बंगाल में गंगाजल पीने लायक नहीं

जल में घुलनशील आक्सीजन की मात्रा एक लीटर जल में 6 मिलीग्राम से अधिक होनी चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Updated: Fri, 07 Sep 2018 12:29 AM (IST)
Hero Image
गंगा की सफाई पर हुए अरबों खर्च फिर भी यूपी, बिहार, बंगाल में गंगाजल पीने लायक नहीं
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। गंगा की सफाई पर अरबों रुपये खर्च होने के बावजूद उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगाजल पीने लायक नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने ऑनलाइन चेतावनी जारी करते हुए बताया है कि किन शहरों में गंगा जल पीने लायक है और किन शहरों में नहीं।

सीपीसीबी ने अपनी वेबसाइट पर एक मानचित्र प्रकाशित कर उन स्थानों को चिन्हित किया है जहां गंगा जल पीने और नहाने योग्य है। सीपीसीबी के अनुसार उत्तराखंड में गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक लगभग सभी प्रमुख शहरों में गंगाजल पीने योग्य है। यहां गंगोत्री, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार और रुड़की में गंगा जल पेयजल के मानदंडों पर खरा उतरता है। हालांकि ये मानक पूरे होने के बावजूद जूद यहां पानी को छानकर तथा स्वच्छ करके पीना चाहिए।

सीपीसीबी के अनुसार उत्तर प्रदेश में बिजनौर और गढ़मुक्तेश्वर में दो स्थलों को छोड़कर पूरे प्रदेश में गंगाजल पीने योग्य नहीं है। अनूपशहर में गंगा जल में बॉयोकैमिकल ऑक्सिजन डिमांड (बीओडी) निर्धारित मानकों से अधिक है जबकि नरौरा में बीओडी के साथ-साथ पीएच वैल्यू भी अधिक है। इसी तरह अलीगढ़ के कछलाघाट पर भी पीएच वैल्यू निर्धारित मात्रा से अधिक है।

कन्नौज में गंगा नदी में ऑॅक्सीजन की मात्रा काफी कम है जबकि बीओडी का स्तर अत्यधिक है। यही हाल बिठूर, कानपुर, शुक्लागंज, गोलाघाट, जाजमऊ, बिरसा, डलमऊ, इलाहबाद, मिर्जापुर, बनारस, बक्सर, पटना, फतुहा, बाढ़, मुंगेर, सुल्तानगंज, कहलगांव, राजमहल तथा उससे आगे बंगाल में हैं।

आश्चर्य की बात यह है कि सीपीसीबी ने उत्तर प्रदेश और बिहार सीमा के निकट आरा-छपरा रोड ब्रिज के समीप गंगाजल को पेयजल के मापदंडों पर खरा करार दिया है। सीपीसीबी के अनुसार कानपुर से आगे गंगा जल में टोटल कॉलीफार्म की मात्रा काफी अधिक है।

गंगा महासभा के राष्ट्रीय महा मंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती का कहना है अधिकांश जगहों पर गंगा जल आचमन योग्य नहीं होना, गंगा की सफाई के लिए किए गए प्रयासों पर सवाल खड़े करता है। गंगा के हाल में सुधार होने के बजाय स्थिति खराब होती जा रही है। यह दुखद स्थिति है।

हालांकि सीपीसीबी के पूर्व अतिरिक्त निदेशक दीपांकर साहा का कहना है कि पूरी गंगा का पानी खराब नहीं है। सिर्फ उन शहरों में पानी की गुणवत्ता खराब है जहां प्रवाह कम है और प्रदूषण काफी अधिक है। सीपीसीबी ने जो चेतावनी जारी की है उससे लोगों को जानकारी मिलेगी जिससे उन्हें लाभ मिलेगा।

उल्लेखनीय है कि एनजीटी ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन यानी एनएमसीजी और सीपीसीबी को निर्देश दिया था कि वह प्रत्येक 100 किलोमीटर की दूरी पर बोर्ड लगाकर यह बताएं कि गंगा का पानी पीने और नहाने लायक है या नहीं। इसके बाद ही सीपीसीबी ने सूचना अपनी वेबसाइट पर डाली है।

सीपीसीबी ने इन मापदंडों को बनाया आधार

सीपीसीबी ने जिन मापदंडों को अपनाया है उसके अनुसार जल में घुलनशील आक्सीजन की मात्रा एक लीटर जल में 6 मिलीग्राम से अधिक जबकि बॉयो-कैमिकल ऑक्सीजन डिमांड प्रति लीटर जल में दो मिली ग्राम से कम होनी चाहिए। इसी तरह टोटल कॉलीफार्म की संख्या भी प्रति 100 एमएल 5000 से कम तथा पीएच वैल्यू 6.5 से 8.5 के बीच होनी चाहिए। सीपीसीबी का कहना है कि इस मानदंड पर खरा उतरने के बावजूद पानी परंपरागत तरीके से छानकर और अशुद्धियों को दूर करने पर ही पीने के लिए फिट होगा।

सीपीसीबी ने स्नान के लिए उपयुक्त जल के लिए जो मापदंड अपनाये हैं उसके तहत एक लीटर पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 5 मिलीग्राम से अधिक और बॉयो-कैमिकल ऑक्सीजन डिमांड 3 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए। साथ पीएच वैल्यू 6.5 से 8.5 के बीच होनी चाहिए।