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Black Hole Theory: ब्लैक होल की सफेद कहानी, कैसे सितारों को टुकड़ों-टुकड़ों में निगल रहा ब्लैक होल

Black Hole Theory And Tragedy नासा की नील गेहरल्स आब्जर्वेटरी द्वारा भेजे गये आंकड़ों के अनुसार विज्ञानियों ने पाया कि जो सितारा इस ब्लैक होल के चक्कर लगा रहा था। उसका एक चक्कर 20 से 30 दिन का था। जब सितारा उस ब्लैक होल के पास से गुजरता उसका कुछ हिस्सा ब्लैक होल में समा जाता। इस घटना को ‘रिपीटिंग पार्शल टाइडल डिसरप्शन’ नाम दिया।

By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Mon, 09 Oct 2023 05:50 AM (IST)
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Black Hole Theory: ब्लैक होल की सफेद कहानी, कैसे सितारों को टुकड़ों-टुकड़ों में निगल रहा ब्लैक होल

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। ब्रह्मांड के सबसे बड़े अनसुलझे रहस्यों में से एक ब्लैक होल के बारे में आम धारणा है कि इसमें सबकुछ निगल जाने की असीमित क्षमता है। अतुलनीय गुरुत्वाकर्षण बल के खिंचाव की वजह से इसके आसपास से गुजरने वाले असंख्य सितारे इसमें समा जाते हैं, लेकिन हाल ही में इस अवधारणा को चुनौती मिली है।

विज्ञानियों ने हाल ही में एक अलग ही नजारा देखा। इसमें एक ब्लैक होल ने सूरज जैसे विशाल सितारे को निगलने के बजाय टुकड़ों-टुकड़ों में खाया। यह नजारा ठीक उसी तरह था जैसे कोई मजेदार स्नैक खा रहा हो। इंग्लैंड की लेस्टर यूनिवर्सिटी में खगोलविज्ञानी राब आइल्स-फेरिस ने इस पर शोध शुरू किया है। यह नेचर एस्ट्रोनामी में प्रकाशित हुआ है।

हर निवाला पृथ्वी जितना बड़ा था

खगोलविदों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार यह अद्भुत और हैरतअंगेज दृश्य हमारे पड़ोसी आकाशगंगा के केंद्र में मौजूद एक ब्लैक होल में देखा। इसका हर निवाला लगभग हमारी पृथ्वी जितना बड़ा था। जब-जब सितारा उस अंडाकार ब्लैक होल के करीब से गुजरता, ब्लैक होल उसका एक टुकड़ा गटक जाता था।

52 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थित था तारा

ब्लैकहोल ने जिस तारे को निगला था, वह एक सर्पिलाकार आकाशगंगा सैजिटेरियस ए के केंद्रीय हिस्से में था। सौर मंडल से करीब 52 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थित था। एक प्रकाश वर्ष उतनी दूरी होती है, जितना प्रकाश एक साल में तय करता है।

यह लगभग 950 करोड़ किलोमीटर बनती है। वहीं आकाशगंगा में मौजूद यह ब्लैक होल बहुत ज्यादा बड़ा नहीं था। इस ब्लैक होल का भार सूर्य से कुछ लाख गुना ही ज्यादा था, जबकि आकाशगंगाओं में इससे करोड़ों गुना बड़े ब्लैक होल खोजे गए हैं।

सालों से सदियों लंबी प्रक्रिया

नासा की नील गेहरल्स आब्जर्वेटरी द्वारा भेजे गये आंकड़ों के अनुसार विज्ञानियों ने पाया कि जो सितारा इस ब्लैक होल के चक्कर लगा रहा था। उसका एक चक्कर 20 से 30 दिन का था। जब सितारा उस ब्लैक होल के पास से गुजरता, उसका कुछ हिस्सा ब्लैक होल में समा जाता। इस घटना को ‘रिपीटिंग पार्शल टाइडल डिसरप्शन’ नाम दिया।

सितारे का तापमान 20 लाख डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता

जब सितारे का टुकड़ा ब्लैक होल में गिरता तो उसका तापमान 20 लाख डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता। राब आइल्स-फेरिस के अनुसार सितारे की कक्षा धीरे-धीरे घटती जाएगी। एक वक्त में वह इतना करीब पहुंच जाएगा कि ब्लैक होल उसे पूरा निगल जाएगा। इसमें कई साल से लेकर एक सदी का समय भी लग सकता है।

अनसुलझे हैं कई सवाल

विज्ञानी आइल्स-फेरिस कहते हैं, "टाइडल डिसरप्शन के बारे में बहुत से सवाल अनसुलझे हैं। मसलन, सितारे की कक्षा असल में किस तरह प्रभावित होती है। ताजा घटना ने दिखाया है कि नई खोजें किसी भी वक्त सामने आ सकती हैं।"

यह है ब्लैकहोल

ब्लैक होल अत्यधिक घनत्व वाले अंधकारमय आकाशीय पिंड होते हैं। उनका गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि प्रकाश तक उनमें से पार नहीं हो पाता। इसके भीतर क्या है, जानकारी नहीं है।

ब्रह्मांड के अध्ययन का मुख्य आधार और खगोल विज्ञान में नवीनतम खोजों की कुंजी बन चुका अल्बर्ट आइंस्टाइन का ‘सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत’ (जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी) अपनी खोज के सौ से अधिक साल पूरे होने के बावजूद सुर्खियों में रहता है।

ताजा मामला यह है कि शोधकर्ताओं को पृथ्वी से साढ़े पांच करोड़ प्रकाशवर्ष दूर मेसियर-87 मंदाकिनी (गैलेक्सी) के केंद्र में विद्यमान एक विशालकाय ब्लैक होल में घूर्णन के पहली बार प्रत्यक्ष प्रमाण मिले हैं, जो आइंस्टाइन के इस सिद्धांत के कुछ और पहलुओं की पुष्टि करता है।

सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड में किसी भी वस्तु की तरफ जो गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव दिखाई देता है, उसका कारण यह है कि हर वस्तु अपने द्रव्यमान और आकार के मुताबिक अपने इर्द-गिर्द के दिक्-काल (स्पेसटाइम) की ज्यामिती को वक्रिल कर देती है।

इसी परिघटना का उदाहरण है- कृष्ण विवर या ब्लैक होल। ब्लैक होल अत्यधिक घनत्व तथा द्रव्यमान वाले ऐसे पिंड होते हैं, जो खगोलीय दृष्टि से आकार में तो बहुत छोटे होते हैं, परंतु इनके प्रबल गुरुत्वाकर्षण के चंगुल से प्रकाश की किरणों का भी निकलना असंभव होता है।

ये ब्रह्मांड विज्ञान के सबसे बड़े रहस्यों में से एक हैं, इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इनसे जुड़ी नई खोजों ने अक्सर आइंस्टाइन के इस सौ साल पुराने सिद्धांत की या तो पुष्टि की या फिर इसे चुनौती देने का काम किया है।

इस सिद्धांत के जरिए पिछली सदी के छठे दशक में खगोल विज्ञानियों ने यह भविष्यवाणी की थी कि ब्लैक होल से प्रकाश, गैस और धूल के रूप में उत्सर्जित होने वाली जेट धाराओं का प्रत्यक्ष संबंध ब्लैक होल के द्रव्यमान और उसके घूर्णन की गति से होगा।

ब्रह्मांड विज्ञान की अनेक अवधारणाओं की तरह इस मान्यता की भी अभी तक प्रत्यक्ष रूप से पुष्टि नहीं हो सकी थी, जबकि खगोलविद जानते हैं कि ब्लैक होल घूर्णन करते हैं, क्योंकि इनका निर्माण जिन खगोलीय पिंडों (तारों) से होता है, वे भी घूर्णन करते हैं।

चुनौती इसे साबित करने की थी, जिस बारे में एक नई दृष्टि मिली है। अंतरराष्ट्रीय खगोलविज्ञानियों की एक टीम ने दुनिया भर के रेडियो दूरबीनों के आंकड़ों के विश्लेषण के बाद मंदाकिनी मेसियर-87 के केंद्र में डोलती हुई जेट धाराओं के उद्गम का पता लगाया है, जो ब्लैक होल के घूर्णन का पहला प्रत्यक्ष प्रमाण है।

वस्तुत: इवेंट होराइजन टेलीस्कोप के जरिए मेसियर-87 के केंद्र में मौजूद इसी ब्लैक होल के इमेजिंग में वर्ष 2019 में ऐतिहासिक सफलता मिली थी। इस कामयाबी के बाद से खगोल विज्ञानियों का ध्यान इस सवाल पर केंद्रित हो गया था कि यह ब्लैक होल घूम रहा है या नहीं। अब शोध से मिले नतीजों से प्रत्याशा निश्चितता में बदल गई है।

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