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देखें- साल में सिर्फ एक बार खिलने वाले ब्रह्म कमल, जानिए इन फूलों की खासियत

लॉकडाउन का असर हिमालय के फूलों का राजा कहलाने वाले ब्रह्म कमल पर भी पड़ता दिख रहा है। साल में सिर्फ एक बार खिलने वाला यह फूल अब अक्टूबर महीने में भी अपनी खुशबू बिखेर रहा है। ब्रह्म कमल के खिलने का सही वक्त अगस्त का होता है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Updated: Mon, 12 Oct 2020 07:53 PM (IST)
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उत्तराखंड के चमोली में घी विनायक, नंदीकुंड पांडवसेरा में हजारों की संख्या में ब्रह्मकमल खिले हैं। फाइल फोटो
नई दिल्ली, एएनआई। कोरोना संक्रमण के लिए बनी गाइडलाइन ने ब्रह्मकमल के लिए संजीवनी का काम किया है, जो इस दुर्लभ प्रजाति के लिए शुभ संकेत है। लॉकडाउन का असर हिमालय के फूलों का राजा कहलाने वाले ब्रह्म कमल पर भी पड़ता दिख रहा है। साल में सिर्फ एक बार खिलने वाला यह फूल अब अक्टूबर महीने में भी अपनी खुशबू बिखेर रहा है। ब्रह्म कमल के खिलने का सही वक्त अगस्त का होता है। एक्सपर्ट भी यह चीज देखकर हैरान हैं। माना जा रहा है कि कम टूरिस्ट के पहुंचने और प्रदूषण के कम होने के चलते ऐसा हुआ होगा। जमीन पर खिलने वाले इस फूल की धार्मिक और औषधीय विशेषता है।

कोरोना काल ब्रह्म कमल के लिए बनी जीवनदान

कोरोना महामारी के दौर में उत्तराखंड के घी विनायक, नंदीकुंड पांडवसेरा में लोगों की आवाजाही ना होने के कारण हजारों की संख्या में ब्रह्मकमल खिले हैं। ट्रेकिंग पर गए पर्यटक ब्रह्मकमल को परिपक्व होने से पहले ही तोड़ देते थे, जिससे उसका बीज नहीं फैल पाता था। इस बार फूल पूरी तरह से पक चुके हैं, और इसका बीज गिरने पर अगले वर्ष ब्रह्मकमल की पैदावार बढ़ने की उम्मीद है। तीर्थयात्रीयों के अधिक दोहन के चलते यह लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है।

ब्रह्म कमल फूल की खासियत

यह बेहद सुंदर होता है और इसे दिव्य फूल भी कहते हैं। इस फूल का वैज्ञानिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। ब्रह्मकमल एस्टेरेसी कुल का पौधा है। डहलिया, गेंदा, गोभी, सूर्यमुखी, कुसुम और भृंगराज भी इसी कुल के अन्य मुख्य पौधे हैं। इस फूल को कई नामों से जाना जाता है जैसे- हिमाचल में दूधाफूल, उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस और कश्मीर में गलगल। उत्तराखंड में इसे राज्य पुष्प भी कहते हैं। सुंदर होने के साथ-साथ यह फूल कई तरह की कठिन बीमारियों का इलाज करने के काम भी आता है।

दो घंटे में पूरा खिलता है ब्रह्म कमल

ब्रह्म कमल इसलिए खास है क्योंकि यह साल की एक रात को सिर्फ रात में खिलता है। यह सिर्फ उत्तराखंड के हिमालय के ऊंचे स्थानों पर पाया जाता है। ब्रह्म कमल को पूरी तरह से खिलने में दो घंटे लग जाते हैं। इसमें यह 8 इंच तक खिल जाता है। यह सिर्फ कुछ घंटे तक ही खिला रहता है। इसे सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

इन रोगों में काम आता है ब्रह्म कमल

ब्रह्म कमल फूल अगस्त के महीने में खिलता है। सितम्बर, अक्टूबर में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5 या 6 महीने का होता है। ब्रह्म कमल मां नंदा का प्रिय पुष्प हैं, इसलिए इसे नंदा अष्टमी में तोड़ा जाता है। ब्रह्मकमल साल में एक बार खिलता है जोकि सिर्फ रात के समय खिलता है। ब्रह्मकमल के कई औषधीय उपयोग भी हैं। जले-कटे में, सर्दी-जुकाम, हड्डी के दर्द आदि में इसका उपयोग किया जाता है। इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है। पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है। सीमा क्षेत्र में रहते वाले ग्रामीण गांव में रोग-व्याधि न हो, इसके लिए पुष्प को घर के दरवाजों पर टांग देते हैं। बता दें कि तिब्बत में ब्रह्म कमल को दवाओं और आयुर्वेद से जुड़ी चीजें बनाने में काम में लाया जाता है। किसी तरह के घाव को भरने के लिए उत्तराखंड के लोग भी इसका इस्तेमाल करते हैं।

ब्रह्म कमल फूल की धार्मिक महत्व

इस फूल का बड़ा धार्मिक महत्व भी है। इस फूल को पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना जाता है। ब्रह्मकमल का अर्थ ही है ‘ब्रह्मा का कमल’। कहते हैं कि केवल भग्यशाली लोग ही इस फूल को खिलते हुए देख पाते हैं और जो ऐसा देख लेता है, उसे सुख और संपत्ति मिलती है। यह फूल केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों की मूर्तियों पर भी चढ़ाए जाते हैं।

4 हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर खिलता है ब्रह्म कमल

ब्रह्म कमल एस्टेरेसी कुल का पौधा है। शिव पूजन के साथ ही सामान्य कमल की तरह यह पानी में नहीं उगता, बल्कि जमीन पर 4 हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर खिलता है। लेकिन इस बार इन्हें 3000 मीटर की ऊंचाले वाले इलाकों में भी देखा गया है। प्राचीन मान्यता के अनुसार, ब्रह्म कमल को इसका नाम ब्रह्मदेव के नाम पर मिला है।