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भारत-बांग्लादेश सीमा पर अब अपराध को रोंकेगी मधुमक्खियां, जानिए क्या है बीएसएफ का प्लान

भारत-बांग्लादेश सीमा पर अपराध को रोकने के लिए मधुमक्खियों के छत्ते लगाए गए हैं। बीएसएफ ने यह पहल की है जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। इस परियोजना के लिए बीएसएफ ने आयुष मंत्रालय को भी शामिल किया है।

By AgencyEdited By: Achyut KumarUpdated: Sun, 05 Nov 2023 06:25 PM (IST)
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भारत-बांग्लादेश सीमा पर अपराध रोकने के लिए लगाए गए मधुमक्खियों के छत्ते

पीटीआई, नई दिल्ली। सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) भारत-बांग्लादेश सीमा पर मवेशियों की तस्करी सहित अन्य अपराधों को रोकने के लिए एक अनूठा प्रयोग कर रहा है, जिसके तहत वहां वह मधुक्खियों के छत्ते लगा रहा है। बीएसएफ की इस पहल से स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे।

सीमावर्ती इलाके में शुरू की गई योजना

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अपने तरह की इस पहली योजना को बीएसएफ की 32वीं बटालियन ने नादिया जिले के सीमावर्ती इलाके में शुरू किया है, ताकि सीमा पर सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और स्थानीय लोगों को मधुमक्खी पालन से जोड़ा जा सके।

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बीएसएफ ने आयुष मंत्रालय को भी योजना में किया शामिल

भारत और बांग्लादेश 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं, जिसमें से 2,217 किमी लंबी सीमा पश्चिम बंगाल से लगी हुई है। इस परियोजना के लिए बीएसएफ ने आयुष मंत्रालय को भी शामिल किया है। मंत्रालय ने सीमा सुरक्षा बल को मधुमक्खी के छत्ते और मिश्र धातु से बने स्मार्ट बाड़ पर उन्हें ठीक से लगाने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता प्रदान की है।

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आयुष मंत्रालय से औषधीय पौधे उपलब्ध कराने का अनुरोध

इस परियोजना की परिकल्पना करने वाले बीएसएफ की 32वीं बटालियन के कमांडेंट सुजीत कुमार ने बताया कि इसने केंद्र के वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम (वीवीपी) के तहत यह पहल की है। साथ ही, बीएसएफ ने एक कदम आगे बढ़ते हुए आयुष मंत्रालय से औषधीय पौधे उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है, जिनमें फूल आते हैं और इन्हें इन मधुमक्खियों के छत्तों के आसपास लगाया जा सकता है, ताकि मधुमक्खियां प्रचुर मात्रा में परागण कर सकें।

ग्रामीणों का भी मिला समर्थन

सुजीत कुमार ने कहा कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर मधुमक्खियों के छत्ते लगाने की परिकल्पना को दो नवंबर को मूर्त रूप देना शुरू किया गया। बीएसएफ यह सुनिश्चित करेगा कि मधुमक्खी के छत्ते मधुमक्खी पालन में लगे स्थानीय लोगों के लिए सुलभ हों और इस पहल के लिए ग्रामीणों से बहुत उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली है।