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I.N.D.I.A : सीटों के बंटवारे में नया पेंच फंसाएगी गठबंधन में बसपा की एंट्री, कांग्रेस ने खुद बदल ली अपनी चाल

सपा बसपा कांग्रेस और रालोद का यह गठजोड़ निस्संदेह भाजपा के विरुद्ध जातीय गोलबंदी को कुछ मजबूत कर सकता है लेकिन इस कैमिस्ट्री की राह में सीटों का गणित बिठाना बड़ी चुनौती है। एक तो बसपा के धुर विरोधी अखिलेश यादव को मनाना और दूसरा सीटों के बंटवारे में भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपनी दावेदारी को काफी समेटना पड़ेगा।

By Jagran News Edited By: Babli Kumari Updated: Mon, 08 Jan 2024 08:37 PM (IST)
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बसपा को गठबंधन में लाने के प्रयासों की कांग्रेस की खुली स्वीकारोक्ति (फोटो- जागरण)

जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। सत्ताधारी भाजपा के खिलाफ शतरंज की बाजी सजाने से अधिक विपक्षी गठबंधन फिलहाल सांप-सीढ़ी जैसे खेल से गुजरता दिखाई दे रहा है। मध्य प्रदेश चुनाव से कांग्रेस और सपा के रिश्तों में पैदा हुई खटास जैसे-तैसे खत्म होकर बातचीत सीटों के बंटवारे की ओर बढ़ी ही थी कि बसपा को गठबंधन में लाने के प्रयासों की कांग्रेस की खुली स्वीकारोक्ति और इस संबंध में मायावती की चुप्पी ने इस संभावना को आधार दे दिया है कि बसपा भी I.N.D.I.A में शामिल रहेगी।

सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद का यह गठजोड़ निस्संदेह भाजपा के विरुद्ध जातीय गोलबंदी को कुछ मजबूत कर सकता है, लेकिन इस ''कैमिस्ट्री'' की राह में सीटों का ''गणित'' बिठाना बड़ी चुनौती है। एक तो बसपा के धुर विरोधी अखिलेश यादव को मनाना और दूसरा, सीटों के बंटवारे में भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपनी दावेदारी को काफी समेटना पड़ेगा।

बसपा के बिना गठबंधन कितना कारगर होगा?

देशभर के क्षेत्रीय दल जब से I.N.D.I.A के बैनर तले हाथ मिलाकर खड़े होना शुरू हुए, तभी से उत्तर प्रदेश को लेकर यह प्रश्न उठ रहा है कि वहां बसपा के बिना गठबंधन कितना कारगर होगा? क्या लगभग 20 प्रतिशत दलित वोट बैंक को नजरअंदाज किया जाएगा? क्या मुस्लिम मतों के विभाजन का जोखिम नहीं रहेगा? बसपा की चिर प्रतिद्वंद्वी सपा भले आत्मविश्वास में डूबी हो, लेकिन कांग्रेस नेता शुरुआत से अंदरखाने बसपा से बातचीत के प्रयास में लगे थे। बेशक, कई बार बसपा प्रमुख मायावती ने इन अटकलों को सिरे से नकारते हुए अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की हो, लेकिन इन अटकलों पर पूर्ण विराम कभी नहीं लगा।

अखिलेश ने प्रश्न दागा कि बसपा की गारंटी कौन लेगा?

सूत्रों के अनुसार, हाल ही में कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के साथ हुई उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की बैठक में यह मांग फिर उठी कि बसपा को गठबंधन में शामिल कराया जाए। वहीं, I.N.D.I.A की बैठक में अखिलेश यादव खुलकर इसका विरोध कर चुके थे। इसके बावजूद कांग्रेस ने बसपा से बातचीत बंद नहीं की। यह उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त प्रभारी अविनाश पांडे ने अपने इस बयान से पुष्ट कर दिया कि गठबंधन के कुछ साथी बसपा से बातचीत कर रहे हैं। इस पर फिर अखिलेश ने प्रश्न दागा कि बसपा की गारंटी कौन लेगा?

सपा पर जमकर बरसीं बसपा प्रमुख

प्रतिक्रिया में मायावती ने अखिलेश को तो आईना दिखाया कि कैसे सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने भाजपा सांसदों को जीत के लिए आशीर्वाद दिया था, लेकिन कांग्रेस के बयान को खारिज नहीं किया। सपा पर जमकर बरसीं बसपा प्रमुख ने कांग्रेस के लिए इस बार एक शब्द भी नहीं बोला। इससे माना जा रहा है कि बाचतीत सकारात्मक दिशा में है।

बसपा के गठबंधन में शामिल होने से भाजपा की बढ़ेगी मुश्किलें 

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सपा, कांग्रेस और रालोद के गठबंधन में बसपा भी शामिल हो जाती है तो यह भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन अभी इस गठजोड़ की राह में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। दरअसल, सीटों के बंटवारे को लेकर इतने दिन चली कसरत के बाद सपा 58 से 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाए बैठी थी। कांग्रेस बेशक, 25 सीटों पर दावा करने जा रही हो, लेकिन सपा का प्रयास उसे 15 सीटों तक तैयार करने का था। बाकी सीटों पर रालोद व भीम आर्मी को मौका देने की बात थी।

बसपा के आने से सपा 40 सीटों पर करेगी दावा 

सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि अखिलेश यादव कतई नहीं चाहते कि बसपा गठबंधन में शामिल हो, क्योंकि विश्वास का संकट है। साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेता यह मन बना रहे हैं कि यदि बसपा साथ आती भी है तो सपा 40 सीटों पर दावा करेगी। कांग्रेस से कहा जाएगा कि बाकी चालीस में वह खुद, बसपा और रालोद को हिस्सेदारी दे। बात न बनने पर यह समीकरण भी अंतिम रूप ले सकता है कि 32-32 सीटों पर सपा-बसपा लड़ें, 12 पर कांग्रेस, तीन पर रालोद और एक सीट भीम आर्मी के लिए छोड़ दी जाए।