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घुंघरुओं पर झंकारती लोकप्रिय लोकनृत्य 'राई' की धमक अब विदेश में मचा रही धूम

बुंदेलखंड का पारंपरिक और लोकप्रिय लोकनृत्य है राई संरक्षण की है दरकार नृत्यरत स्वांग न केवल ग्रामीणों का मनोरंजन करते हैं बल्कि शिक्षित और सवर्ण भी इसे देखकर आनंदित हो जाते है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 31 Jan 2020 03:19 PM (IST)
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घुंघरुओं पर झंकारती लोकप्रिय लोकनृत्य 'राई' की धमक अब विदेश में मचा रही धूम

कटनी, रजनीश बाजपेई। बुंदेलखंड के परंपरागत और लोकप्रिय लोकनृत्य राई की धमक अब विदेश में भी जा पहुंची है। हालांकि यह बानगी भर है क्योंकि देश में इसके संरक्षण को पर्याप्त प्रयास किया जाना शेष है। गुजरात में जो लोकप्रियता गरबा की है, वही बुंदेलखंड में कभी राई की हुआ करती थी। लेकिन समय के साथ इसमें कमी आती गई। कभी यहां राई नृत्य बारहों महीने मनोरंजन का साधन हुआ करता था। अपनी ही शैली, अपना संगीत और अपनी अलग विधा। राई के गीत खयाल, स्वांग आदि और भी कई प्रकार के होते हैं।

मृदंग की थाप पर घुंघरुओं की झंकारती राई और उसके साथ नृत्यरत स्वांग न केवल ग्रामीणों का मनोरंजन करते हैं, बल्कि शिक्षित और सवर्ण भी इसे देखकर आनंदित हो जाते हैं। इस कला के पुजारी बुंदेलखंड में बहुतायत हैं, लेकिन इन्हें अब प्रोत्साहन की दरकार है ताकि इस लोककला को संरक्षण मिल सके। कुछ युवाओं ने इसे अपनाया है, जो इसे आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं कटनी, मप्र की युवा नृत्यांगना ज्ञानेश्वरी, जिनकी बदौलत अब राई विदेश में तक धूम मचा रहा है।

दरअसल, बुंदेलखंड में राई नृत्य बेड़नियां (बेड़िया जनजाति की महिलाएं) करती आ रही हैं। आम परिवारों की महिलाओं ने इससे दूरी ही बनाए रखी। जैसे-जैसे आधुनिकता आई बेड़नियों का यह नाच देखने वालों की संख्या और इसकी सामाजिक स्वीकार्यता घटती गई। वहीं, बेड़िया जनजाति की दुर्दशा ने भी इस लोककला को क्षति पहुंचाई। इसे बचाने के लिए बुंदेलखंड में अलगअलग क्षेत्रों में लंबे समय से प्रयास किए जा रहे हैं।

छतरपुर जिले के बसारी में पिछले 30 साल से बुंदेली उत्सव का आयोजन होता है। जिसमें राई नृत्य को मंच प्रदान किया जाता है। इसके अलावा दमोह जिले के हटा में बुंदेली मेला में पिछले 13 साल से राई नृत्य का आयोजन मंच पर किया जाता है। सागर विश्वविद्यालय में पदस्थ रहे स्व. डॉ. विष्णु पाठक के माध्यम से राई को विदेशों में भी प्रचारित-प्रसारित किया गया।

बेड़िया जाति की महिलाओं का मानना है कि पहले तो राई नृत्य करने वालीं महिलाओं को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था, लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार हो रहा है। अब राई को मंच मिलने लगे हैं। जहां सम्मान जनक स्थिति में राई को प्रस्तुत किया जाता है। हालांकि अभी भी बहुत कुछ बाकी है। शासन स्तर पर इसके उत्थान के प्रयास नहीं हो रहे हैं।

ज्ञानेश्वरी नायडू (19) पिछले कुछ सालों से राई लोकनृत्य को संरक्षित करने में लगी हुईं हैं। कहती हैं, जैसे में बेड़नी नहीं हूं, लेकिन मैंने इस लोकनृत्य को अपनाया। अब मैं बच्चों पर फोकस कर रही हूं, जिससे आने वाले समय में राई नृत्य का दायरा बढ़ सके। अब तक करीब 40 हजार लोगों को राई से जोड़ चुकी हूं...। हटा में आयोजित होने वाले बुंदेली मेला के सूत्रधार पुष्पेंद्र हजारी ने बताया कि 13 साल से हटा में बुंदेली मेला का आयोजन होता है। इसमें राई अब भी सबसे लोकप्रिय है। बेड़नियों को नचाने की प्रथा को समाज ने जब कुरीति मानना शुरू कर दिया तो अन्य नृत्यप्रेमियों ने इसे अपनाना शुरू किया। यह राग भैरवी में आता है।

अपनी संस्कृति को बचाने का ज्ञानेश्वरी का प्रयास काफी सराहनीय है। इसे आगे बढ़ाने के लिए शासन स्तर पर प्रयास करेंगे। प्रशासन की ओर से ज्ञानेश्वरी व इससे जुड़े अन्य कलाकारों का सम्मान भी किया जाएगा।

-एसबी सिंह, कलेक्टर, कटनी

जिले की बेड़िया जनजाति के उत्थान के लिए शासन स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। इनकी कला की कद्र की जाती है। राई को प्रचारित करने के प्रयास किए जाएंगे।

-मूलचंद्र वर्मा, अपर कलेक्टर सागर

बेड़िया जनजाति और बुंदेलखंड की ख्यात लोकनृत्य कला राई को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे। इसको लेकर चर्चा हो रही है। जल्द ही प्रस्ताव तैयार किया जाना है। वर्तमान में जो संस्था और लोग इसको सहेजने और संवारने में लगे हैं उनसे भी संपर्क कर मदद की जाएगी।

-प्रहलाद पटेल, संस्कृति राज्यमंत्री