वंचितों को हक देता CAA; यह नागरिकता देने का कानून है, न कि छीनने का
नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए लागू होने के बाद पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू जैन बौद्ध सिख पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता मिलना सुलभ हो गया है। सीएए में खासियत यह है कि पहले नागरिकता हासिल करने के लिए भारत में रहने की अवधि 11 वर्ष थी अब इसे घटाकर पांच साल कर दिया गया है।
ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए लागू होने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता मिलना सुलभ हो गया है। हालांकि, यह नागरिकता उन्हें ही मिलेगी, जो 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आए हैं।
सीएए में खासियत यह है कि पहले नागरिकता हासिल करने के लिए भारत में रहने की अवधि 11 वर्ष थी, अब इसे घटाकर पांच साल कर दिया गया है। नागरिकता अधिनियम, 1955 के मुताबिक, अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती थी। इसमें उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया था, जो वर्षों पहले बिना वीजा और पासपोर्ट के भारत की सीमा में घुस आए थे। ऐसे में उन्हें या तो जेल हो सकती थी या उनके मूल देश वापस भेजा जा सकता था, लेकिन वर्ष 2019 के संशोधन अधिनियम में मुस्लिमों को छोड़कर शेष समुदाय के लोगों को छूट दी गई है। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि भारत में वैध दस्तावेज के बगैर भी गैर मुस्लिम शरणार्थी पाए जाते हैं तो उन्हें न तो जेल भेजा जाएगा, न ही निर्वासित किया जाएगा, बल्कि मांगने पर उन्हें नागरिकता दी जाएगी।
सवाल यह है कि क्या सीएए देश के मुसलमानों के साथ भेदभाव कर रहा है? क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए मुसलमानों को इस अधिनियम में स्थान नहीं देने से संविधान की भावना को ठेस पहुंची है? संविधान के भाग-तीन में मौलिक अधिकारों के भीतर अनुच्छेद-15 में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध है और यह केवल भारतीय नागरिकों पर लागू है। जबकि अनुच्छेद-14 विधि के समक्ष समता और विधियों के समान संरक्षण की बात कहता है और यह भारत के नागरिकों के साथ गैर नागरिकों पर भी लागू होता है।
पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के मुस्लिम विशेष को नागरिकता देना या न देना अनुच्छेद-14 का मामला न होकर संविधान के भाग-दो में निहित अनुच्छेद-11 के तहत बने नागरिकता अधिनियम, 1955 का मामला है, जो केवल नागरिकता को निर्धारित करता है, न कि भेदभाव को। अब तक इस अधिनियम में पांच बार संशोधन हो चुका है। वैसे भारत में किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव संविधान का उल्लंघन माना जाता है, लेकिन घुसपैठिए इसके अपवाद हैं। रही बात मुसलमानों को शामिल नहीं करने की तो इसकी वजह शोषण और प्रताड़ना से जोड़कर देखा जाना चाहिए। चूंकि तीनों देश-पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश इस्लामिक हैं। ऐसे में वहां धार्मिक रूप से शोषण और प्रताड़ना मुसलमानों का नहीं, बल्कि हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई जैसे अल्पसंख्यकों का हो सकता है। ऐसे में सीएए से उन्हें अलग करना किसी प्रकार का पक्षपात नहीं लगता है। वैसे भी दुनिया में पचास से अधिक देश घोषित रूप से इस्लामिक हैं। वहां मुस्लिमों को शरण मिल सकती है। ऐसे में इस्लामिक देशों के हिंदू समेत अन्य धर्मों के लोगों को सीएए में स्थान देना पंथनिरपेक्षता का ही परिचायक है। भारतीय मुसलमानों को सीएए कोई चोट नहीं पहुंचाता है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि देश में नागरिक कौन है और कौन नहीं, इसका पता होना चाहिए।
सरकार की ओर से यह दलील पूरी तरह रही है कि यह नागरिकता देने का कानून है न कि छीनने का। ऐसे में संविधान का तनिक मात्र भी इससे उल्लंघन नहीं होता है। देखा जाए तो यह काल और परिस्थिति के बदलावस्वरूप लिया गया एक फैसला है, जिसके चलते सरकार उन्हें नागरिक बनाने का प्रयास कर रही है, जो उक्त देशों के गैर मुस्लिम हैं और आजादी से पहले वे भी भारत के हिस्सा थे। इससे 1947 का अधूरा काम अब पूरा किया जा रहा है। बावजूद इसके बड़ा सवाल यह है कि हिंदुओं को तो नागरिकता मिल जाएगी, पर असम के भीतर जो छह लाख मुस्लिम हैं उनका क्या होगा। ऐसे सवाल पर एक कार्यक्रम में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि भारत मानवता वाला देश है इसका पूरा ख्याल रखा जाएगा। भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची में आने वाले पूर्वोत्तर भारत के कई इलाकों को इससे मुक्त रखा गया है। असम के कुछ क्षेत्र समेत इनरलाइन परमिट वाले राज्य इस अधिनियम से बाहर हैं, जबकि छठी अनुसूची के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के कुछ क्षेत्र इसमें शामिल हैं। हालांकि, सीएए के चलते भारत की आबादी पर प्रभाव पड़ेगा। तीन पड़ोसी देशों से करीब 32 हजार लोग भारत में लंबी वीजा अवधि पर रह रहे हैं जिन्हें तुरंत फायदा होगा। इसमें 25 हजार हिंदू, 58 सौ सिख, 55 ईसाई, दो बौद्ध, दो पारसी शामिल हैं।
सीएए नागरिकता देने का कानून है, न कि छीनने का। ऐसे में संविधान का तनिक मात्र भी इससे उल्लंघन नहीं होता है, अपितु यह पीड़ितों को सहारा देने वाला कदम है।(लेखक सुशील कुमार सिंह निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन)