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Supreme Court: क्या जेल में बंद व्यक्ति मंत्री बना रह सकता है, सुप्रीम कोर्ट के सामने बड़ा सवाल

सुप्रीम कोर्ट से न्यायिक हिरासत में जेल काट रहे तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी को मंत्री पद से हटाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट अगर इस मामले में विस्तृत सुनवाई कर फैसला देता है तो भविष्य के लिए ऐसे मामलों में व्यवस्था तय हो जाएगी और गिरफ्तारी और जेल के बावजूद व्यक्ति को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बनाए रखने की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।

By Jagran NewsEdited By: Babli KumariUpdated: Sun, 19 Nov 2023 08:35 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट के सामने आया बड़ा सवाल (फाइल फोटो)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में फिर ये सवाल पहुंचा है कि क्या गिरफ्तार हुआ, जेल में बंद व्यक्ति मंत्री बना रह सकता है। इस बार मामला मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए हैं तमिलनाडु के मंत्री सेन्थिल बालाजी को मंत्री पद से हटाने की मांग का पहुंचा है। मद्रास हाई कोर्ट से सेंथिल बालाजी को मंत्री पद से हटाने का आदेश न मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर उन्हें हटाने की मांग करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।

सुप्रीम कोर्ट अगर इस मामले में विस्तृत सुनवाई कर फैसला देता है तो भविष्य के लिए ऐसे मामलों में व्यवस्था तय हो जाएगी और गिरफ्तारी और जेल के बावजूद व्यक्ति को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बनाए रखने की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।

जेल जाने के बाद भी कई मंत्री पदों पर रहे काफी दिनों तक बरकरार

सेंथिल बालाजी से पहले महाराष्ट्र में नबाब मलिक और दिल्ली में सत्येन्द्र जैन जैसे कई मामलों में जेल जाने के बावजूद मंत्री पद काफी दिनों तक बरकरार रखा गया था। जबकि सरकारी कर्मचारियों के मामले में गिरफ्तारी के बाद स्वत: निलंबित होने का कानूनी प्रविधान है। न्यायिक हिरासत में जेल में बंद तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी को मंत्री पद से हटाने की मांग करने वाले याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल सेंथिल बालाजी के बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बनाए रखने से सहमत नहीं थे। लेकिन राज्य सरकार ने बालाजी के मंत्रालय उनके खराब स्वास्थ्य को देखते हुए दूसरे मंत्रियों को पुर्नआवंटित कर दिया और उन्हें बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बना रहने दिया।

अनुच्छेद 154 व 163 तहत मंत्रियों को हटाने का प्रावधान 

इसके बाद राज्यपाल की ओर से 29 जून को पत्र जारी कर सेंथिल बालाजी को तत्काल प्रभाव से मंत्री पद से हटा दिया। राज्यपाल ने ऐसा संविधान के अनुच्छेद 154 व 163 में मिली शक्तियों के तहत ऐसा किया। याचिका में कहा गया है कि उसी दिन देर रात राजभवन से एक और पत्र जारी हुआ जिसमें सेंथिल बालाजी को तत्काल प्रभाव से पद से हटाने के आदेश को फिलहाल टाल दिए जाने की बात कही गई और कहा गया कि गृहमंत्रालय को एडवोकेट जनरल से राय लेने की सलाह दी गई है। याचिका में कहा गया है कि ऐसा करना मनमाना, अवैधानिक और संविधान के खिलाफ है, राज्यपाल अपना आदेश वापस नहीं ले सकते क्योंकि यहां पर वह पदेन अधिकारी है।

सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व आदेश पर मद्रास हाई कोर्ट ने की चर्चा 

मद्रास हाई कोर्ट ने याचिका में मांगी गई राहत पर आदेश देने के बजाए मुख्यमंत्री को सलाह दी है कि वह न्यायिक हिरासत में रह रहे सेंथिल बालाजी को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बनाए रखने पर निर्णय लें। दरअसल मद्रास हाई कोर्ट ने पांच सितंबर को रवि की याचिका व कुछ अन्य लोगों की याचिका पर एक साथ फैसला सुनाया था। उस फैसले में हाई कोर्ट ने मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था, सुशासन, सार्वजनिक नैतिकता और संवैधानिक नैतिकता पर विस्तार से विचार किया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व आदेश पर भी चर्चा की है।

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के मनोज नरूला मामले में दिये फैसले को उद्धत किया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सुशासन (गुड गर्वनेंस) सिर्फ अच्छे लोगों के हाथ में है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि क्या अच्छा है क्या बुरा है यह अदालत को तय नहीं करना है, कोर्ट हमेशा शासन प्रशासन में अच्छाई पर संवैधानिक लोकाचार की ओर इंगित करता है, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को उसे संरक्षित करने की याद दिलाता है।

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