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आजाद भारत की लक्ष्मीबाई..कैप्टन लक्ष्मी सहगल

कानपुर [शिक्षा संवाददाता]। लक्ष्मी पार्वती, सरस्वती का रूप लक्ष्मी सहगल, माहामाता मानवता के अनुरूप लक्ष्मी सहगल, जिनमें वृद्धों की गरिमा, जिनमें युग की तरुणाई, आजाद हिंद सेनानी, जिससे आजादी आई। जिनमें नेता सुभाष चन्द्र बोस की है सच्ची शक्ति समाई, कैप्टन लक्ष्मी में बसती है स्वयं लक्ष्मी बाई।

By Edited By: Updated: Mon, 23 Jul 2012 04:54 PM (IST)
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कानपुर [शिक्षा संवाददाता]। लक्ष्मी पार्वती, सरस्वती का रूप लक्ष्मी सहगल, माहामाता मानवता के अनुरूप लक्ष्मी सहगल, जिनमें वृद्धों की गरिमा, जिनमें युग की तरुणाई, आजाद हिंद सेनानी, जिससे आजादी आई। जिनमें नेता सुभाष चन्द्र बोस की है सच्ची शक्ति समाई, कैप्टन लक्ष्मी में बसती है स्वयं लक्ष्मी बाई।

कविता की ये पंक्तिया पद्मविभूषण कैप्टन [डॉ.] लक्ष्मी सहगल के व्यक्तित्व व कृतित्व को रेखाकित करने वाली हैं। देश के साथ कानपुर शहर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर रानी झासी रेजीमेंट की स्थापना एवं उसका संचालन करने वाली, सच्ची राष्ट्रभक्त व समाजसेवी लक्ष्मी सहगल का कर्जदार है। यहा की मिंट्टी में उनके त्याग व तपस्या की खुशबू हर कहीं बिखरी हुई है। जीवन के ठाटबाट को त्याग कर दलितों, शोषितों, मेहनतकशों, उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के लिए जीने मरने वाली लक्ष्मी सहगल ने लाखों लोगों को स्वास्थ्य, सुरक्षा, साहस व आत्मविश्वास की नेमत दी है। इसी शहर में उन्होंने दंगों के दौरान दोनों संप्रदायों के बीच जाबाजी से जाकर उन्हें समझाने के साथ घायलों का इलाज करके मानवता की सेवा की जो मिसाल रखी वह हमेशा आने वाले पीढि़यों को प्रेरित करती रहेगी। मजदूर आदोलनों में सड़क पर सोने से लेकर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने तक लक्ष्मी सहगल का पूरा जीवन संघर्ष व देश भक्ति की अप्रतिम गाथा है।

लक्ष्मी सहगल

जन्म:- 24 अक्टूबर, 1914, मद्रास

बचपन का नाम:-लक्ष्मी स्वामीनाथन

पिता:- एस. स्वामाीनाथन

मा:-अन्ना कुंट्टी

कमाडर:-आजाद हिन्द फौज के रानी झासी रेजीमेंट की

शिक्षा:-एमबीबीएस [1938], मद्रास मेडिकल कालेज

कर्मस्थल:-मद्रास, सिंहापुर, रंगून, वर्मा, कोलकाता, दिल्ली व कानपुर

विवाह:-1946 में कर्नल पीके सहगल के साथ

आजाद हिंद फौज में शमिल हुई 2 जुलाई, 1943 को

कम्युनिष्ट पार्टी में आई:-1971 में

पद्मविभूषण सम्मान:-1998

चिकित्सक से सेनानी का सफर

इतिहास गवाह है कि 1941 में जब युद्ध के बादल छा रहे थे, लक्ष्मी सहगल सिंगापुर में मलाया के जंगलों में मजदूरों का इलाज कर रहीं थीं। युद्ध की आशका से लोग अपने देश लौटने लगे परंतु लक्ष्मी नहीं लौटीं और युद्ध के दौरान वहीं भूमिगत रह कर घायल सैनिकों की सेवा करती रहीं। युद्ध की विभीषिका से रूबरू हुईं लक्ष्मी सहगल को अनुभव हुआ कि अंग्रेजों के मुकाबले जापानियों का भारतीयों के प्रति व्यवहार ज्यादा सहानुभूति पूर्ण था। 19 फरवरी 1942 को नेता सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया। दो जुलाई 1943 को नेता जी सिंगापुर आये। लक्ष्मी सिंगापुर में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के भाषण से इतना प्रभावित हुईं कि उनके आह्वान पर आजाद हिंद फौज में शामिल हो गईं। उन्होंने 20 महिलाओं को तैयार करके 303 बोर की राइफलों के साथ नेताजी का गार्ड आफ आनर किया तो नेताजी ने उन्हें महिला रेजीमेंट की बागडोर सौंप दी। रेजीमेंट का नाम रखा बया रानी झासीबाई रेजीमेंट। लक्ष्मी की सक्त्रियता से धीरे धीरे रेजींमेंट में महिलाओं की संख्या 150 हो गई।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ यात्राएं

लक्ष्मी सहगल नेताजी के साथ बैंकाक की यात्रा की। वह थाईलैंड की महारानी से मिलीं। बैंकाक से वह रंगून पहुंचीं। वहा भारतीयों की संख्या अधिक होने से उन्हें भारत में होने का अहसास हुआ। यहीं पर उनकी भेंट मानवती आर्या से हुई। 15 जनवरी, 1944 को उन्होंने रंगून में ही एक नई महिला रेजीमेंट शुरू की। उनके जुझारूपन, निर्भीकता, राष्ट्रभक्ति व नेतृत्व क्षमता को देख कर उन्हें 30 मार्च-1944 को रेजीमेंट में कमीशड अफसर का पद मिला। इस रेजीमेंट ने अंग्रेजों से दो दो हाथ किए।

न झुकीं न हारीं

द्वितीय विश्वयुद्ध में जब जर्मनी की युद्ध में हार हुई। तो लक्ष्मी को वर्मा जाना पड़ा। 1 जून 1945 को उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया। तमाम दबावों के बावजूद लक्ष्मी झुकी नहीं। परिस्थितिया बदलीं, नेता जी की विमान दुघर्टना में मौत की खबर आई इससे उन्हें उन्हें दुख जरूर हुआ लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इसी के बाद वह मद्रास वापस आ गई। बाद में उन्होंने दिल्ली में कर्नल पीके सहगल के साथ विवाह किया और कानपुर आ कर चिकित्सा सेवा करने लगीं।

शोषितों की सेवा की मिसाल

देश के बंटवारे के दौरान हर कहीं दंगे हुए। कानपुर भी दंगों की चपेट में था। उन दिनों लोग घरों में दुबके रहते थे लेकिन कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने दंगों के बीच जाकर लोगों को जोडऩे की कोशिश की। 1948-49 के बाद उन्होंने गाव-गाव एवं शहर-शहर जाकर मजदूरों, दलितों, मरीजों व पीड़ितों की हर तरह से सेवा की। उन्होंने आदोलन में साम्प्रदायिकता, अंधविश्वास, जातिवाद को निशाना बनाया। इस आदोलन को तेज करने के लिए उन्होंने खुद को वामपंथी आदोलन से जोड़ लिया। मिल बंदी को लेकर मजदूरों के पक्ष में खड़ी हुईं तो गरीब महिलाओं की समस्याओं को अपनी समस्या समझ कर दूर किया।

कोट:-

वह ऐसी देशभक्त थीं जिन्होंने देश की सत्ता से कभी कुछ नहीं चाहा। जातपात, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्रवाद, भाषावाद से ऊपर उठकर गरीबों की सेवा करने वाली लक्ष्मी सहगल का पूरा जीवन त्याग व तपस्या का जीवन रहा है। जय हिन्द की पर्याय बनीं लक्ष्मी जैसे व्यक्तित्व कभी मरते नहीं, वे हमारे बीच हमेशा जीवंत रहेंगी।

-पद्मश्री गिरिराज किशोर, साहित्यकार

देश प्रेम और साहस का ऐसा अद्भुत समन्वय बिरले लोगों में होता है। सुभाष की सेना की इस महानायक ने युवावस्था को एक सैनिक की तरह प्रौढ़ावस्था को समाज सेविका नर्स की तरह और वृद्धावस्था को निराश्रितों की वत्सला माँ की तरह जिया। वह मानव के साथ साथ मानवता की भी चिकित्सक थीं।

-मानवती आर्या, स्वतंत्रता सेनानी

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