Cash For Vote Case: क्या था रिश्वत कांड और 1998 का 'सुप्रीम' फैसला, SC ने अब क्यों पलटा अपना ही 26 साल पुराना निर्णय
Cash For Vote Case सुप्रीम कोर्ट ने नरसिम्हा राव मामले को आज पलटते हुए कहा कि अगर कोई विधायक या सांसद नोट लेकर वोट या भाषण देता है तो उसपर कार्रवाई होगी। कोर्ट ने रिश्वत लेने पर सांसद या विधायक को अभियोजन से छूट देने के 1998 के फैसले को पलट दिया। आखिर ये मामला क्या है और इस पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया था आइए जानते हैं...
जागरण डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Cash For Vote Case सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए वोट के बदले नोट मामले में अपना ही फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने नरसिम्हा राव मामले में कहा कि अगर कोई विधायक या सांसद नोट लेकर वोट या भाषण देता है तो उसपर कार्रवाई होगी।
शीर्ष कोर्ट की सात सदसीय पीठ ने रिश्वत लेने पर सांसद या विधायक को अभियोजन से छूट देने के 1998 के फैसले को पलट दिया।
नरसिम्हा राव मामला आखिर क्या है और इस पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया था, आइए जानते हैं...
क्या था 1993 का रिश्वत कांड?
- ये नरसिम्हा राव मामला झारखंड मुक्ति मोर्चा घूसकांड से जुड़ा है। इसी मामले ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। दरअसल, साल 1991 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन वो बहुमत से चूक गई।
- तमिलनाडु में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर से कांग्रेस को 487 सीटों में से 232 सीटें मिली, लेकिन बहुमत का आंकड़ा 272 का था।
- इसके बाद पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री चुना गया। हालांकि, राव का कार्यकाल बहुत ही कठिनाइओं भरा था। एक तरफ देश में आर्थिक संकट था तो दूसरी तरफ राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ लिया था। 1992 में बाबरी मस्जिद कांड के बाद माहौल काफी बिगड़ा।
- 1993 में राव सरकार के खिलाफ सीपीआई (एम) के एक सांसद अविश्वास प्रस्ताव ले आए। उस समय कांग्रेस की गठबंधन सरकार के पास 252 सीटें थी, लेकिन बहुमत के लिए 13 सीटें कम थीं।
- इसके बाद 28 जुलाई 1993 को जब अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो उसके पक्ष में 251 वोट तो विरोध में 265 वोट पड़े। राव सरकार उस समय गिरने से बच गई, लेकिन तीन साल बाद वोट के बदले नोट का मामला सामने आ गया।
क्या था झारखंड मुक्ति मोर्चा घूसकांड से लिंक
जब वोट के बदले नोट का मामला सामने आया तब पता चला कि 1993 के अविश्वास प्रस्ताव में जेएमएम और जनता दल के 10 सांसदों ने इसके खिलाफ वोट डाले थे। इसके बाद सीबीआई ने आरोप लगाया कि सूरज मंडल, शिबू सोरेन समेत जेएमएम के 6 सांसदों ने वोट के बदले रिश्वत ली थी।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का 1998 का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने पर कोर्ट की पांच सदसीय पीठ ने 1998 में फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत संसद में दिए वोट के लिए किसी भी सांसद को अदालती कार्रवाई के लिए उत्तरदायी नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इसके बाद सभी मामले को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अब पलटा अपना फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अब अपना ही फैसला पलटते हुए कहा कि सांसदों और विधायकों की रिश्वतखोरी लोकतंत्र को नष्ट करने का काम करेगी। किसी को भी रिश्वतखोरी करने के बाद कानूनी कार्रवाई से बचने का विशेषाधिकार नहीं है, चाहे वो सांसद हो या विधायक।