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Cauvery Water Dispute: 140 साल पुराना है कावेरी नदी जल विवाद, कई समझौतों के बाद भी आमने-सामने हैं दो राज्य

कावेरी नदी का जल बंटवारे का मुद्दा एक बार फिर टूल पकड़ रहा है। तमिलनाडु और कर्नाटक के लोग लगभग पिछले 140 सालों से इस मुद्दे को लेकर आपस में टकराते नजर आए हैं। तमिलनाडु ने कर्नाटक से 10 हजार क्यूसेक पानी और छोड़ने की मांग की लेकिन कर्नाटक सरकार ने इनकार कर दिया। मामले की जड़ यह है कि दोनों राज्यों में पानी की कमी की समस्या है।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Fri, 29 Sep 2023 05:55 PM (IST)
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140 साल पुराना है कावेरी जल विवाद
ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। Cauvery Water Dispute: कावेरी नदी का जल बंटवारे का मुद्दा एक बार फिर टूल पकड़ रहा है। इसको लेकर आज कर्नाटक में बंद का आह्वान किया गया। तमिलनाडु और कर्नाटक के लोग लगभग पिछले 140 सालों से इस मुद्दे को लेकर आपस में टकराते नजर आए हैं। यह मामला निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया, लेकिन अब तक यह विवाद सुलझ नहीं सका है।

ऐसे में बहुत से लोगों के मन में सवाल आ रहा होगा कि आखिर एक नदी दो राज्यों के बीच सौ साल से भी लंबे समय तक विवाद का कारण कैसे बन सकता है। इस खबर में हम आपको कावेरी नदी जल विवाद के बारे में जानकारी देंगे।

क्या है तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच का कावेरी जल विवाद?

कावेरी जल विवाद लगभग 140 साल से भी ज्यादा पुराना विवाद है। इस नदी का विवाद सबसे पहले 1881 में शुरू हुआ था। दरअसल, इस दौरान कर्नाटक (उस समय मैसूर के नाम से जाना जाता था) ने नदी पर बांध बनाने की मांग की, लेकिन तमिलनाडु ने इसका विरोध किया। यह विवाद लगभग 40 सालों तक चला और फिर ब्रिटिश सरकार ने इसमें हस्तक्षेप किया।

1924 में ब्रिटिश सरकार ने कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच एक समझौता कराया, जिसके तहत तमिलनाडु का 556 हजार मिलियन क्यूबिक फीट और कर्नाटक का 177 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी पर अधिकार हुआ। मालूम हो कि यह नदी कर्नाटक के कोडागू जिले से निकलती है और तमिलनाडु से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है, जबकि इसका कुछ हिस्सा केरल और पुडुचेरी में भी है।

जब पुडुचेरी और केरल भी इस विवाद में कूदा, तो इसके लिए 1972 में एक कमेटी गठित की गई। इस कमेटी ने 1976 में चारों राज्यों के बीच एक समझौता कराया। इस समझौते के बाद भी नदी जल को लेकर विवाद चलता रहा था। इसे बाद, 1986 में तमिलनाडु ने अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम के तहत एक ट्रिब्यूनल की मांग की। दरअसल, कर्नाटक का मानना है कि ब्रिटिश शासन के दौरान लिया गया फैसला न्यायसंगत नहीं है, जबकि तमिलनाडु पुराने समझौते को तर्कसंगत मानता है।

सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप से किया इनकार

मामला कई साल पहले ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था। 22 सितंबर को शीर्ष अदालत ने कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच चल रहे विवाद में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इसके बाद कहा कि सीडब्ल्यूआरसी और कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के पास मामले पर निर्णय लेने के लिए विशेषज्ञ हैं। विशेषज्ञ निकायों ने पहले कर्नाटक को 13 से 27 सितंबर तक तमिलनाडु को प्रतिदिन 5,000 क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए कहा था।

तमिलनाडु ने कर्नाटक से 10 हजार क्यूसेक पानी और छोड़ने की मांग की, लेकिन कर्नाटक सरकार ने इनकार कर दिया।  कर्नाटक सरकार का कहना है कि इस साल अपर्याप्त मानसूनी बारिश के कारण स्थिति काफी ज्यादा खराब हो गई है।

कर्नाटक के अधिकारियों के अनुसार, इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून की विफलता के कारण, कावेरी बेसिन के चार जलाशयों में अपर्याप्त भंडारण है और राज्य को पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और राज्य में सिंचाई के लिए भी पानी नहीं है।

मामले की जड़ यह है कि दोनों राज्यों में पानी की कमी की समस्या है। चेन्नई के कुछ हिस्सों सहित तमिलनाडु के कई जिलों में पीने के पानी की काफी कमी रहती है।

इसको लेकर कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन वहां से राज्य सरकार को झटका लगा, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। अब कर्नाटक के किसान और संगठन तमिलनाडु को पानी दिए जाने के खिलाफ हैं और इसके कारण बंद का आह्वान कर रहे हैं।

कावेरी जल नियमन समिति ने मंगलवार को बैठक में विचार-विमर्श करने के बाद कर्नाटक को 28 सितंबर से 28 अक्टूबर तक 3000 क्यूसेक पानी बिलीगुंडुलु में छोड़ने की सिफारिश की है।

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कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने बुधवार को कहा कि तमिलनाडु को आज से 15 अक्टूबर तक 3,000 क्यूबिक फीट प्रति सेकंड (क्यूसेक) की दर से पानी छोड़ने के कावेरी जल विनियमन समिति (CWDT) के निर्देश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। सिद्धारमैया ने कहा कि उन्होंने राज्य की कानूनी टीम से बात की है, जिसने राय दी है कि इसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी जानी चाहिए।

कर्नाटक में बंद का आह्वान

CWDT के इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने पूरे राज्य में आज बंद का आह्वान किया है। इसको लेकर राज्य भर के लगभग 1900 से ज्यादा छोटे-बड़े संगठनों ने अपना पूर्ण समर्थन दिया है। इस बंद के लिए ट्रांसपोर्ट यूनियन, स्कूल, कॉलेज, दुकान, मॉल आदि भी बंद किए गए हैं।

कर्नाटक बंद के कारण केंपेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट ने आने-जाने वाली कुल 44 उड़ानें भी रद्द कर दी गई। राज्य परिवहन निगम ने भी मैसूर, मांड्या और चामराजनगर जिलों में अपनी बस सेवाएं रोक दी। राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में केवल 59.88 बसें ही संचालन में है। राज्य के कई हिस्सों में वीरानी छा गई थी और हर तरफ सन्नाटा देखने को मिला।

यहां बिंदुओं में समझें कावेरी जल विवाद

1.कर्नाटक में हरंगी और हेमावती बांधों का निर्माण हरंगी और हेमावती नदियों पर किया गया है, जो कावेरी नदी की सहायक नदियां हैं। कृष्णा राजा सागर बांध का निर्माण कर्नाटक में मुख्य कावेरी नदी पर इन दो बांधों के डाउनस्ट्रीम में किया गया है। कर्नाटक में काबिनी जलाशय कावेरी नदी की सहायक नदी काबिनी पर बनाया गया है, जो कृष्णा सागर जलाशय में मिलती है।

मेट्टूर बांध का निर्माण तमिलनाडु में कावेरी की मुख्य धारा पर किया गया है। केंद्रीय जल आयोग ने कावेरी के साथ काबिनी और मेट्टूर बांध के संगम के बीच मुख्य कावेरी नदी पर कोलेगल और बिलीगुंडुलु नाम से दो जी एंड डी स्थल स्थापित किए हैं। बिलीगुंडुलु जी एंड डी साइट मेट्टूर बांध से लगभग 60 किमी नीचे है जहां कावेरी नदी कर्नाटक और तमिलनाडु के साथ सीमा बनाती है।

2. भारत सरकार ने अंतरराज्यीय कावेरी जल और नदी बेसिन के संबंध में तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुडुचेरी राज्यों के बीच जल विवाद का निपटारा करने के लिए 2 जून, 1990 को कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) का गठन किया।

3. कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) ने 25 जून, 1991 को एक अंतरिम आदेश पारित कर कर्नाटक राज्य को कर्नाटक में अपने जलाशय से पानी छोड़ने का निर्देश दिया।

4. चार सप्ताह में चार समान किस्तों में कर्नाटक की ओर से पानी जारी किया जाना है। यदि किसी सप्ताह में आवश्यक मात्रा में पानी छोड़ना संभव न हो तो उस सप्ताह के पानी को अगले सप्ताह में जारी किया जाएगा।

5.उक्त आदेश पर विचार करने के बाद, भारत के राष्ट्रपति ने 27 जुलाई, 1991 को भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के खंड (1) के तहत, निम्नलिखित पर विचार करने और रिपोर्ट करने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय को भेजा।

6. उच्चतम न्यायालय ने 22 नवंबर, 1991 को उपरोक्त प्रश्नों पर अन्य बातों के साथ-साथ यह राय दी कि;

ट्रिब्यूनल के दिनांक 25 जून, 1991 के आदेश में अंतर-राज्य जल विवाद अधिनियम, 1956 की धारा 5(2) के अर्थ के भीतर रिपोर्ट और पुरस्कार शामिल हैं और इसलिए, उक्त आदेश को प्रभावी करने के लिए, इसे इस अधिनियम की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार द्वारा आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया जाना आवश्यक है।

7. इसके मद्देनजर, दिनांक 10 दिसंबर, 1991 को सीडब्ल्यूडीटी के 25 जून, 1991 के अंतरिम आदेश को प्रभावी बनाने और इस विवाद के विभिन्न पक्षों द्वारा इसे बाध्यकारी बनाने और लागू करने के लिए राजपत्र में अधिसूचित किया गया। आईएसआरडब्ल्यूडी अधिनियम, 1956 की धारा 6 के तहत भारत के और उनके द्वारा इसे प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।

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सोर्स: इस लेख में दिए गए तथ्य समाचार एजेंसी और जल मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग द्वारा दिए गए कावेरी जल विवाद की जानकारी पर आधारित है।