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सियासी मुद्दा बन सकती है संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता, 'CBI पिंजरे में बंद तोता' वाली टिप्पणी पर गरमाई सियासत

CBI News पिछले दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने सीबीआई पर टिप्पणी की उस पर खुद सीबीआई की ओर से तो कुछ नहीं कहा गया लेकिन उपराष्ट्रपति धनखड़ ने किसी का नाम लिए बगैर यह जरूर कह दिया कि संस्थाओं को आपस में लय ताल के साथ काम करना चाहिए।

By Jagran News Edited By: Piyush Kumar Updated: Mon, 16 Sep 2024 11:45 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई पर टिप्पणी करने के मामले में गरमाई सियासत।(फोटो सोर्स: जागरण)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सीबीआई को पिंजरे का तोता बताने की होड़ तो कई दशकों से चल रही है, लेकिन इस बेरोकटोक चली धारणा ने अब निशाने पर अन्य संवैधानिक संस्थाओं को भी ले लिया है। विपक्ष के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के मामले में हुई कार्रवाई के बाद राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में उल्टे संवैधानिक संस्थाओं को ही कठघरे में खड़ा कर दिया गया है।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गत दिवस मुंबई के एलफिंस्टोन टेक्निकल हाईस्कूल में संविधान मंदिर के उद्घाटन अवसर पर इसे लेकर चिंता भी जताई। उन्होंने पैरोकारी तो संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता को लेकर की है, लेकिन जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सुगबुगा रही हैं, उससे अंदेशा है कि यह मुद्दा भी राजनीतिक हलकों में विपक्ष के द्वारा गर्माया जा सकता है।

संस्थाओं को आपस में लय ताल के साथ काम करना चाहिए: उपराष्ट्रपति 

अक्सर सियासी निशाने पर रही देश की शीर्ष जांच एजेंसी सीबीआई को लेकर लगातार गढ़े जा रहे नैरेटिव के बीच जिस तरह पिछले दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने सीबीआई पर टिप्पणी की, उस पर खुद सीबीआई की ओर से तो कुछ नहीं कहा गया लेकिन उपराष्ट्रपति धनखड़ ने किसी का नाम लिए बगैर यह जरूर कह दिया कि संस्थाओं को आपस में लय ताल के साथ काम करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग और जांच एजेंसियां कठिन परिस्थितियों में भी कर्तव्य निभाती हैं। उनकी इस तरह से समीक्षा उनका मनोबल गिरा सकती है। राजनीतिक बहस को आगे बढ़ा सकती है। हमें अपने संस्थानों को लेकर बेहद सचेत रहना होगा। वे मजबूत हैं, स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं, नियंत्रण और संतुलन में हैं।

सभी संस्थाओं को मिलकर संविधान की रक्षा करने की जरूरत: धनखड़

उन्होंने ऐसी चर्चाओं को सनसनी पैदा करने वाला बताते हुए इन्हें टाले जाने का सुझाव दिया और मिलकर संवैधानिक संस्थाओं की रक्षा के लिए बढ़ने का सुझाव दिया। मगर, राजनीतिक हालात का तकाजा और विपक्षी नेताओं की इस पर आई प्रतिक्रिया इशारा कर रही है कि उपराष्ट्रपति की इस टिप्पणी को भी राजनीतिक मुद्दा बनाते हुए संवैधानिक संस्थाओं के लिए सियासी अखाड़े में कठघरा और बड़ा किया जा सकता है। यह भी देखना होगा कि न्यायपालिका की ओर कैसे प्रतिक्रिया होती है।

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